आचार्य श्रीराम शर्मा >> मानवीय मस्तिष्क विलक्षण कंप्यूटर मानवीय मस्तिष्क विलक्षण कंप्यूटरश्रीराम शर्मा आचार्य
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शरीर से भी विलक्षण मस्तिष्क...
मानसिक संतुलन यों साधें
सुख-दुःख, प्रसन्नता-खिन्नता, चिंता, भय और इसी तरह की अनुभूतियों जो मनुष्य
को आनंदित व प्रफुल्लित रखती हैं पूरी तरह मनःसस्थान से संबंध रखती है। एक
पार्ट-स्थिति किसी व्यक्ति के लिए अत्याधिक दुःखद और कष्टकर हो सकती है। उसका
कारण मानसिक स्थिति की बनावट ही कहा जा सकता है। इसी प्रकार से कोई व्यक्ति
सामान्य सी परेशानी के कारण भी इतना दुःखी उद्विग्न हो उठता है कि उसे अपना
जीवन नाटकीय, न जीने योग्य लगने लगता है। दूसरे कई व्यक्ति उससे भी कठिन और
परेशानी उत्पन्न करने वाली परिस्थितियों को हँसते-हँसते झेल लेते हैं। इसका
क्या कारण है ? एक ही कारण कहा जा सकता है-मानसिक स्थिति की बनावट, संतुलित
या असंतुलित मनः स्थिति।
जिन कारणों से मानसिक शांति नष्ट होती है, कार्य करने की क्षमता घटती है,
परेशानी और उद्विग्नता बढ़ती है वे सभी कारण मस्तिष्कीय क्षमताओं को घटाते
हैं, साथ ही उन्हें रोगी और दुर्बल भी बनाते हैं। मस्तिष्कीय क्षमताओं का
समुचित सदुपयोग करने के लिए आवश्यक है कि मानसिक संतुलन साधा जाये ताकि सभी
परिस्थितियों में शांत-प्रसन्न और प्रफुल्लित रहते हुए अभीष्ट दिशा में आगे
बढ़ता रहा जा सके।
मानसिक संतुलन को साधने और सुस्थिर रखने का एकमेव उपाय है कि बाहरी प्रभावों
से मुक्त रहते हए अपने दृष्टिकोण और चिंतन की दिशा-धारा को ऐसा मोड़ दिया
जाये जिससे कि सदैव प्रसन्न और प्रफुल्लित रहा जा सके। प्रत्येक परिस्थिति
में मानसिक संतुलन स्थिर रखने के दो महत्त्वपूर्ण सूत्र हैं-(१) प्रत्येक
बुरी परिस्थिति से अप्रभावित रहा जाय और (२) जिस किसी के भी संपर्क में आना
पड़े उनके कारण अपने आपको विचलित न होने दे।
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