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आचार्य श्रीराम शर्मा >> मानवीय मस्तिष्क विलक्षण कंप्यूटर

मानवीय मस्तिष्क विलक्षण कंप्यूटर

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2004
पृष्ठ :112
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4099
आईएसबीएन :000

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शरीर से भी विलक्षण मस्तिष्क...

परिष्कृत मस्तिष्क की क्षमता


न्यूयार्क (अमरीका) शहर के सभी सभ्रांत व्यक्ति, बुद्धिजीवी और नगर की आबादी के हर क्षेत्र के नगरपार्षद उपस्थित हैं। हाल खचाखच भरा है। तभी एक व्यक्ति सामने स्टेज (मंच) पर आता है। एक व्यक्ति ने प्रश्न किया–६० को ६० में गुणा करने पर गुणनफल क्या आयेगा तथा गुणा करते समय ४७वें अंक का गुणा करने पर जो पंक्ति आयेगी उसे बाईं ओर से गिनने पर ३६वाँ अंक कौन सा होगा ? प्रश्न सुनते ही वह व्यक्ति जो प्रदर्शन के लिए आमंत्रित किये गये थे वह निर्विकार रूप से कुर्सी पर बैठ गये। बिना किसी खड़िया, कागज, पट्टी अथवा पेंसिल के प्रश्न मस्तिष्क का मस्तिष्क में ही हल करने लगे।

ध्यानस्थ व्यक्ति एक भारतीय थे। उनके अदभुत मस्तिष्कीय करतबों से प्रभावित होने के कारण उन्हें अमरीका बुलाया गया। नाम था श्री सुरेशचंद्र दत्त, बंगाल के ढाका जिले के रहने वाले। सुरेशचंद्र दत्त ने कुल ४५ मिनट में इतना लंबा गुणा हल करके बता दिया, ४७वीं पंक्ति का ३६वाँ अक्षर भी। इससे पहले यही प्रश्न न्यूयार्क यूनिवर्सिटी के एक पी० एच० डी० प्रोफेसर ने भी हल किया था। प्रोफेसर साहब ने मौखिक न करके विधिवत् कापी-पेंसिल से गुणा किया था। प्रतिदिन २ घंटा लगाने के बाद पूरा प्रश्न वे ८ दिन में हल कर पाये थे। दोनों गुणनफल मिलाकर देखे गये तो दोनों में अंतर। निश्चित था कि उनमें से आया श्री सुरेशचंद्र दत्त अथवा प्रोफेसर साहब किसी एक का हल गलत था। जाँच के लिए दूसरे गणितज्ञ बैठाये गये। उनका जो गुणनफल आया वह श्री सुरेशचंद्र दत्त के गुणनफल जितना ही था, एक भी अंक गलत नहीं था, जबकि अमेरिकी प्रोफेसर साहब का हल १६ स्थानों पर गलत था। श्री सुरेशचंद्र दत्त से ऐसे कई प्रश्न पूछे गये, जिनके उन्होंने सर्वशुद्ध हल करके बता दिये। किस शताब्दी की, किस तारीख को, कौन-सा दिन था ? ऐसे कई प्रश्न पूछे गये, जिनका उत्तर १ सेकंड में ही श्री सुरेशचंद्र दत्त ने दिया-एक भी उत्तर गलत नहीं निकला। अमेरिका के वैज्ञानिक और बुद्धिवादी लोग इस अद्भुत क्षमता पर आश्चर्यचकित थे। दूसरे दिन अखबारों में सुरेशचंद्र दत्त की प्रशंसा–मशीन का प्रतिद्वंद्वी (राइवल ऑफ मशीन, दिमागी जादूगर (मेंटल विजार्ड) मनुष्य की शक्ल में हिसाब की मशीन (त्यूमन रेडी रेकनर) तथा विद्युत् गति से भी तीव्र गति से गणित के प्रश्न हल करने वाला (लाइटनिंग केलकुलेटर) आदि विशेषण देकर की गई। नवंबर १9२६ में "इंडियन रिव्यू में श्री सुरेशचंद्र दत्त की इस विलक्षण प्रतिभा की जानकारी विस्तार से दी गई और इस अद्भुत मस्तिष्कीय क्षमता पर आश्चर्य प्रकट किया गया।

मनुष्य की जन्मजात विशेषताओं का कारण वैज्ञानिकों से पूछा जाता है, तो उत्तर मिलता है वंशानुक्रम गुणों के कारण ऐसा होता है।

श्री सुरशचद्र दत्त के परिवार में उनकी ही तरह कोई विलक्षण बौद्धिक क्षमता वाला व्यक्ति समीपवर्ती तो पाया नहीं गया, संभव है, वह आदिपूर्वजों ऋषियों का अनुवांशिक गुण रहा हो। उस स्थिति में भी वह गुण और कहीं अनादि समय से ही आया होगा, जो एक अनादि चेतन तत्त्व की पुष्टि करता है। श्री दत्त में इस सुप्त गुण का पता जब वे ८ वर्ष के थे तब चला। एक बार एक स्कूल इंस्पेक्टर मुआयने के लिए आये। उन्होंने कुछ मौखिक प्रश्न पूछे। श्री सुरेशचंद्र ने उन्हें सेकेंडों में बता दिये, इंस्पेक्टर क्रमशः उलझे गुणक देता चला गया और श्री दत्त उनके सही उत्तरे। तब कहीं उन्हें स्वयं भी अपनी इस अदभुत क्षमता का पता चला। पीछे तो वे १०० संख्या तक के गुणनफल और किसी भी बड़ी से बड़ी संख्या के वर्गमूल (स्क्वैयर रूट) तथा घन मूल (क्यूब रूट) भी एक सेकेंड में बता देते थे।

ऐसी क्षमताओं वाले एक नहीं इतिहास में सैकड़ों ही व्यक्ति हुए हैं। इतिहास प्रसिद्ध घटना है-एक बार एडिनबरा का बैंजामिन नामक सात वर्षीय लड़का अपने पिता के साथ कहीं जा रहा था। बातचीत के दौरान उसने अपने पिता से पूछा-पिताजी, मैं किस दिन, किस समय पैदा हआ था ? पिता ने समय बताया ही था कि दो सेकेंड पीछे बैंजामिन ने कहा-तब तो मुझे जन्म लिये इतने सेकेंड हो गये। पिता ने आश्चर्यचकित होकर हिसाब लगाकर देखा तो उसमें १७२८०० सेकेंड का अंतर मिला, किंतु बैंजामिन ने तभी हँसते हुए कहा—पिताजी आपने सन् १८२० और १८२४ के दो लीप-ईयर के दिन छोड़ दिये हैं। पिता भौंचक्का रह गया—बालक की विलक्षण बुद्धि पर। दुबारा उतना घटाकर देखा गया तो बच्चे का उत्तर शत प्रतिशत सच निकला। यह घटना मायर की पुस्तक ह्यूमन परसनैलिटी में दी गई है और प्रश्न किया गया है कि आखिर मनुष्य अपने इस ज्ञानस्वरूप की वास्तविक शोध कब करेगा ? मायर ने लिखा है-जब तक मनोविज्ञान की सही व्याख्याएँ नहीं होती, विज्ञान की शोधे अधूरी और मनुष्य-जीवन के उतने लाभ की नहीं होंगी, जितनी कि अपेक्षा की जाती है।

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