नारी विमर्श >> चल खुसरो घर आपने (अजिल्द) चल खुसरो घर आपने (अजिल्द)शिवानी
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अन्य सभी उपन्यासों की भाँति शिवानी का यह उपन्यास भी पाठक को मंत्र-मुग्ध कर देने में समर्थ है
तब ही उसे यह विज्ञापन दिख गया था। किन्तु यहाँ आकर भी क्या वह उस
अस्वस्ति-बोध से मुक्त हो पा रही थी! माँ को नासमझ-बिगडैल भाई के साथ, अकेली
छोड़ अपने कर्तव्य से परांगमुख पलायन को क्या उसका अन्तर्मन क्षमा कर पा रहा
था।
किन्तु रातभर की चिन्ता, बेचैनी, छटपटाहट को उसने दूसरे दिन, अपने चेहरे पर
फटकने नहीं दिया। निर्विकार मुद्रा में काशी चाय की ट्रे लाकर उसके कमरे में
धरकर कह गई थी-"बाई साहब, आप नाश्ता कर लें तो ऊपर आ जाएँ।"
साहब के आदेश का पालन कर, वह ठीक दस बजे ही ऊपर पहुंची थीं, किन्तु उस
प्रासाद की भूलभुलैया क्या लखनऊ की भूलभुलैया से कुछ कम थी?
“आइए, आइए मिस जोशी," राजकमल सिंह क्या सहसा किसी अदृश्य सुरंग से निकलकर
उसके सामने खड़े हो गए थे? वह ऐसी चौंक उठी कि अभिवादन करना भी भूल गई थी।
"आइए मेरी स्टडी में चलें!" चारों ओर से जालदार झरोखों से आती ठंडे कूलर
की-सी हवा का वेग उसके बालों को अस्त-व्यस्त कर गया, हाथ से उन्हें बैठाती,
वह कमरे में पहुँचकर खड़ी हो गई थी।
स्वयं घूमने वाली कुर्सी में बैठ चलचित्र के किसी मँजे अभिनेता की-सी
स्वाभाविकता से कुर्सी को इधर-उधर घुमाते, राजकमल सिंह ने हाथ के सिगार की
राख झाड़, बड़े ही मिष्ठ स्मित से कहा, “अरे, आप खड़ी क्यों हैं, बैठिए,
बैठिए!"
वह बैठ गई, किन्तु अभी भी वह उस रौबीले व्यक्ति की ओर आँखें उठाकर देख नहीं
पा रही थी।
मैं देख रहा हूँ, मिस जोशी, यहाँ, यू आर नाट एट ईज़! क्या बात है? कोई
परेशानी है क्या आपको?"
“जी नहीं...जी नहीं," दो बार अपने कथन की पुष्टि कर वह फिर उसी विवशता से चुप
हो गई।
"नहीं, मुझे लग रहा है, आप यहाँ घबरा रही हैं, पर देखिए, आप इसे अपना ही घर
समझिए, मुझे अपना स्वामी मत समझिए।"
अचानक कुमुद का गौरवर्णी चेहरा आरक्त हो उठा देख, राजकमल सिंह को लगा, उसके
मुँह से कुछ ऐसी बात निकल गई है, जो उसे आहत कर अपदस्थ कर गई है। हिन्दी
बोलने में वह प्रायः ही ऐसी मूर्खता कर बैठता था, अंग्रेजी में 'मास्टर' शब्द
निरीह ही लगता, किन्तु हिन्दी में यही 'स्वामी' घातक अर्थ की सृष्टि कर सकता
है, यह उसे ध्यान नहीं रहा था-
"क्षमा करें, प्लीज़ डोंट मिसअन्डरस्टेंड मी-मैं कहना चाह रहा था, आपके मेरे
बीच कभी भी यह भाव न रहें कि मैं आपको वेतन दे रहा हूँ, इसलिए मैं मालिक
हूँ-आपका जब जी चाहे, जो जी चाहे करने की आपको पूर्ण स्वतन्त्रता रहेगी। आपने
लिखा था कि आपकी एक शर्त है, बीच-बीच में अपने थीसिस के सिलसिले में आपको
अपने गाइड से मिलने लखनऊ जाना होगा। आप अवश्य जा सकती हैं, पर एक शर्त मेरी
भी है, मिस जोशी!" इस बार सर्र से कुर्सी दाएं-बाएँ घूम, सहसा उसके
आमने-सामने रुक गई। इस बार कुमुद ने अपनी निर्भीक दृष्टि उस चेहरे की ओर
उठाई। अभी तक वह इस चेहरे की दुरूह लिपि बाँच नहीं पाई थी-यह लिपि कुटिल थी
या सरल?
"पूछेगी नहीं क्या शर्त है मेरी?" वह फिर सिगार, ओठों ही में दाब, बड़े
आकर्षक ढंग से मुसकराया। सहसा, मरियम के गले का फाँसी का फन्दा, स्वयं कुमुद
के गले में लिपट उसका दम घोंटने लगा। अब क्या कहेगा वह, कौन-सी शर्त हो सकती
थी उसकी? उसे अंकशायिनी बनाने की? क्या इसी दुख से मरियम ने आत्महत्या की थी?
मन की समस्त भयावह शंकाएँ, उसे विहल कर उठीं, इस एकान्त में यदि इस अनजान
व्यक्ति ने उसे दबोच लिया तो कौन बचाने आएगा उसे? हड़बड़ाकर वह उठ गई-"मुझे
क्षमा करें, मैं यह नौकरी नहीं कर पाऊँगी!"
"बैठिए, बैठिए मिस जोशी, इतना घबरा क्यों रही हैं! बड़ी नर्वस टैम्परामेंट की
हैं क्या आप? मेरी शर्त बहुत छोटी-सी है, जिसकी स्वीकृति देने में आपको कोई
आपत्ति नहीं होनी चाहिए--"नूरबक्श," उन्होंने घंटी बजाई और तत्काल पर्दा
खोलकर नूरबक्श भीतर आ गया।
"जी सरकार!" "कॉफी ले आओ।"
नूरबक्श कॉफी लेने गया, तो कुमुद का मेघलुप्त शशि-सा विवर्ण चेहरा देखते ही
राजकमल सिंह का कंठस्वर एकदम लोरी की थपकी-सा मूदुल हो उठा-"मिस जोशी, मेरी
शर्त यह है कि आप जब तक यहाँ रहेंगी, इस हवेली के दोनों हिस्सों में रहनेवाले
मेरे दोनों भाइयों के परिवारों से भूलकर भी कभी कोई सम्बन्ध नहीं रखेंगी।
दुर्भाग्य से, हम तीनों सगे भाइयों का पारिवारिक वैमनस्य अब विकट रूप ले चुका
है। उनका रहन-सहन, उठना-बैठना, उनके मित्र-परिचित हमसे एकदम भिन्न हैं। हैं
तो दोनों ही विधायक, किन्तु आई एम एशेम्ड टू से-पल्ले सिरे के लम्पट, विलासी,
अविवेकी, नारी-लोलुप गुण्डों का ही जमघट यहाँ नित्य जुटा रहता है। दिन-रात
यहाँ डाकुओं की मेजबानी निभाई जाती है, भिण्ड, मुरैना के दस्युदलों का
विश्राम-गृह ही समझिए इसे।
मेरे दोनों भतीजे भी आवारा हैं। मैं चाहता हूँ आप इन सबसे दूर रहें। इसका एक
ही उपाय है-उनसे गज भर की दूरी बरती जाए। इतनी बड़ी हवेली है, यहाँ मनोरंजन
के समस्त साधन मैंने जुटाकर भर दिए हैं। टेलीविजन है, वीडियो है, भीतर ही
टेनिस कोर्ट है, स्विमिंग पूल है और यदि आपको पढ़ने का शौक है तो इतना ही
कहूँगा कि मुझे अपनी लाइब्रेरी पर गर्व है। सब जर्नल्स, मैन्युअल आपको यहाँ
मिलेंगे और फिर मालती है, जब वह नार्मल रहती है मिस जोशी, तब कभी किसी को
परेशान नहीं करती और जब कभी उसका उन्माद उग्र बनेगा तब मैं आप पर आँच नहीं
आने दूंगा।"
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