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नारी विमर्श >> चल खुसरो घर आपने (अजिल्द)

चल खुसरो घर आपने (अजिल्द)

शिवानी

प्रकाशक : राधाकृष्ण प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :131
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3736
आईएसबीएन :9788183616621

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अन्य सभी उपन्यासों की भाँति शिवानी का यह उपन्यास भी पाठक को मंत्र-मुग्ध कर देने में समर्थ है


किन्तु राजकमल पूर्ववत् निश्चेष्ट पड़े रहे। एक दीर्घश्वास लेकर कविराज उठे, अपनी तेजस्वी दृष्टि से उन्होंने एक बार कमरे के चारों ओर देखकर सिरहाने खड़ी कुमुद से कहा- “सुनिए, रोगी की शैया का सिरहाना पश्चिम की ओर है, इसे बदलकर इधर कर दीजिए," और फिर अपनी नग्न गौर पीठ से अंग-वस्त्र खींचकर उन्होंने छाती भी ढक ली, पैर के खड़ाऊँ की खट-खट, धीरे-धीरे कमरे से दूर होती गई, पर कुमुद ने देखा, कविराज डाक्टर चक्रवर्ती से बरामदे में खड़े होकर कुछ मन्त्रणा कर रहे हैं। यह भी कैसे चिकित्सक थे कि न औषधि लिखी, न कुछ पूछा, नाड़ी थामी और कह गए सिरहाना पश्चिम से पूर्वाभिमुख कर दो। क्या इसी से विषम रोग दूर हो जाएगा? फिर धीरे-धीरे वह खिड़की से सटकर खड़ी हो गई थी।

कविराज की गम्भीर मुखमुद्रा देखते ही वह सहम गई-क्या इस विलक्षण अल्पभाषी चिकित्सक ने विषम ज्वर की घातक संभावना नाड़ी पकड़ते ही पकड़ ली थी?

"देखिए डॉक्टर साहब, है तो सन्निपात ही, इसमें दो राय हो नहीं सकती-रोगी अभी अचेतावस्था में है, जब तक यह न जान लूँ कि रोग किस आहार-विहार से कुपित हुआ है, मैं उसके अनुकूल चिकित्सा आरम्भ नहीं कर सकता-

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