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पौराणिक >> दीक्षा

दीक्षा

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2878
आईएसबीएन :81-8143-190-1

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राम कथा पर आधारित उपन्यास...

विश्वामित्र ने बोलना आरंभ किया, "तपस्विगण! अब तक के समाचार आपको ज्ञात होंगे। अब तक राक्षसों से हमारा केवल संघर्ष चल रहा था, आज हमने अपनी ओर से युद्ध की घोषणा कर दी है। ताड़का का वध राम ने किया है-राम और लक्ष्मण आश्रम की रक्षा करने के लिए हमारे मध्य हैं। किंतु आप लोग जानते हैं कि असावधानी से नहीं लड़ा जाता, और न्याय का युद्ध अकेले व्यक्ति का युद्ध नहीं है। अतः यह युद्ध प्रत्येक आश्रमवासी को ही नहीं, इस संपूर्ण जनपद की प्रजा को लड़ना है। जिसके पास जो भी शस्त्र हो, वह उसे धारण करे और सन्नद्ध रहे...। और मुनि आजानुबाहु!''

''आर्य कुलपति!''

मुनि आजानुबाहु अपने स्थान से उठकर, विश्वामित्र के सम्मुख आ बैठे। बहुत समय के पश्चात् विश्वामित्र ने मुनि के मुख पर अपने प्रति अविश्वास के स्थान पर स्वागत का भाव देखा था। मुनि बहुत प्रसन्न और तत्पर लग रहे थे।

"सूचनाएं प्रसारित करने का कर्त्तव्य आप संभालें। यथासंभब, जितने अधिक ग्रामों को सूचना भिजवा सकें, भिजवा दें कि ताड़का का बध हो चुका है, और शेष राक्षसों के विरुद्ध धर्म-युद्ध करने के लिए, आश्रमवासियों की सहायता के लिए, उन्हें यथाशीघ्र यहां पहुंचना है...। किंतु मुनिवर! संदेश उन ब्रह्मचारियों के हाथ भेजें, जो इस अंधकार में भी वन में से होकर जा सकें और स्वयं को राक्षसों की दृष्टि में पड़ने से बचा सकें।''

"और आचार्य विश्वबंधु!'' गुरु मुड़े।

"आचार्य कुलपति।''

''आप आश्रमवासियों की सशस्त्र टोलयां आश्रम की सीमा के साथ-साथ नियुक्त कर दें। यथासंभव कुछ लोग आश्रम की सीमा के आगे, वन में गुप्त रूप से रहें। वृद्धों, स्त्रियों तथा शिशुओं को उनके कुटीरों में भेज दें। आश्रमवाहिनी का मुख्य भाग, इसी स्थान पर रात्रि-भर

सन्नद्ध रहे। कुछ टोलयां सारे आश्रम में फेरिया लगाएं। सूचनाओं के आदान-प्रदान की व्यवस्था विशेष सावधानी से की जाए।''

और विश्वामित्र उठ खड़े हुए, ''आओ राम-लक्ष्मण हम चिकित्सा-कुटीर में चलें। वत्स पुनर्वसु! मार्ग दिखाओ।''

कुलपति चले गए। मुनि आजानुबाहु और आचार्य विश्वबंधु उनकी आज्ञाओं का पालन करने में जुट गए।

वे लोग चिकित्सा-कुटीर तक पहुंच गए थे। भीतर प्रवेश करत हुऐ गुरु ने कहा, ''आओ वत्स! तुम्हें दिखाऊं, वे लोग कैसा-कैसा अत्याचार करते हैं।''

राम और लक्ष्मण, गुरु के साथ चिकित्सा-कुटीर में प्रविष्ट हुए। वे लोग जाकर सुकंठ की चारपाई के पास खड़े हो गए। उन्हें देखते ही सुकंठ उठकर बैठ गया। उसने हाथ जोड़कर प्रणाम किया। उसके शरीर पर पट्टियां अब भी थी, किंतु पहले से उसकी अवस्था काफी सुधर चुकी थी।

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    अनुक्रम

  1. प्रधम खण्ड - एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छः
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. द्वितीय खण्ड - एक
  13. दो
  14. तीन
  15. चार
  16. पांच
  17. छः
  18. सात
  19. आठ
  20. नौ
  21. दस
  22. ग्यारह
  23. वारह
  24. तेरह

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