पौराणिक >> दीक्षा दीक्षानरेन्द्र कोहली
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राम कथा पर आधारित उपन्यास...
गौतम को बुला लाने के लिए बाहर जाने की बात, अहल्या पिछले कई क्षणों से सोच रही थी, किन्तु उनींदे शत को न तो वह छोड़कर जा सकती थी, और न उसे साथ ही ले जा सकती थी। और इधर क्षण-क्षण अहल्या की चिन्ता बढ़ती जा रही थी...
तभी कुटिया के बाहर किसी के पैरों की आहट हुई। अहल्या के मस्तिष्क की तनी हुई नसें सहसा ढीली हो गई। गौतम आ गए थे। आज वह उनसे कह देगी की संध्या समय इस प्रकार वे बाहर न जाया करें-उसे बड़ी चिन्ता होती है।
कुटिया का द्वार खुला और अहल्या ने शत को थपकता हुआ हाथ रोककर, पीछे कीं ओर देखा। पर वहां गौतम नहीं थे। अहल्या की आंखें आश्चर्य और प्रसन्नता से फट गई, "तुम सखी सदानीरा?''
"हां देवि! मैं!"
सदानीरा धीरे-धीरे चलती हुई अहल्या के पास आ गई और उससे सटकर बैठ गई। उसने बिना कुछ कहे, हाथ बढ़ाकर, शत को अहल्या की गोद से उठाकर, अपने वक्ष में चिपका लिया।
शत ने आंखें खोलकर देखा, ''नीरा मौसी!''
''हां! मेरे शतू!'' सदानीरा ने उसके कपोल के साथ अपना कपोल चिपका, आंखें बंद कर, हल्के-हल्के हिला-हिलाकर झूमना आरम्भ कर दिया, जैसे अनेक दिनों की संचित अपनी प्यास बुझा रही हो।
अंत में अहल्या ने ही उसे टोका, ''सदानीरा! इस समय कहां से आ रही हो सखी?''
सदानीरा की आंखें डबडबा आईं, '''जनकपुरी से आई हूं देवि! इतने दिनों से शतू को देखा नहीं था, प्राण आतुर हो रहे थे! अवसर मिलते ही भागी आई हूं।...''
तभी कुटिया का द्वार फिर खुला और गौतम भीतर आए।
''अह।''
वह अहल्या को पुकारते-पुकारते थम गए। उन्होंने दीपक के प्रकाश में, अहल्या के पास बैठी एक अन्य नारी आकृति को देख लिया था। वे उसे पहचानने का प्रयत्न करते हुए आगे बड़े, ''सदानीरा तुम?''
''प्रणाम! आर्य कुलपति!'' सदानीरा ने शत को अहल्या की गोद में दे, घुटनों के बल बैठ, दोनों हाथ जोड़, उन पर अपना माथा टिका दिया।
''कुलपति!'' गौतम उपहास की हंसी में हंसे, ''कौन कुलपति सदानीरा?'' उनका स्वर पीड़ा से अछूता नहीं रहा, ''स्वप्न हो गए वे दिन, जब गौतम भी आश्रम का कुलपति था।''
''इतने हताश न हों कुलपति!'' सदानीरा के स्वर में स्नेह-भरा आग्रह था, ''उस दुर्भाग्यपूर्ण घटना के पश्चात कदाचित आप आश्रम की सीमाओं से बाहर ही नहीं गए हैं। इसी से, बाहर क्या-क्या घटा है, उससे आप अपरिचित हें।...''
''क्या घटा है सदानीरा?'' अहल्या बहुत उत्सुक थी।
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- प्रधम खण्ड - एक
- दो
- तीन
- चार
- पांच
- छः
- सात
- आठ
- नौ
- दस
- ग्यारह
- द्वितीय खण्ड - एक
- दो
- तीन
- चार
- पांच
- छः
- सात
- आठ
- नौ
- दस
- ग्यारह
- वारह
- तेरह