बहुभागीय पुस्तकें >> युद्ध - भाग 2 युद्ध - भाग 2नरेन्द्र कोहली
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रामकथा पर आधारित श्रेष्ठ उपन्यास....
विभीषण की आंखें अनायास ही दृष्टि की सीमा तक फैले हुए वानर सेना के स्कंधावार का एक सर्वेक्षण कर आई। बोलने से पहले उन्होंने सुग्रीव की ओर देखा, "वारनराज। इस समय आप लंका में तो नहीं हैं; किंतु लंका तक पहुंचने का सारा सागर-तट आपने घेर रखा है। इससे भी लंका की सेनाओं और लंका के व्यापारियों की गतिविधि पर अत्यन्त विपरीत प्रभाव पड़ेगा...। फिर भी यह पर्याप्त नहीं है। यदि इस नाकाबंदी से रावण तंग आ गया तो वह सागर पार कर हम पर इस ओर ही आक्रमण करेगा। किंतु, उसकी सम्भावना बहुत कम है। इसलिए आवश्यक यही है किए हम उस पर आक्रमण करें, और उसके लिए समुद्र को पार करना आवश्यक है।"
"पर कैसे?" हनुमान ने पूछा।
"लंका पहुंचने के लिए सागर पार करने के अनेक निश्चित स्थान हैं, जहां नौकाएं और जलपोत सुविधा से चल सकते हैं। हनुमान ने सागर कहां से पार किया था, यह मैं नहीं जानता। हो सकता है कि वह हनुमान जैसे तैराक के लिए कोई सरल मार्ग हो; किंतु जल परिवहन के साधनों के लिए निश्चय ही वह स्थान सुविधाजनक नहीं होगा, अन्यथा लंका का शासन उस स्थान को इस प्रकार उपेक्षित नहीं छोड़ देता। किंतु मैं, जिन स्थानों की चर्चा कर रहा हूं, वे स्थान राक्षसों के सैनिक तथा व्यापारिक जलपत्तन हैं। वहां जल-परिवहन सुविधा से होता है...। हमें उन्हीं स्थानों से सागर पार करने का प्रयत्न करना चाहिए।"
"किंतु सैनिक और व्यापारिक जलपत्तन तो खाली हो चुके' हैं।" हनुमान बोले, "वहां एक नौका तक नहीं है, न कोई मनुष्य ही है। जलयानों के बिना जलपत्तन, सागर पार करने के लिए कोई उपयोगी स्थान नहीं है।"
विभीषण कुछ चिंतित हो गए; सचमुच बिना जलयानों के जलपत्तनों का क्या होगा? किंतु सहसा उन्हें कुछ सूझ गया, "जलयान नहीं हैं तो कोई बात नहीं। सैनिक जलयान तो लंका की ओर पीछे हट गए होंगे। किंतु व्यापारिक जलयानों के स्वामी अपनी बस्ती में ही होंगे। आप मेरे साथ चलिए।" सबने एक-दूसरे की ओर देखा, कौन साथ जाएगा?
"एक तो मैं चल रहा हूं।" राम बोले, "मेरे साथ अंगद, नल व नील चलें। पीछे की व्यवस्था सुग्रीव, लक्ष्मण, हनुमान तथा जाम्बवान देखें।"
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