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नारी विमर्श >> कालिंदी (सजिल्द)

कालिंदी (सजिल्द)

शिवानी

प्रकाशक : राधाकृष्ण प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :196
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 3755
आईएसबीएन :9788183612814

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एक स्वयंसिद्ध लड़की के जीवन पर आधारित उपन्यास


वही विस्मृत छवि, इतने वर्षों के पश्चात् आँखों के सामने जैसे प्रत्यक्ष खड़ी हो गई।

तीखी नाक पर चमकते स्वेद बिन्दु।

सामने धधकती धूनी, उलझे-बिखरे केश, तिर्यक अधरों से सामान्य झलकता गजदन्त और किसी जाग्रत यक्षिणी का सा तेजोमय दमकता चेहरा।

"तुम जहाँ भी हो माई, मेरी पुत्री की रक्षा करो-मेरी ललाटलिपि, उसके ललाट में मत उतारो माई।"

उसकी आँखों से झरझर आँसू बहते जा रहे थे, ओठ काटकर वह सिसकियों को, प्राणांतक चेष्टा से कंठ में घुटक रही थी, कहीं शब्द सुनकर चड़ी न जग जाए। कालिंदी घोर निद्रा में निमग्न होकर निश्चेष्ट पड़ी थी। न जाने कब तक अन्नपूर्णा जुड़े हाथ ललाट से लगाए खड़ी ही रही।

ठंडी हवा के झोंके ने सहसा उसकी मुंदी पलकों का स्पर्श किया। उसे लगा, लाल-लाल आँखें कपाल पर चढ़ाए वही सिद्धिनी उसके पास आकर बैठ ओठों ही ओठों में बुदबुदा रही है :

यसो बिदिया सिखी
पताल की नागणी मारो
अकास की डंकिणी, भुतणी, पिचासिनी-
संकणी, सेतानी, मसानी
चौबाटों की धूल
चेहाने का कोइला-
चलौं छौं भगी वा...ना!


***

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