कविता संग्रह >> भूल जाओ पुराने सपने भूल जाओ पुराने सपनेनागार्जुन
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इस कविता संग्रह की सबसे खास बात यह है कि इसकी एक भी कविता किसी से नकल अथवा किसी से मिलती-जुलती नहीं है...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
‘युगधारा’ से ‘इस गुब्बारे की छाया
में’ तक का,
बल्कि और पीछे जायें तो ‘चना जोर गरम’ और
‘प्रेत का
बयान’ आदि कितबिया दौर से अब तक का नागार्जुन का काव्यलोक
भारतीय
काव्यधारा की कोई डेढ़ हजार साल की परम्परायें अपने में समेटे हुए है
कालिदास से टैगोर, निराला तक और कबीर, अमीर खुसरो से नजीर अकबरावादी तक की
सभी क्लासिक और जनोन्मुख काव्य-पराम्पराओं से अनुप्राणित त्रिभुवन का यह
परम पितामह कवि चार बीसी और चार सौ बीसी का मजाक उड़ाता हुआ आज भी
युवजन-सुलभ उत्साह से आप्लावित है-सृजनरत है। इसका जीवंत प्रमाण है बाबा
का यह नया संग्रह ‘भूल जाओ पुराने सपने’। वेदना और
व्यंग्य से
मिली-जुली अभिव्यक्ति वाला यह शीर्षक आज के युग-सत्य पर जितनी सटीक
टिप्पणी करता है, वैसी अनेक सटीक, चुटीली और मार्मिक टिप्पणियाँ इस संग्रह
की कविताओं से चुनी जा सकती हैं। यथा ‘‘लौटे हो, लगी
नहीं
झोल/यह भी बहुत है, इतना भी काफी है’’....
‘‘निरीह भोले !/ तेरे को कभी पता नहीं चलेगा/ तेरी इस छवि का-तेरी उस छवि का/ क्या-क्या इस्तेमाल हुआ’’....आप मुँह नहीं खोलिएगा !/ कुच्छो नहीं बोलियेगा !/ कैसे रहा जाएगा आपसे ?’’
....‘‘तुम्हारी इस नटलीला के प्रति/ मेरा कवि जरा भी हमदर्द नहीं’’, या फिर प्रेमचन्द शताब्दी को लक्षित ये पक्तियाँ ‘‘पंडों ने घेर लिया घर को/लमही से भागे प्रेमचन्द’’ और तमिल समस्या से संदर्भित बुद्ध के प्रति संबोधनः ‘‘तुम्हारी करुणा का एक बूँद भी/ प्राप्त नहीं हुआ उन्हें !/...ऐसी-तैसी करवा रहे हो/अपनी करुणा की....’’
‘‘निरीह भोले !/ तेरे को कभी पता नहीं चलेगा/ तेरी इस छवि का-तेरी उस छवि का/ क्या-क्या इस्तेमाल हुआ’’....आप मुँह नहीं खोलिएगा !/ कुच्छो नहीं बोलियेगा !/ कैसे रहा जाएगा आपसे ?’’
....‘‘तुम्हारी इस नटलीला के प्रति/ मेरा कवि जरा भी हमदर्द नहीं’’, या फिर प्रेमचन्द शताब्दी को लक्षित ये पक्तियाँ ‘‘पंडों ने घेर लिया घर को/लमही से भागे प्रेमचन्द’’ और तमिल समस्या से संदर्भित बुद्ध के प्रति संबोधनः ‘‘तुम्हारी करुणा का एक बूँद भी/ प्राप्त नहीं हुआ उन्हें !/...ऐसी-तैसी करवा रहे हो/अपनी करुणा की....’’
यह संग्रह
लगभग चार वर्षों के बाद नागार्जुन की कविताओं का एक और
संग्रह—‘भूल जाओ पुराने सपने।’
हिन्दी साहित्य जगत में प्रायः यह बात लोग जानते हैं कि नागार्जुन की काफी रचनाएँ खोई-बिखरी हैं। खोई और बिखरी में अन्तर है। खोई हुई रचनाएँ उनको कहेंगे जो छपे बिना ही इधर-उधर हो गयीं। बहुत प्रयासों के बाद तत्काल मिल न पा रही हों। बिखरी रचनाएँ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होकर भी संकलित न हो पायी हों।
इस संग्रह की अधिकांश कविताएँ खोई हुई थीं। किसी कॉपी या नोट बुक में ये कविताएँ नहीं लिखी गयीं। आए हुए पत्रों की खाली जगह, निमन्त्रण पत्र के पीछे, कैश मेमौ-बिलों के पीछे, पुस्तकों के शुरू और अन्त में सादा पृष्ठों, पुस्तकों के डस्ट कवर्स के भीतरी हिस्से, छोटे-बड़े स्लीपों आदि कि इन कविताओं को लिखने के लिए उपयोग में लाया गया है। लिखने के बाद ये रचनाएँ कुछ समय तक रचनाकार के साथ घूमती रहीं। हां, कोई सम्पादकनुमा व्यक्ति इसे उनसे ले पाया तो पत्र-पत्रिका में छप गयीं। अन्यथा पुराने कागज़ों के बीच में यहाँ-वहाँ कहीं भी दबकर गायब-सी हो गयीं ये कविताएँ। इन रचनाएँ को कई नगरों से उपलब्ध करना पड़ा है।
नागार्जुन की एक विशेषता यह है कि रचना शुरु करने के पूर्व तिथि अवश्य ही लिखते हैं। कविताओं की पंक्तियों को गिनकर संख्या अवश्य ही अंकित करते हैं। संग्रह को व्यवस्थित करने में इससे सहायता मिली है।
कुछ कविताएँ पत्र-पत्रिकाओं से ली गयी हैं। सुविधा के लिए रचनाओं के साथ लेखन-काल डाल दिया गया है। हाँ, दो कविताओं (एक पत्र और कीर्ति का फल) की रचना तिथि बहुत प्रयास के बाद भी नहीं मिल पायी।
पाठान्तर या पाठ दोष की सम्भावना यदि है तो हमारी लाचारी है।
हिन्दी साहित्य जगत में प्रायः यह बात लोग जानते हैं कि नागार्जुन की काफी रचनाएँ खोई-बिखरी हैं। खोई और बिखरी में अन्तर है। खोई हुई रचनाएँ उनको कहेंगे जो छपे बिना ही इधर-उधर हो गयीं। बहुत प्रयासों के बाद तत्काल मिल न पा रही हों। बिखरी रचनाएँ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होकर भी संकलित न हो पायी हों।
इस संग्रह की अधिकांश कविताएँ खोई हुई थीं। किसी कॉपी या नोट बुक में ये कविताएँ नहीं लिखी गयीं। आए हुए पत्रों की खाली जगह, निमन्त्रण पत्र के पीछे, कैश मेमौ-बिलों के पीछे, पुस्तकों के शुरू और अन्त में सादा पृष्ठों, पुस्तकों के डस्ट कवर्स के भीतरी हिस्से, छोटे-बड़े स्लीपों आदि कि इन कविताओं को लिखने के लिए उपयोग में लाया गया है। लिखने के बाद ये रचनाएँ कुछ समय तक रचनाकार के साथ घूमती रहीं। हां, कोई सम्पादकनुमा व्यक्ति इसे उनसे ले पाया तो पत्र-पत्रिका में छप गयीं। अन्यथा पुराने कागज़ों के बीच में यहाँ-वहाँ कहीं भी दबकर गायब-सी हो गयीं ये कविताएँ। इन रचनाएँ को कई नगरों से उपलब्ध करना पड़ा है।
नागार्जुन की एक विशेषता यह है कि रचना शुरु करने के पूर्व तिथि अवश्य ही लिखते हैं। कविताओं की पंक्तियों को गिनकर संख्या अवश्य ही अंकित करते हैं। संग्रह को व्यवस्थित करने में इससे सहायता मिली है।
कुछ कविताएँ पत्र-पत्रिकाओं से ली गयी हैं। सुविधा के लिए रचनाओं के साथ लेखन-काल डाल दिया गया है। हाँ, दो कविताओं (एक पत्र और कीर्ति का फल) की रचना तिथि बहुत प्रयास के बाद भी नहीं मिल पायी।
पाठान्तर या पाठ दोष की सम्भावना यदि है तो हमारी लाचारी है।
-शोभाकान्त
अगस्त, 1993
भूल जाओ पुराने सपने
सियासत में
न अड़ाओ
अपनी ये काँपती टाँगें
हाँ, मह्राज,
राजनीतिक फतवेवाजी से
अलग ही रक्खो अपने को
माला तो है ही तुम्हारे पास
नाम-वाम जपने को
भूल जाओ पुराने सपने को
न रह जाए, तो-
राजघाट पहुँच जाओ
बापू की समाधि से जरा दूर
हरी दूब पर बैठ जाओ
अपना वो लाल गमछा बिछाकर
आहिस्ते से गुन-गुनाना :
‘‘बैस्नो जन तो तेणे कहिए
जे पीर पराई जाणे रे’’
देखना, 2 अक्टूबर के
दिनों में उधर मत झाँकना
-जी, हाँ, महाराज !
2 अक्टूबर वाले सप्ताह में
राजघाट भूलकर भी न जाना
उन दिनों तो वहाँ
तुम्हारी पिटाई भी हो सकती है
कुर्ता भी फट सकता है
हां, बाबा, अर्जुन नागा !
न अड़ाओ
अपनी ये काँपती टाँगें
हाँ, मह्राज,
राजनीतिक फतवेवाजी से
अलग ही रक्खो अपने को
माला तो है ही तुम्हारे पास
नाम-वाम जपने को
भूल जाओ पुराने सपने को
न रह जाए, तो-
राजघाट पहुँच जाओ
बापू की समाधि से जरा दूर
हरी दूब पर बैठ जाओ
अपना वो लाल गमछा बिछाकर
आहिस्ते से गुन-गुनाना :
‘‘बैस्नो जन तो तेणे कहिए
जे पीर पराई जाणे रे’’
देखना, 2 अक्टूबर के
दिनों में उधर मत झाँकना
-जी, हाँ, महाराज !
2 अक्टूबर वाले सप्ताह में
राजघाट भूलकर भी न जाना
उन दिनों तो वहाँ
तुम्हारी पिटाई भी हो सकती है
कुर्ता भी फट सकता है
हां, बाबा, अर्जुन नागा !
11.10.79
स्वगत :
अपने को संबोधित
आदरणीय,
अब तो आप
पूर्णतः मुक्त जन हो !
कम्प्लीट्ली लिबरेटेड...
जी हाँ कोई ससुरा
आपकी झाँट नहीं
उखाड़ सकता, जी हाँ !!
जी हाँ, आपके लिए
कोई भी करणीय-कृत्य
शेष नहीं बचा है
जी हाँ, आप तो अब
इतिहास-पुरुष हो
...
स्थित प्रज्ञ—
निर्लिप्त, निरंजन...
युगावतार !
जो कुछ भी होना था
सब हो चुके आप !
ओ मेरी माँ, ओ मेरे बाप !
आपकी कीर्ति-
अब तो आप
पूर्णतः मुक्त जन हो !
कम्प्लीट्ली लिबरेटेड...
जी हाँ कोई ससुरा
आपकी झाँट नहीं
उखाड़ सकता, जी हाँ !!
जी हाँ, आपके लिए
कोई भी करणीय-कृत्य
शेष नहीं बचा है
जी हाँ, आप तो अब
इतिहास-पुरुष हो
...
स्थित प्रज्ञ—
निर्लिप्त, निरंजन...
युगावतार !
जो कुछ भी होना था
सब हो चुके आप !
ओ मेरी माँ, ओ मेरे बाप !
आपकी कीर्ति-
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