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युद्ध - भाग 2

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :280
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2901
आईएसबीएन :81-8143-197-9

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रामकथा पर आधारित श्रेष्ठ उपन्यास....

छह

 

सहसा उन लोगों की गति रुक गई। विभीषण ने पलटकर राम की ओर देखा। उनकी दृष्टि का अनुसरण किया। वहां सैनिक शिविर अभी ठीक से स्थापित नहीं हो पाया था। बीच में कुछ झोपड़ियां थीं और कुछ ग्रामीण वानर सेना के नायक से उलझे हुए लग रहे थे।

राम को देखकर नायक सावधान हो गया, "भद्र राम! ये लोग सागर तट के मछुआरे हैं। इनकी यह छोटी-सी बस्ती हमारे शिविर के बीच में आ रही है। कुल बीस घर हैं। ये लोग यहां से हटना नहीं चाहते।"

राम खड़े-खड़े सोच रहे थे, अपने स्थान से कौन हटना चाहता है...

"तुम इन्हें हटाना क्यों चाहते हो?" राम मुस्कराए, "इनकी झोपड़ियां यहीं बनी रहें, तो भी तुम्हारा शिविर सुविधापूर्वक स्थापित हो सकता है।"

नायक तनिक संकुचित हुआ, "नहीं! मेरी इच्छा इनके लिए असुविधा उत्पन्न करने की नहीं है आर्य! मैं तो इनकी सुरक्षा के लिए कह रहा हूं। हम अपनी ओर से इनकी रक्षा ही करेंगे; किंतु राक्षसों से भिड़ंत होने पर ये बेचारे निहत्थे लोग बीच में घिर जाएंगे। वैसे भी सैनिक आवागमन के इस कोलाहल में सारी मछलियां इधर-उधर भाग जाएंगी। इनका सारा व्यवसाय नष्ट हो जाएगा। हम इन्हें किसी सुरक्षित तथा सुविधाजनक स्थान तक पहुंचाने में सहायता ही तो करना चाहते हैं।"

विभीषण विस्मय भरी दृष्टि से उस नायक और मछुआरे के उस झुंड को देखते रहे; कहीं यहां राक्षसों की सेना आई होती तो न मछुआरे इस प्रकार शांतिपूर्वक खड़े उनसे विवाद कर रहे होते और न वह नायक उनकी सुरक्षा और सुविधा की बात कर रहा होता। अब तक उनकी झोपड़ियों को अग्निसात कर दिया गया होता, उनका सामान-यदि कुछ होता तो-लूट लिया गया होता। उनकी स्त्रियां उनसे छीन ली गई होतीं। पुरुष या तो भाग गए होते, दास बना लिए गए होते अथवा मार डाले गए होते...

"तुम लोग यहां से हटना क्यों नहीं चाहते भाई?" राम मछुआरों से संबोधित हुए।

उन लोगों ने एक व्यक्ति-विशेष की ओर देखा, जैसे उत्तर देने का दायित्व उसी का हो। कदाचित् वह उनका मुखिया था। वह कुछ अटपटाया-सा राम को देख रहा था। कुछ कहे या न कहे... ।

राम ने मुस्कराकर उसे देखा, "बताओ भाई!"

उसने अपना साहस बांधा, "भद्र राम! हम आपके मार्ग की बाधा नहीं बन रहे।" फिर जैसे उसका प्रवाह सध गया, "हम सैनिक तो नहीं हैं; किंतु हम आपकी सहायता करना चाहते हैं। सागर का प्रसंग है, हमारे पास नौकाएं हैं, हम मछुआरे हैं। आपको कुछ चाहिए हो, आपके सैनिकों को जल-मार्ग से कहीं जाना हो...।"

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. तेरह
  13. चौदह
  14. पन्ह्रह
  15. सोलह
  16. सत्रह
  17. अठारह
  18. उन्नीस
  19. बीस
  20. इक्कीस
  21. बाईस
  22. तेईस
  23. चौबीस

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