लोगों की राय

पौराणिक >> दीक्षा

दीक्षा

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2878
आईएसबीएन :81-8143-190-1

Like this Hindi book 17 पाठकों को प्रिय

313 पाठक हैं

राम कथा पर आधारित उपन्यास...

दस

 

जनकपुर के बाहर, जल की सुविधा देखकर, एक आम्रवाटिका में गुरु विश्वामित्र ने शिविर स्थापित करने की आज्ञा दे दी।

राम ने अपना धनुष एक पेड़ के तने के साथ टिकाया, कंधे से तूणीर उतार उसी के साथ रखा; और उसी पेड़ का सहारा लेकर बैठ गए। लक्ष्मण ने भाई के सुविधापूर्वक बैठ जाने-भर की प्रतीक्षा की, और धीरे से आकर उनके पास घुटनों के बल बैठ गए।

राम लक्ष्मण की इस मुद्रा को जानते थे। उन्हें बैठना नहीं था। कोई बात कहकर तत्काल जाने की उनकी यही मुद्रा थी।

''भैया, मैं जरा अपनी गिनती पक्की कर लूं। कई दिनों से अभ्यास छूट गया है।''

राम ने लक्ष्मण को ध्यान से देखा। लक्ष्मण शरारत से मुस्करा रहे थे, राम समझ गए, ''अमराई घूमना चाहते हो?''

''नहीं, जरा पेड़ गिनूंगा। आम के प्रकारों का निरीक्षण भी करूंगा वनस्पतिशास्त्र का मेरा ज्ञान भी कुछ पीछे छूट गया लगता है।''

''अधिक देर मत लगाना।''

लक्ष्मण चले गए; और राम अपने मन की गुत्थियों में खो गए। गुरु ताड़का-वध की बात कहकर, राम को लाए थे; किंतु अब तक राम अच्छी तरह जान गए थे कि बात केवल ताड़का-वध की नहीं थी। गुरु ने इस भू-खंड के भविष्य को बहुत दूर तक देखने का प्रयत्न किया था, सुना है, सीरध्वज कोई धार्मिक अनुष्ठान कर रहे हैं। तो उससे विश्वामित्र को क्या? वे राम को यहां क्यों लाए हैं?

इसमें भी गुरु का कोई निश्चित उद्देश्य होना चाहिए।

क्या है वह उद्देश्य?''

राम ने देखा, पीछे-पीछे आते हुए, सामान ढोने वाले छकड़े आ पहुंचे थे। गाड़ीवान बैलों को रोककर नीचे उतर आए थे। सामान उतारा जा रहा था। पुनर्वसु अपने ब्रह्मचारी साथियों के साथ शिविर की व्यवस्था में लग गया था। गुरु उन्हें तरह-तरह के आदेश दे रहे थे।

अंत में गुरु ने कहा, ''पुनर्वसु! जनकपुर में राजपुरोहित शतानन्द को सूचना दो कि हम लोग यहां पहुंच चुके हैं। और पुत्र! उन्हें यह बताना मत भूलना कि मेरे साथ दाशरथि राम और लक्ष्मण भी हैं।''

''जो आज्ञा गुरुदेव!'' पुनर्वसु चला गया।

राम ने गुरु का आदेश सुना। शतानन्द को अपने आने की सूचना देना, साधारण बात थी। शतानन्द के माध्यम से ही, यह सूचना सम्राट् सीरध्वज को भी मिल जाएगी किंतु दाशरथि राम और लक्षण के साथ होने की सूचना को इतना विशिष्ट महत्व देने का अर्थ? क्या विश्वामित्र शतानन्द को यह स्मरण कराना चाहते हैं कि राम ने अहल्या को लंबी यातना से मुक्त किया है? क्या गुरु शतानन्द को प्रभावित करना चाहते हैं? पर क्यों?''

राम को कोई उत्तर नहीं मिला।

राम उठ खड़े हुए। धनुष और तूणीर कंधे से लटकाए और गुरु के समीप आ पहुंचे, ''गुरुदेव! जनकपुरी आने का प्रयोजन समझ नहीं पा रहा हूं।''

''कोई आपत्ति है राम?'' गुरु मुस्करा रहे थे।

''आपत्ति नहीं ऋषिवर! मात्र जिज्ञासा।''

गुरु जोर से हंसे, ''लक्ष्मण यहां नहीं दीखते, इसलिए राम को ही जिज्ञासा करनी पड़ी।''

राम मौन रहे।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. प्रधम खण्ड - एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छः
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. द्वितीय खण्ड - एक
  13. दो
  14. तीन
  15. चार
  16. पांच
  17. छः
  18. सात
  19. आठ
  20. नौ
  21. दस
  22. ग्यारह
  23. वारह
  24. तेरह

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai