कहानी संग्रह >> प्रेम पूर्णिमा प्रेम पूर्णिमाप्रेमचंद
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प्रेम पूर्णिमा मुंशी प्रेमचन्द्र का एक अनूठा कहानी संग्रह है
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
मुन्शी प्रेमचन्द एक व्यक्ति तो थे ही, एक समाज भी थे, एक देश भी थे व्यक्ति समाज और देश तीनों उनके हृदय में थे। उन्होंने बड़ी गहराई के साथ तीनों की समस्याओं का माध्यम किया था।
प्रेमचन्द हर व्यक्ति की, पूरे समाज की और देश की समस्याओं को सुलझाना चाहते थे, पर हिंसा से नहीं, विद्रोह से नहीं, अशक्ति से नहीं और अनेकता से भी नहीं। वे समस्या को सुलझाना चाहते थे प्रेम से, अहिंसा से, शान्ति से, सौहार्द से, एकता से और बन्धुता से। प्रेमचन्द आदर्श का झण्डा हाथ में लेकर प्रेम एकता, बन्धुता, सौहार्द और अहिंसा के प्रचार में जीवन पर्यन्त लगे रहे। उनकी रचनाओं में उनकी ये ही विशेषतायें तो है।
प्रेमचन्द जनता के कथाकार थे उनकी कृतियों में समाज के सुख-दुःख, आशा-आकाँक्षा, उत्थान-पतन इत्यादि के सजीव चित्र हमारे हृदयों को और शरद के साथ भारत के प्रमुख कथाकार थे, जिनको पढ़े बिना भारत को समझना संभव नहीं।
प्रेमचन्द हर व्यक्ति की, पूरे समाज की और देश की समस्याओं को सुलझाना चाहते थे, पर हिंसा से नहीं, विद्रोह से नहीं, अशक्ति से नहीं और अनेकता से भी नहीं। वे समस्या को सुलझाना चाहते थे प्रेम से, अहिंसा से, शान्ति से, सौहार्द से, एकता से और बन्धुता से। प्रेमचन्द आदर्श का झण्डा हाथ में लेकर प्रेम एकता, बन्धुता, सौहार्द और अहिंसा के प्रचार में जीवन पर्यन्त लगे रहे। उनकी रचनाओं में उनकी ये ही विशेषतायें तो है।
प्रेमचन्द जनता के कथाकार थे उनकी कृतियों में समाज के सुख-दुःख, आशा-आकाँक्षा, उत्थान-पतन इत्यादि के सजीव चित्र हमारे हृदयों को और शरद के साथ भारत के प्रमुख कथाकार थे, जिनको पढ़े बिना भारत को समझना संभव नहीं।
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