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रोमांचक विज्ञान कथाएँ

जयंत विष्णु नारलीकर

प्रकाशक : विद्या विहार प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :166
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 3321
आईएसबीएन :81-88140-65-1

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सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक एवं विज्ञान लेखक श्री जयंत विष्णु नारलीकर द्वारा लिखित ये विज्ञान कथाएँ रहस्य, रोमांच एवं अदभुत कल्पनाशीलता से भरी हुई है...


'प्रकृति का संतुलन बिगड़ जाएगा! फिर उससे क्या होगा?' किसी सनसनीखेज'कथा' की उम्मीद में एक अमरीकी खबरनवीस पेन और पैड निकालकर तैयार हो गया।

उसकी आँखों में सीधे देखते हुए वसंत ने उलटा सवाल कर दिया, 'कल्पना करें कि मैं अपनी सलाह दूं कि आप अपनी राजधानी वाशिंगटन से हटाकर होनोलूलू ले जाएँ।'

'पर उसकी जरूरत ही क्यों पड़ेगी?' खबरनवीस ने पूछा।

'क्योंकि आप खबरनवीसों को पहेलियाँ बुझाना अच्छा नहीं लगता, जवाब भी दूंगा।' मुसकराते हुए वसंत ने कहा, 'मामूली हिम युग के आने से आपको न्यूयॉर्क, शिकागो और यहाँ तक कि वाशिंगटन जैसे उत्तरी शहर खाली करने पड़ेंगे।'

इससे पहले कि प्रो. वसंत और कुछ बता पाते, विदेश मंत्रालय से एक खास मेहमान के आने से उनकी बातचीत में व्यवधान पड़ गया। फिर आम बातचीत होने लगी। लेकिन राजीव वसंत को थोड़ा और कुरेदना चाहता था। अतः जैसे ही बातचीत का मौका मिला, उसने सीधे मतलब की बात की।

'आप अपने सभी दावों को ठोस सबूतों के साथ पेश करने के लिए विख्यात हैं। लेकिन क्या हिम युग के बारे में आपकी भविष्यवाणी कुछ दूर की कौड़ी नहीं लगती? अवश्य ही मैं आपके क्षेत्र का नहीं हूँ, मगर मेरा मानना है कि अगले हजारों साल तक कोई हिम युग नहीं आएगा। बशर्ते कि हमारा पारंपरिक ज्ञान 'गलत साबित न हो !' पापड़ खाते हुए वसंत ने उसकी बात पूरी करते हुए कहा, 'मैं साबित कर सकता हूँ कि अगर हमारे वर्तमान पारिस्थितिकी तंत्र में प्रकृति का संतुलन यों ही बिगड़ता गया तो दस साल के भीतर ही यह मुसीबत आ जाएगी। लेकिन मिस्टर शाह, आपको डरने की जरूरत नहीं। मुंबई में आप सुरक्षित हैं। भूमध्य रेखा के दोनों ओर उत्तर-दक्षिण में 20 डिग्री अक्षांश तक की पट्टी को सुरक्षित रहना चाहिए।'

अगर मुझे स्कूल में पढ़ी भूगोल की कुछ मोटी-मोटी बातें याद हैं तो मुंबई भी इसी अक्षांश के भीतर करीब 19 डिग्री उत्तर में स्थित है। आपकी पट्टी के सीमांत पर।'

'तो हम मुंबईवालों को बर्फबारी और अन्य सब चीजों के साथ असली शीत लहर का सामना करना पड़ सकता है। मुझे कहना चाहिए कि हम आसानी से बचे रहेंगे।' वसंत ने चहकते हुए कहा।

'मैं यकीन नहीं कर सकता। केवल दस साल के भीतर मुंबई में बर्फ गिरेगी, यह नामुमकिन है। अगर आप एक दमड़ी लगाएँ तो मैं दस डॉलर की शर्त लगा सकता हूँ कि ऐसा कभी नहीं होगा।

 निश्चित रूप से यह बहुत दुःसाहसपूर्ण शर्त है।' दस डॉलर का नोट निकालते हुए राजीव ने कहा।
 
'मुझे डर है कि हालात मेरे पक्ष में कुछ ज्यादा ही अनुकूल हैं। निश्चित बातों पर मैं शर्त नहीं लगाता हूँ। पत्रकार साहब, आप निश्चित रूप से यह दस डॉलर हार जाएँगे। उसकी बजाय आइए, हम अपने कार्ड बदल लेते हैं। यह रहा मेरा कार्ड। मैं इस पर आज की तारीख लिख देता हूँ। आप भी ऐसा ही करें। अगर दस साल के भीतर मुंबई में बर्फ गिरती है तो आप मेरा कार्ड लौटा देंगे और अपनी हार मान लेंगे। अगर नहीं पड़ी तो मैं अपनी हार मान लूँगा।'

अभी वे कार्यों का लेन-देन कर ही रहे थे कि मेजबान ने आकर घोषणा की, 'आइए और हमारे खानसामे द्वारा बनाई गई खास मिठाई का आनंद लीजिए।'

एक बड़ा सा आइस केक उसी मेज पर लाया गया जिस पर कुछ देर पहले दावत चल रही थी। केक का नाम पढ़कर राजीव और वसंत दोनों के चेहरों पर मुसकराहट दौड़ गई। केक का नाम था-'आर्कटिक सरप्राइज'।

'वास्तविक 'सरप्राइज' तो दस साल के भीतर आने वाला है।' वसंत बुदबुदाया, 'पर वह उतना खुशनुमा नहीं होगा।'

छत पर बच्चों ने धमा-चौकड़ी मचा रखी थी। कविता द्वारा फेंका गया बर्फ का गोला राजीव को आकर लगा और वह अतीत से तुरंत वर्तमान में आ गया।

सचमुच में वह शर्त हार चुका था। अब उसे डाक द्वारा प्रो. चिटनिस का कार्ड वापस भेजना था। वह सीढ़ियों से नीचे उतरा।

पर डेस्क से कार्ड निकालते ही उसपर अंकित फोन नंबर से उसे एक बेहतर विचार सूझा। अवश्य ही शर्त के अनुसार उसे कार्ड डाक द्वारा भेजना था।

पर फोन द्वारा उनसे सीधे बात क्यों न की जाए। उसने तुरंत ही फोन मिलाया।
"हाँ, चिटनिस?" उसने पूछा।

दूसरे छोर पर स्थित व्यक्ति ने उत्तर दिया, "जी हाँ, वसंत चिटनिस बोल रहा हूँ। क्या मैं आपका नाम जान सकता हूँ प्लीज?"
"मैं राजीव शाह बोल रहा हूँ, आपको याद होगा।"
"हमारी शर्त ! बिलकुल, मैं आज तुम्हें ही याद कर रहा था। तो तुम हार मानते हो?"

राजीव की आँखों के सामने दूसरे छोर पर वसंत का मुसकराता चेहरा घूम गया।

"सचमुच, पर क्या आप मुझे साक्षात्कार के लिए आधे घंटे का समय देंगे?
मैं आपकी भविष्यवाणी का वैज्ञानिक आधार जानना चाहता हूँ। मैं आपके सिद्धांत को प्रकाशित कराना चाहता हूँ।'

"बिलकुल पत्रकार के अनुसार; पर अब इसका कोई फायदा नहीं होगा। फिर भी तुम्हारा स्वागत है, बशर्ते कि तुम सुबह ग्यारह बजे तक संस्थान में पहुँच जाओ।"

राजीव तुरंत मान गया। वह झटपट दाढ़ी बनाने में जुट गया और साथ ही रेडियो भी चालू कर दिया। रेडियो पर विशेष समाचार बुलेटिन आ रहा था-

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