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आचार्य श्रीराम शर्मा >> अतीन्द्रिय क्षमताओं की पृष्ठभूमि

अतीन्द्रिय क्षमताओं की पृष्ठभूमि

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : श्रीवेदमाता गायत्री ट्रस्ट शान्तिकुज प्रकाशित वर्ष : 2000
पृष्ठ :104
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4105
आईएसबीएन :000

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गुरुदेव की वचन...

श्रवण और दर्शन की दिव्य शक्तियाँ


उस समय की बात है, जब सिकंदर पंजाब की सीमा पर जा पहुँचा। एक दिन, रात को उसने अपने पहरेदारों को बुलाया और पूछा-यह गाने की आवाज कहाँ से आ रही है ? पहरेदारों ने बहुत ध्यान लगाकर सुनने की कोशिश की, पर उन्हें तो झींगुर की भी आवाज न सुनाई दी। भौंचक्के पहरेदार एक-दूसरे का मुँह देखने लगे, बोले-महाराज ! हमें तो कहीं से भी गाने की आवाज सुनाई नहीं दे रही।

दूसरे दिन सिकंदर को फिर वही ध्वनि सुनाई दी, उसने अपने सेनापति को बुलाकर कहा-देखो जी ! किसी के गाने की आवाज से मेरी नींद टूट जाती है। पता तो लगाना, यह रात को कौन गाना गाता है ? सेनापति ने भी बहुत ध्यान से सुनने का प्रयत्न किया, किंतु उसे भी कहीं से कोई आवाज सुनाई नहीं दी। मन में तो आया कि कह दें, आपको भ्रम हो रहा है पर सिकंदर का भय क्या कम था, धीरे से बोला—महाराज ! बहुत प्रयत्न करने पर भी कुछ सुनाई नहीं पड़ रहा, लेकिन अभी सैनिकों को आपकी बताई दिशा में भेजता हूँ, अभी पता लगाकर लाते हैं, कौन गा रहा है ?

चुस्त घुड़सवार दौड़ाए गए। जिस दिशा से सिकंदर ने आवाज का आना बताया था—घुड़सवार सैनिक उधर ही बढ़ते गये। बहुत पास जाने पर उन्हें एक ग्रामीण के गाने का स्वर सुनाई पड़ा। पता चला कि वह स्थान सिकंदर के राज प्रासाद से १० मील दूर है। इतनी दूर की आवाज सिकंदर ने कैसे सुन ली ? सैनिक, सेनापति सभी इस बात के लिए स्तब्ध थे। ग्रामीण एक निर्जन स्थान की झोपड़ी पर से गाता था और आवाज इतना लंबा मार्ग तय करके सिकंदर तक पहुँच जाती थी। प्रश्न है कि, सिकंदर
इतनी दूर की आवाज कैसे सुन लेता था ? दूसरे लोग क्यों नहीं सुन पाते थे ? सेनापति ने स्वीकार किया कि, सचमुच ही अपनी ज्ञानेंद्रियों को संतुष्ट कर दे केवल वही सत्य नहीं कही जा सकती है। अतींद्रिय सत्य भी संसार में है, उन्हें पहचाने बिना मनुष्य जीवन की कोई उपयोगिता नहीं।

दूर की आवाज सुनना विज्ञान के वर्तमान युग में कोई बड़े आश्चर्य की बात नहीं है। 'रेडियो डिटेक्शन एंड रेंजिंग' अर्थात् 'रैडार' नाम जिन लोगों ने सुना है, वे यह भी जानते होंगे कि, यह एक ऐसा यंत्र है, जो सैकड़ों मील से दूर से आ रही आवाज, आवाज ही नहीं वस्तु की तस्वीर का भी पता दे देता है। हवाई जहाज उड़ते हैं, तब उनके आवश्यक निर्देश, संवाद और मौसम आदि की जानकारियाँ रैडार' द्वारा ही भेजी जाती हैं और उनके संदेश रैडार आदि द्वारा ही प्राप्त होते हैं। बादल छाए हैं, कोहरा घना हो रहा है, हवाई पट्टी में धुआँ छाया है। रैडार की आँख उसे भी बेधकर देख सकती हैं और जहाज को रास्ता बताकर उसे कुशलतापूर्वक हवाई अड्डे पर उतारा जा सकता है। छोटे रैडार १५० मील तक की आवाज सुन सकते हैं। जापान ने ५०० मील तक की आवाज सुन सकने वाले रैडार बनाए हैं। अमेरिका के पास तो ऐसे भी रैडार हैं, जो 'ह्यूस्टन' के चंद्र वैज्ञानिकों को चंद्रमा में उतरे यात्रियों से बातचीत करा देते हैं। रैडार यंत्र की इस क्षमता पर और उसकी खोज व निर्माण करने वाले वैज्ञानिकों के बुद्धिकौशल पर जितना ही आश्चर्य किया जाए कम है।

किसी विज्ञान जानने वाले विद्यार्थी से यह बात कही जाए, तो वह हँसकर कहेगा-भाई साहब, इसमें आश्चर्य की क्या बात ? साधारण-सी रेडियो तरंगों का सिद्धांत है। जब ध्वनि लहरियाँ किसी माध्यम से टकराती हैं, तो वे फिर वापस लौट आती हैं, उस स्थान वस्तु आदि का पता दे देती हैं। हवाई जहाज की ध्वनि को रेडियो तरंगों द्वारा पकड़कर यह पता लगा लिया जाता है कि, वे किस दिशा में कितनी दूर पर हैं ? यह कार्य प्रकाश की गति अर्थात् १,८६,००० मील प्रति सेकंड की गति से होता है। रेडियो तरंगों की भी वही गति होती है। तात्पर्य यह है कि, यदि उपयुक्त संवेदनशीलता वाला रैडार जैसा कोई यंत्र हो, तो बड़ी से भी बड़ी दूरी की आवाज को सेकंडों में सुना जा सकता है, देखा जा सकता है। प्रकाश से भी तीव्रगामी तत्त्वों की खोज ने तो अब इस संभावना को और भी बढ़ा दिया है, जिससे अब सारे ब्रह्मांड की आवाज को भी कान लगाकर सुने जाने की बात को भी कोई बड़ा आश्चर्य नहीं माना जाएगा।

मुश्किल इतनी ही है कि, कोई भी यंत्र इतने संवेदनशील नहीं बन पाए कि दसों, दिशाओं से आने वाली करोड़ों आवाजों में से किसी भी पतली से पतली आवाज को जान सकें और भयंकर से भी भयंकर निनाद में भी टूटने-फटने के भय से बचे रहें। रैडार कितना उपयोगी है, पर इतना भारी भरकम कि, उसे एक स्थान पर स्थापित करने में वर्षों लग जाते हैं। सैकड़ों फुट ऊँचे एंटीना, ट्रान्समीटर, रिसीवर, बहुत अधिक कंपन वाली (सुपर फ्रिक्वेन्सी) रेडियो ऊर्जा इंडिकेटेर, आस्सीलेटर, माडुलेटर, सिंक्रोनाइजर आदि अनेकों यंत्र प्रणालियों पर एक रैडार काम करने योग्य हो पाता है। उस पर भी अनेक कर्मचारी काम करते हैं, लाखों रुपयों का खर्च आता है, तब कहीं वह काम करने के योग्य हो पाता है। कहीं बिजली का बहुत तेज धमाका हो जाए, तो यह रैडार' बेकार भी हो जाते हैं और जहाज यदि ऐसे हों, जो अपनी ध्वनि को बाहर फैलने ही न दें, तो 'रैडार' उनको पहचान भी नहीं सकें। यह सब देखकर इतने भारी मानवीय प्रयत्न और मानवीय बुद्धि-कौशल तुच्छ और नगण्य ही दिखाई देते हैं।

दूसरी तरफ एक दूसरा रैडार-मनुष्य का छोटा-सा कान, एक सर्वशक्तिमान कलाकार-विधाता की याद दिलाता है, जिसकी बराबरी का रैडार संभवतः मनुष्य कभी भी बना न पाए। कान हल्की आवाज को भी सुन और भयंकर घोष को भी बर्दाश्त कर सकते हैं। प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध हो चुका है कि, कानों की मदद से मनुष्य लगभग ५ लाख आवाजें सुनकर पहचान सकता है, जबकि रैडार का उपयोग अभी तक सीमित ही है।

कान के भीतरी भाग में, जो संदेशों को मस्तिष्क में पहुँचाने का काम करता है, ३०,५०० रोयें पाये जाते हैं। यह रोयें जिस श्रवण झिल्ली से जुड़े होते हैं, वह तो १/२५000,000,000,000,000 इंच से भी छोटा, अर्थात् इलेक्ट्रॉनिक माइक्रोस्कोप से भी मुश्किल से दिखाई दे सकने वाला होता है। वैज्ञानिकों का भी अनुमान है कि, इतने सूक्ष्म संवेदनशील यंत्र को बनाने में मनुष्य जाति एक बार पूरी तरह सभ्य होकर नष्ट हो जाने के बाद, नये सिरे से जन्म लेकर विज्ञान की दिशा में प्रगति करे, तो ही हो सकती है, अर्थात् मानवीय क्षमता से परे की बात है। इस झिल्ली का यदि पूर्ण उपयोग संभव हो सके, तो संसार की सूक्ष्म से सूक्ष्म हलचलों को, लाखों मील दूर की आवाज को भी ऐसे सुना जा सकता है, मानो वह यहीं-कहीं अपने पास ही हो या बैठे मित्र से ही बातचीत हो रही हो। महर्षि पतंजलि ने लिखा है-

श्रोत्राकाशयोः संबंध संयमादिव्यं श्रोत्रम्।
(पा० यो० सूत्र ४०)
अर्थात् श्रवेणेंद्रिय (कानों) तथा आकाश के संबंध पर संयम करने से दिव्य ध्वनियों को सुनने की शक्ति प्राप्त होती है।

यह बात अब विभिन्न प्रयोगों से भी सिद्ध हो गई है। सामान्यतः हम ६ फुट की दूरी की आवाज का भी अधिकतम १३000000वाँ हिस्सा ही सुन पाते हैं। शेष कितनी ही मंद ध्वनि क्यों न हो वायुभूत हो जाती है। संसार के प्रत्येक पदार्थ में ऊर्जा विद्यमान है और चूँकि कोई भी स्थान ऊर्जा से रिक्त नहीं, अतएव प्रत्येक ध्वनि कुछ ही समय में सारे ब्रह्मांड में उसी प्रकार फैल जाती है, जिस प्रकार जहाँ तक जल होता है वहाँ तक लहरें चली जाती हैं।

न्यूजर्सी अमेरिका की बेल टेलीफोन प्रयोगशाला के इंजीनियरों और वैज्ञानिकों ने एक ऐसे 'भवन का निर्माण किया, जो पूरी तरह साउंड प्रूफ था, अर्थात् उसके अंदर बैठने वाले को बाहर की कैसी भी—कोई भी ध्वनि सुनाई नहीं पड़ सकती थी। वैज्ञानिकों को अनुमान था कि, उस समय निस्तब्ध, नीरवता का आभास होगा, पर जब एक व्यक्ति को प्रयोग के तौर पर अंदर बैठाया गया, तो उसे यह सुनकर अत्यंत आश्चर्य हुआ कि विचित्र प्रकार की ध्वनियाँ उसके कानों में गूंजने लगीं। एक ध्वनि किसी के सीटी बजाने की थी, एक ध्वनि प्रेस मशीन चलने की तरह धड-धड़ की थी, एक ध्वनि चट-चट चटखने की सी। पहले तो वह व्यक्ति डरा, पर पीछे ध्यान देने पर मालूम हुआ कि सीटी की आवाज नसों में दौड़ने वाले रक्त-प्रवाह की ध्वनि थी। आमाशय में पाचन रसों की चट-चट और हड्डियों की कड़कड़ाहट की ध्वनियाँ भी अलग-अलग सुनाई पड़ने लगीं, मानो शरीर न हो वरन् पूरा कारखाना ही हो।

सामान्यतः यह ध्वनि हर व्यक्ति के शरीर से होती है, पर अपने कानों की बाह्यमुखी संवेदनशीलता और एकाग्रता की कमी के कारण कोई भी उन्हें सुन नहीं पाता। पर यदि अभ्यास किया जाए और सूक्ष्म कानों की शक्ति जगाई जा सके, तो अनंत ब्रह्मांड में होने वाली हलचल, पृथ्वी के चलने की आवाज, सौरघोष, उल्काओं की टक्कर के भीषण निनाद, मंदाकिनियों के बहने का स्वर, जीव-जंतुओं के कलरव आदि सब कुछ किसी भी स्थान में बैठकर उसी प्रकार सुने जा सकते हैं, जिस प्रकार बेल टेलीफोन लेबोरेटरी के प्रयोग के समय।

योगी पतंजलि ने लिखा है-'ततः प्रतिभ श्रावणवेदनादर्शास्वादवार्ता जायन्ते' अर्थात् श्रवण संयम के अभ्यास से प्रतिभ अर्थात् भूत और भविष्य ज्ञान, दिव्य और दूरस्थ शब्द सुनने की सिद्धि प्राप्त होती है। योग विभूति में लिखा है-

'शब्दार्थप्रत्ययानामितरेतराध्यासात् संकरस्तत्प्रविभागसंयमात सर्वभूतरुतज्ञानम् ।।
पा० यो० सू० १७।।

अर्थात् 'शब्द-अर्थ और ज्ञान के अभ्यास से अभेद भासता है और उसके विभाग में संयम करने से सभी प्राणियों के शब्दों में निहित भावनाओं का भी ज्ञान होता है। यह सूत्र-सिद्धांत सूक्ष्म कर्णेद्रिय की महान् महत्ता का प्रतिपादन करते हैं और बताते हैं कि, जब तक मनुष्य के पास ऐसी क्षमता संपन्न शरीर है, उसे भौतिक शक्तियों की ओर आकर्षित होने की आवश्यकता नहीं। सिकंदर १० मील तक ही सुन सकता था। योगी तो अपने कान लगाकर सारे ब्रह्मांड को सुन सकता है। यह बात अब विज्ञान भी स्वीकार करता है। कान की बनावट की नकल करके वैज्ञानिक ऐसे रैडार बनाने के प्रयत्न में है, जो शुक्र, मंगल और उससे आगे की गतिविधियों का पता लगा सकें। यह संभव हो जाएगा, पर कान के मुकाबला बेचारे यंत्र क्या कर सकेंगे? कानों से तो सारे ब्रह्मांड को सुना जा सकता है।

अमेरिका और इंग्लैंड के मनोविज्ञानशास्त्रियों ने सन् १६५५ में न्यूयार्क और लंदन में 'मनोवैज्ञानिक घटनाओं की खोज करने वाली दो संस्थाएँ स्थापित की हैं। इनमें अभी तक १०,००० ऐसी रहस्मय घटनाओं का विवरण इकट्ठा किया जा चुका है। यह विवरण अमेरिका तथा अन्य कितने ही देशों के स्त्री-पुरुषों ने स्वयं लिखकर भेजा है और इसकी सच्चाई के प्रति अपना पूरा विश्वास प्रकट किया है।

इन घटनाओं में अधिकांश दूरवर्ती समाचारों का ज्ञान, दिव्य-दर्शन, पूर्वज्ञान से संबंधित हैं। वे जाग्रत्, अर्द्ध-जाग्रत् और निद्रित दशा में अनुभव की गई है। पर प्रायः सभी घटनायें आकस्मिक रूप से अनुभव में आकर चंद मिनट में समाप्त हो गईं। इसलिए वैज्ञानिक प्रयोगशाला के नियमानुसार उनकी जाँच करना संभव है नहीं। उन्हीं के द्वारा मनुष्यों को दूरवर्ती स्थानों के समाचार या भविष्य में होने वाली घटनाओं का आभास मिला है।

इस प्रकार की भविष्य दर्शन (प्रीकॉगनिशन) की घटना प्रायः तब होती है, जब कोई बड़ी दुर्घटना या मृत्यु-संकट शीघ्र ही आने वाला होता है। अधिकांश लोगों के लिए ऐसा अवसर जीवन में एकाध बार ही आता है और वह भी ऐसे आकस्मिक और निराले
ढंग से कि, वह व्यक्ति उसके कारण के संबंध में कुछ अनुमान ही नहीं कर सकता। किसी प्रिय व्यक्ति की मृत्यु की सूचना इस रीति से अनेक व्यक्तियों को हफ्तों या महीनों पहले भी मिल जाती है। यद्यपि ये घटनाए प्रायः ऐसे सामान्य व्यक्तियों द्वारा देखी जाती हैं, जिनको कोई महत्त्व नहीं दिया जाता; तो भी यह समस्या बनी ही रहती है कि, उनको किसी घटना का पूर्वज्ञान किस प्रकार हो जाता है ?

इस संबंध में इस क्षेत्र में खोज-बीन करने वाली एक अमेरिकन महिला डॉ० लुइसा ई० राइन ने अपनी पुस्तक 'ट्रेसिंग हिडन चेनल्स' (गुप्त स्रोतों की खोज) में लिखा है कि "पूर्व दर्शन की घटनाएँ यद्यपि संख्या में बहुत अधिक होती हैं, पर आश्चर्य यह है कि वे कैसे घट जाती हैं ?" फिर लेखिका स्वयं ही उत्तर देती है कि, ये "घटनाएँ किसी व्यक्ति के दैनिक जीवन के किसी बहुत छोटे अंश से संबंधित होती हैं, चाहे वह देर से सिर के ऊपर मँडराती हुई हों और चाहे रास्ता चलते-चलते किसी सवारी गाड़ी से टकरा जाने जैसी सर्वथा आकस्मिक। इस प्रकार की घटनाएँ सर्वांगपूर्ण नहीं होती और न उनका जीवन से पूरी तरह संबंध होता है। कुछ ही लोग अपनी देखी घटनाओं पर ऐसा विश्वास रखते हैं कि, उनका संबंध उसके समग्र जीवन से है।"

श्रीमती राइन ने आगे चलकर कहा है-"इस प्रकार की पूर्वदर्शन' (प्रीकॉगनिशन) में एक मिलती-जलती विशेषता यह होती है कि, वे प्रायः सब की सब व्यक्ति संबंधी ही होती हैं। राष्ट्रीय या। अंतर्राष्ट्रीय पैमाने की घटनाओं का पूर्व-दर्शन शायद ही कभी किसी को होता है। अधिकांश में लोगों को अपने निकट संबंधियों के संबंध में ही होनहार घटनाओं का अनुभव होता है।"

पर फिर भी अनेक घटनाएँ ऐसी होती हैं और अनेक बार इस विद्या के अभ्यासी ऐसा अकाट्य प्रमाण देते हैं कि वैज्ञानिकों को भी चुप रह जाना पड़ता है। अमेरिका की 'मनोविज्ञान की खोज करने वाली संस्था' ने जो चौदह हजार उदाहरण इकट्ठे किए हैं,
उनमें से कई ऐसे हैं, जिनमें घोर अविश्वासियों को भी 'पूर्व-दर्शन' की सत्यता को स्वीकार करनी पड़ी। उनमें से 'चाय के प्याले में तूफान' शीर्षक घटना में कहा गया है-

"सेन डियागो (केलीफोर्निया-अमेरिका) का पुलिस सुपरिंटेंडेंट वाल्टर जे० मेसी जब एक दिन अपने दफ्तर से लौटकर घर जा रहा था, तो रास्ते में अपनी पत्नी की सहेली श्रीमती हाफमैन के यहाँ ठहर गया। उस समय वाल्टर की पत्नी भी वहाँ आई हुई थी और उसी को लेने के लिए वह गाड़ी से उतर पड़ा था। श्रीमती हाफमैन ने उससे चाय पीने के लिये कहा। बातों ही बातों में श्रीमती हाफमैन कह बैठी-"वाल्टर ! अगर तुम पसंद करो, तो मैं तुम्हारे चाय के प्याले को देखकर किसी होनहार घटना की सूचना दे सकती हूँ।"

वाल्टर सोलह वर्ष से पुलिस के महकमे में काम कर रहा था और उसे रात-दिन बड़े-बड़े चालाक ठग और जालसाज लोगों के अँगूठे और अंगुलियों के निशान देखकर उनका पता लगाता था। इसलिए वह ऐसी 'दैवज्ञता' की बातों पर जरा भी विश्वास नहीं करता था, तो भी मनोरंजन की दृष्टि से उसने अपना प्याला मिसेज हाफमैन को दे दिया। उसे देखते-देखते उसका चेहरा पीला पड़ गया और उसने बड़े भयभीत स्वर में कहा-"मैं इस प्याले में मृत्यु को देख रही हूँ। दो मौतें होंगी, उनमें से एक नागरिक है, जो कि गोली से इस तरह मारा गया है कि, उसका बदन छलनी हो गया है। दूसरा आदमी व्यापारी है, उसने वर्दी और काले जूते भी पहिन रखे हैं।"

यद्यपि वाल्टर घोर अविश्वासी था, पर श्रीमती हाफमैन की मुखाकृति को देखकर वह प्रभावित हो गया और दूसरे दिन उसमें इसका जिक्र अपने अफसर जी डोरन' से किया। वह उससे भी बढ़कर अविश्वासी था और उसने वाल्टर की खूब हँसी उड़ाई। पर जैसा श्रीमती हाफमैन ने कहा था, आगामी रविवार को जब एक लुटेरे ने 'केलीफोर्निया थियेटर' में घुसकर उसके मैनेजर की हत्या
कर डाली और पीछा करने वाले एक पुलिस सारजैंट को घायल कर दिया, तो वे सब चकित रह गये। पुलिस वाले बराबर लुटेरों का पीछा करते रहे और उनमें से एक को एक तहखाने में छुपा देखकर गोलियों से छेद डाला। उसका बदन छरों के मारे वास्तव में छलनी हो गया था।

ऐसा ही एक प्रयोग सर जोजेफ बार्नवी ने कराया। एक विशेष प्रकार के शीशे में जब उन्होंने दृष्टि जमाई और अपनी पत्नी का हाल जानना चाहा, तो उन्होंने एक महिला का चित्र देखा, जो बहत बढ़िया किस्म के वस्त्र और आभूषण पहने हुई थी। महिला की शक्ल-सूरत तो उनकी धर्मपत्नी से मिलती-जुलती थी, पर उन्होंने बताया मेरी पत्नी ऐसे आभूषण पहनती ही नहीं, इसलिए उन्हें इस विज्ञान पर विश्वास नहीं हुआ, किंतु, जब वह घर लौटे तो यह देखकर आश्चर्यचकित रह गये कि उनकी धर्मपत्नी ठीक वही आभूषण पहने थीं, जो उन्होंने दर्पण में देखा था। तब से बार्नवी भारतीय तत्त्व-दर्शन से इतना प्रभावित हुए कि, उन्होंने तमाम भारतीय दर्शन का कक्षा एक के विद्यार्थी की भाँति अध्ययन किया। उनके मस्तिष्क में बहुत दिन तक यह विचार उठता रहा कि, जो आत्म-शक्ति न देखे हुए को भी देख सकती है, न जाने हुए को भी जान सकती है, वह अपने आप में सब प्रकार की भौतिक शक्तियों से नि:संदेह परिपूर्ण होनी चाहिए। अपनी इस परिपूर्ण चेतन अवस्था को जानना इसलिए भी आवश्यक है, क्योंकि वही जीव की अंतिम स्थिति है और उसे प्राप्त कर लेने पर संसार में और कुछ प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं रह जाती।

आज वैज्ञानिकों ने ऐसे-ऐसे कंप्यूटर तैयार किये हैं, जिनकी इलेक्ट्रॉनिक शक्ति उन सब बातों को बता सकती है, जो प्रकृति (नेचर) के गणितीय (मैथेमेटिकल) सिद्धांत से संबंधित है। कंप्यूटर शरीर के रोगों का पता बता देते हैं, लाखों प्रकाश वर्ष दूर के सितारों की दूरी, दिशा और कोण तक बता देते हैं, किंतु यह मनुष्य कब मर जायेगा ? एक वर्ष, एक माह, एक दिन बाद इस मनुष्य की क्या स्थिति होगी ? ऐसा सचेतन ज्ञान न पदार्थ के पास और न किसी मशीन में ही है। वह तो किसी आत्म-चेतना की ही शक्ति हो सकती है, जो ज्ञात-अज्ञात रूप से लोगों को प्रेरित और प्रभावित करती रहती है। ऐसे उदाहरण संसार के हर देश में देखने को मिलते हैं।

पूर्वाभास की अनेक घटनाओं में एक निम्नलिखित घटना भी है, जिसमें पूर्ण स्वस्थ रहते हुए भी मृत्यु का पूर्वाभास मिला और अक्षरशः सही निकला।

उत्तर प्रदेश-मुरादाबाद जिले की दिलारी तहसील में ग्राम सबाई के निवासी एक लोकप्रिय समाज सेवी गजराज सिंह को अपनी मृत्यु का आभास चार दिन पूर्व मिल गया था। यों वे कुछ रुग्ण तो थे, पर चलने-फिरने तथा साधारण काम-काज करते रहने में समर्थ थे। उन्होंने घर वालों को चार दिन पूर्व अपनी मृत्यु का समय बता दिया था और मरघट में जाकर अपने हाथ से जमीन साफ करके दाह कर्म के लिए स्थान निर्धारित किया था। लकड़ी, कफन यहाँ तक कि जमीन लीपने के लिए गोबर तक समय से पूर्व ही मँगाकर रख लिया था। यों वे अन्न खाते थे, पर चार दिन पूर्व से उन्होंने दूध और गंगा जल पर रहना प्रारंभ कर दिया। आस-पास के गाँवों के लोगों को बुलाकर उन्होंने आवश्यक परामर्श दिये। मृत्यु का ठीक समय मध्याह्नोत्तर दो बजे थे, सो उन्होंने हर किसी को भोजन करके निवृत्त होने के लिए आग्रहपूर्वक प्रेरित किया। आश्चर्य यह कि, मृत्यु उनके घोषित समय पर ही हुई और मरने से पंद्रह मिनट पूर्व तक पूर्ण स्वस्थ जैसी स्थिति में बातें करते रहे।

श्री मेयर्स ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक "दि ह्यूमन परसनैलिटी एंड इट्स सरवाइवल आफ्टर बाडीली डेथ" में १३ उदाहरण दिए हैं, जिनमें ऐसी अद्भुत ज्ञान शक्तियों का विवरण देकर यह बताने का प्रयत्न किया गया है कि, ज्ञान की चमत्कारिक क्षमताएँ पदार्थ की नहीं हो सकती। निश्चय ही कोई चेतन-शक्ति का खेल है। इन उदाहरणों में प्रसिद्ध गणितज्ञ वास और ऐंपेयर के उदाहरण भी दिए गए हैं।

दो घटनाएँ अमेरिकन इतिहास से संग्रह की गई हैं। वहाँ २८ फरवरी, १८४४ को एक बहुत महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम होने को था। 'यू० एस० एस० प्रिंसटन' नाम का एक नया और सबसे बढ़िया युद्धपोत बनकर तैयार हुआ था और उसके उद्घाटन के अवसर पर उसके कप्तान राबर्ट स्टाक्टन के अनेक गण्यमान्य व्यक्तियों को समारोह में निमंत्रित किया इनमें कर्नल डेविड गार्डिनर, उनकी पुत्री जूलिया, जलसेना के सेक्रेटरी थामस गेलमर व उनकी पत्नी एनी भी सम्मिलित थे।

इन दोनों महिलाओं ने २७ दिनांक की रात्रि को ऐसे स्वप्न देखे, जिनमें जूलिया के पिता और एनी के पति की मृत्यु का स्पष्ट संकेत था। इससे भयभीत होकर जूलिया ने अपने पिता से इस समारोह में सम्मिलित न होने का अनुरोध किया। इसी प्रकार एनी ने अपने पति को बहत रोका। पर उन दोनों ने स्वप्न की बातों को अधिक महत्त्व देना ठीक नहीं समझा और वे जहाज पर चले गए। वहाँ जब एक तोप को समुद्र की ओर चलाया गया, तो वह अकस्मात् फट गयी और कर्नल गार्डिनर तथा थामस गेलमर, जो पास खड़े थे—तुरंत मर गये।

एनी भी वहीं थी, पर वह बच गई। शोक से अभिभूत होकर उसने कहा-"मेरी बात किसी ने क्यों नहीं मानी ?" दुर्घटना के समय जूलिया डेक के नीचे थी और जब उसने अपने पिता की मृत्यु के बारे में सुना, तो वह चिल्ला उठी-"मेरा सपना आखिर सच हो ही गया।"

बाद में यही जूलिया अमेरिका के प्रेसीडेंट टेलर की पत्नी बन गई। उसे कुछ ऐसी शक्ति प्राप्त थी कि, पति से सौ मील दूर रहने पर भी वह उसके संबंध में सब बातें जानती रहती। उनके मन इस प्रकार जुड़े थे कि, एक की अनुभूति दूसरे को सहज में हो जाती थी। जनवरी १८६२ में जब प्रेसीडेंट टेलर रिचमांड में एक सरकारी जलसे में गए थे, एक रात को जूलिया ने स्वप्न देखा कि 'उनका चेहरा मुर्दे की तरह पीला पड़ गया है, उनके हाथ में कमीज और टाई है तथा वे कह रहे हैं कि "मेरा सर थाम लो।" सुबह होते ही जूलिया स्वयं रिचमांड को रवाना हो गयी और वहाँ प्रेसीडेंट को सकुशल देखकर उसे प्रसन्नता हुई, पर दूसरे दिन सुबह नाश्ता करते हुए उनकी हालत एकदम खराब हो गई और वे मौत के समय की-सी आकृति में जूलिया के कमरे में घुसे। उनका कोट और टाई उनके हाथ में थी, जैसा स्वप्न में दिखाई पड़ा था। उन्होंने जूलिया से कुछ कहा भी, पर वह स्पष्ट सुनाई नहीं दिया। कुछ घंटों में उनकी जीवन-लीला समाप्त हो गई।

विज्ञानवादी आलोचक ऐसी घटनाओं का कोई कारण नहीं बता सकते। वे तो बराबर यही कहते रहते हैं कि, जो घटना अभी हुई ही नहीं, उसका प्रभाव किसी पर कैसे पड़ सकता है ? पर एक अध्यात्मवादी जानता है कि, मानव-जीवन का निर्णय करने वाली मुख्य घटनायें सूक्ष्म जगत् में पहले से घटती रहती हैं, बाद में वे स्थूल जगत् में प्रकट होती हैं। इसलिए जिन लोगों को पूर्व दर्शन की शक्ति किसी दैवी कारण से कुछ क्षणों के लिए प्राप्त हो जाती है, वे ऐसी घटनाओं को अर्द्ध जाग्रत् अथवा स्वप्न की अवस्था में देख लेते हैं। इसके अतिरिक्त योगी और अभ्यास करने वाले भी अंतरंग शक्ति से अंतरिक्ष में मौजूद भविष्य के चिह्नों को देखकर समझ जाते हैं। यही भविष्य दर्शन अथवा पूर्व दर्शन का वास्तविक रहस्य है।

पूर्वाभास के 'सत्य अनुभव' (टू एक्सपीरिएन्सेज इन प्रोफेसी) नामक पुस्तक के विद्वान् लेखक श्री मार्टिन इवान ने सैकड़ों घटनाओं का वर्णन किया है, जिसमें सामान्य लोगों को भी स्वप्न या साधारण अवस्था में विलक्षण पूर्वाभास हुए। लैंडेड टू, (दो व्यक्तियों की जान बचाई) शीर्षक से हेरोल्ड ग्लूक एक घटना इस प्रकार देते हैं-

'नवंबर १६५० के एक शनिवार को हमारे घर कोई उत्सव होने वाला था। एक दिन पूर्व शुक्रवार को ही मेरी धर्मपत्नी ने मुझसे कहा-"आज आप बाहर नहीं जाइयेगा। घर की आवश्यक व्यवस्था में आज आपको हाथ बँटाना पड़ेगा। किंतु उस दिन मुझे ऐसी प्रबल प्रेरणा उठ रही थी कि आज तो समुद्र की सैर के लिए जाना ही चाहिए। मैंने अपनी धर्मपत्नी की बात को कभी ठुकराया नहीं, पर मैं स्वयं ही नहीं जानता कि, उस दिन मुझे किस अज्ञात शक्ति द्वारा प्रेरित किया जा रहा था कि, मैंने जान-बूझकर अपने मित्र जैक को कार लेकर अपने साथ चलने को राजी कर लिया। उस दिन समुद्र में तूफान आने की घोषणा मौसम विभाग के द्वारा की जा चुकी थी, इसलिए मेरी धर्म पत्नी ने समुद्र की ओर जाने से इनकार कर दिया; किंतु मेरे मन में न जाने क्यों कोई बात चिपक नहीं रही थी। मेरा कोई मन भी नहीं था, पर भीतर से ऐसा लगता था, तुम्हें समुद्र की ओर जाना ही चाहिए।

निश्चित समय पर गाड़ी आ गई, मैं और जैक समुद्र की ओर चल पड़े। हमारे वहाँ पहुँचने से पूर्व ही समुद्र भयंकर आवाज के साथ गरजने लग गया था। तटवर्ती मल्लाह पीछे हट चुके थे, तो भी मेरे मुख से निकल ही गया—"ओ भाई मल्लाह, हमें समुद्र की सैर करनी है, एक बोट तो देना।"

मल्लाह बुरी तरह झल्लाया "आपको दिखाई नहीं देता. समुद्र किस तरह उबल रहा है! बोट तो डुबोयेंगे ही, आप जान से हाथ धो बैठेंगे।" यही बात जैक ने भी कही, किंतु मुझे तो कोई अज्ञात शक्ति खींच रही थी, मैंने कहा-"यह लो बोट की कीमत और एक बोट मेरे लिए छोड़ दो।"

मेरे हठ के सामने सब परास्त हो गये। बोट, मैं और जैक देखते-देखते समुद्र की लहरों में जा फँसे। मुझे २०० गज की दूरी पर फुटबाल की तरह कोई वस्तु दिखाई दी। मैंने जैक को इशारा किया तो जैक झल्लाया-"आज आपको क्या हो गया है ? एक
साधारण-सी फुटबाल के लिए अपने को मौत के मुख में डाल रहे हैं।"

मुझे वह बातें कुछ प्रभावित न कर सकीं। बोट उधर ही बढ़ा दी। पास पहुँचकर देखता हूँ कि, दो नाविक जो समुद्र के तूफान में फँस गये थे, डूब रहे हैं। हमने किसी तरह उन्हें अपनी नाव में चढ़ाया और डोलते-डगमगाते किनारे आ पहुंचे।

मेरी इस सहृदयता और साहस को जिसने भी सुना, सराहा। मेरी धर्मपत्नी ने उस दिन मुझे हृदय से लगा लिया। तब से बराबर सोचता रहता हूँ, वह कौन-सी शक्ति थी, जो मुझे इस तरह प्रेरित करके वहाँ तक ले गई ? क्या ऐसा भी कोई तत्त्व है, जो अपनी इच्छा से विश्व का सृजन और नियमन करता है ? यदि हाँ, तो क्या मनुष्य इसकी स्पष्ट अनुभूति कर सकता है ?

क्या दृष्टि संपन्न हुआ जा सकता है ?

इन घटनाओं को जानकर प्रश्न उठता है कि, क्या मनुष्य की आँखें वही देख सकती हैं, जो सामने परिलक्षित होता है ? साधारण स्थिति में ऐसा ही होता है। नाक के ऊपर लगे हुए दो नेत्र गोलक केवल सामने की दिशा में और कुछ दायें-बायें एक नियत रूप तक के दृश्य देख सकते हैं। सो भी उन्हें जो उनकी ज्योति तथा पदार्थों की ध्वनि-तरंगों के संयोग का एक नियत माध्यम बनाते हैं। नेत्र-ज्योति क्षीण हो अथवा पदार्थ जीवाणु-परमाणु जैसी सूक्ष्म आकृति का हो, तो फिर सूक्ष्म दर्शक अथवा दूरदर्शक यंत्रों से अधिक जानकारी प्राप्त कर सकना नेत्र गोलकों के लिए संभव होता है। यह दृश्य वर्तमान काल के ही हो सकते हैं। आगे-पीछे के नहीं। फोटोग्राफी, चित्रकला एवं फिल्म-टेलीविजन जैसे माध्यमों से भूतकाल के दृश्य भी देखे जा सकते हैं। अब तक इतनी ही उपलब्धियों से मनुष्य को संतुष्ट रहना पड़ा है।

निकट भविष्य में मनुष्य उन चमत्कारों को भी इन्हीं आँखों से देख सकेगा, जो भूतकाल में केवल अध्यात्म विज्ञानियों के लिए ही संभव थे। भूतकाल की घटनाएँ सदा-सर्वदा के लिए सुरक्षित रखी जा सकेंगी और उन्हें फिल्म टेलीविजन की तरह आभास मात्र स्तर पर नहीं, वरन् बिल्कुल उसी तरह देखा जा सकेगा जिस तरह आँखों से देखा जाता है। तब वह पहचानना कठिन हो जाएगा कि, जो दृश्य देख रहे हैं, वह असली है या नकली। भूतकाल को हम वर्तमान में पूर्णतया वैसा ही देखेंगे, मानो वह सचमुच अभी-अभी ही घटित हो रहा है और हम उसे बिल्कुल असली रूप में देख रहे हैं। ऐसा 'त्रियायतन' फोटोग्राफी के सुविकसित विज्ञान के द्वारा संभव हो सका।

दुर्योधन को पांडवों के घर जाकर थल में जल और जल में थल दिखाई दिया था। वह दर्पण का चमत्कार नहीं था। दर्पण के लिए दूसरी छवि वैसी ही सामने उपस्थित होनी चाहिए। वैसा वहाँ कहाँ था ? खुले आकाश में बिना किसी पर्दे की सहायता के अभीष्ट दृश्यों को देख सकना निःसंदेह बहुत ही अद्भुत है। पहली बार जिन्हें वैसा कुछ देखने को मिलेगा, वे निःसंदेह अवाक् रह जाएँगे और अपनी आँखों पर विश्वास न करेंगे। संजय ने घर बैठे महाभारत के दृश्य देखे थे और सारा घटना-क्रम धृतराष्ट्र को सुनाया था। इस संभावना की टेलीविजन ने पुष्टि कर दी थी। अब रही-बची कसर 'होलीग्राफी' ने पूरी कर दी है। उस विज्ञान के आधार पर हम देश-काल की समस्त परिधियों को तोड़कर किसी घटना-क्रम को इतने स्पष्ट और इतने निर्दोष रूप में देख सकते हैं कि, असल-नकल को पहचान सकना ही संभव न रहे।

विज्ञानाचार्य आइन्स्टीन ने देश और काल की मान्यता को भ्रांत-अवास्तविक सिद्ध किया है। वेदांत दर्शन में जगत् को माया-भ्रांतिवत् कहा है और रज्जु-सर्प का उदाहरण देकर बताया है कि, जो कुछ हम देखते हैं—वह वास्तविक नहीं है। अणु विज्ञानी की दृष्टि में यह संसार अणु-धूलि के. आँधी-तूफान से भरा बवंडर मात्र है। इसमें भँवर-चक्रवात जैसे उपक्रम बनते-बिगड़ते रहते हैं, उन्हें ही अमुक पदार्थों के रूप में अनुभव किया जाता है। जो कुछ दिखाई देता है, वह खोखला आवरण मात्र है, उसके भीतर
आणविक हलचलों का अंधड भर चलता रहता है। हमारा मस्तिष्क और नेत्र संस्थान अपनी बनावट एवं अपूर्ण संरचना के कारण वह सब देखता है, जिसे हम यथार्थ मानते हैं, पर वस्तुतः होता कुछ और ही है।

स्थिर तस्वीरों को चलती-फिरती दिखाकर सिनेमा ने बहुत पहले ही यह सच्चाई सामने ला दी थी कि, आँखों को प्रामाणिक साक्षी नहीं माना जा सकता। वे जो कुछ देखती या अनुभव करती हैं, वह सब का सब यथार्थ ही नहीं होता। अब रही बची होलीग्राफी ने पूरी कर दी है। वह पर्दे पर नहीं, खुले आकाश में हमें ऐसे दृश्य दिखा सकती हैं, मानो उस देश-काल की स्थिति यथार्थ रूप से देखी जा रही है, जो वस्तुतः दूरवर्ती ही नहीं—भूतकाल की भी है। उस दृश्यावली को फोटोग्राफी कहना–स्वीकार करना भी दर्शक के लिए संभव न रहेगा।

अध्यात्म विद्या के आधार पर देश-काल की परिधि के बाहर के दृश्य को देख सकना संभव रहा है, इसे दिव्य दृष्टि कहा जाता रहा है। दिव्य दृष्टि की बात अविश्वसनीय नहीं है। यह तथ्य होलीग्राफी के रूप में अब सामने आ खड़ा हुआ है। वेदांत का वह कथन भी अब गंभीरतापूर्वक विचार करने योग्य प्रतीत होता है कि, हमारी आँखें धोखा खाती हैं और अवास्तविक को वास्तविक समझती हैं। यह तथ्य भी उभरता आता है कि, हमारे सामने की दिशा में और नियत सीमा के दृश्य ही देखे जा सकते हैं। किसी भी दिशा के, पीठ पीछे के भी भूतकाल के, दूर देश के भी दृश्य हम इन्हीं आँखों से देख सकते हैं कि, देश-काल की मान्यता भ्रामक है।

प्रकाश किरणों को छवि के रूप में पकड़ने की कला अब फोटोग्राफी टेलीविजन तक सीमित नहीं रही, अब वे आधार प्राप्त कर लिए हैं, जिनसे तीन आयामों वाले–त्रिविमितीय चित्र देखे जा सकें। आमतौर से फोटोग्राफी लंबाई-चौड़ाई का ही बोध कराती है, गहराई का तो उसमें आभास मात्र ही होता है। यदि गहराई को भी प्रतिबिंबित किया जा सके, तो फिर आँखों से देख जाने वाले
दृश्य और छाया अंकन में कोई भेद न रहेगा। ऐसा दृश्य प्रचलन संभव हो सका, तो फिल्में अपने वर्तमान अधूरे स्तर की फोटोग्राफी तक सीमित नहीं रहेंगी, वरन् पर्दे पर रेल, मोटर, घोड़े, मनुष्य आदि उसी तरह चलते, दौड़ते दिखाई पड़ेंगे, मानो वे अपने यथार्थ स्वरूप में ही आँखों के आगे गुजर रहे हैं। यदि सामने से अपनी ओर कोई रेल दौड़ती आ रही हो या शेर झपटता आ रहा हो, तो बिल्कुल यही मालूम पड़ेगा कि, अब अपने ऊपर ही चढ़ बैठने वाले हैं। ऐसी दशा में आरंभिक अभ्यास की स्थिति में सिनेमा दर्शक को भयभीत होकर अपनी सीट छोड़कर भागते ही बनेगा।

प्रकाश विज्ञानी एर्नेस्टएये और उनके सहयोगी शिष्य डी० गैवर ने होलीग्राफी के एक नए सिद्धांत का आविष्कार किया, जिसके आधार पर त्रिविमितीय स्तर का छाया-चित्रण आँखों से देखा जा सकेगा और भूतकालीन दृश्यों को इन्हीं आँखों से इस प्रकार देखा जा सकेगा, मानो वह घटना-क्रम अभी-अभी ही बिल्कुल सामने घटित हो रहा है।

इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी के इस विधि-विज्ञान को रूस की विज्ञानी यूरीदैनिस्यूक के नेतृत्व में और भी आगे बढ़ाया है। इस युग में वैज्ञानिकों ने परंपरागत पतली परत वाली फोटो 'प्लेटों के स्थान पर मोटी परत लगाई और उन पर प्रकाश किरणों को गहराई तक प्रवेश कर सकने का अवसर दिया। फलतः तीन आयाम वाले चित्रों की एक विशेषता यह है कि जिस कोण से इन्हें देखा जाए, वे उसी कोण से खींचे हुए पूर्ण प्रतिबिंब दिखाई पड़ेंगे। सामने खड़े होकर देखें, तो वे सामने से खिंचे हुए दीखेंगे और अगल-बगल से देखने पर लगेगा, कि उन्हें इसी प्रकार खींचा गया और जितना अंश वहाँ खड़े हुए दृश्य को जिस रूप में देखा जा सकता था, फोटोग्राफ ठीक उसी तरह का दीख रहा है।

होलीग्राफी वस्तुतः 'लेजर' किरणों के अनेक चमत्कारों में से एक है। लेजर का सैद्धांतिक आविष्कार आइंस्टाइन ने किया था। ५० वर्ष बाद उस परिकल्पना को साकार बनाया चार्ल्स टाडनेस ने सन १६५४ में। परमाणुओं को एक विशेष विधि से उत्तेजित करने और उनसे एक जैसी माइक्रो तरंगें निकालने की आरंभिक प्रक्रिया मेजर' कहलाती थी। उसी का परिष्कृत रूप चार वर्ष बाद सामने आया और वह 'लेजर' कहलाया।

कुछ पदार्थों को गरम या उत्तेजित करने से एक विशेष प्रकार की ऊर्जा एवं आभा निकलती है, जो रोशनी की बत्ती से भिन्न प्रकार की होती है। साधारण प्रकाश कई रंगों की किरणों से मिलकर बना होता है और वे किरणें अलग-अलग लंबाइयों और कलाओं की होती हैं। इंद्र धनुष पड़ते समय यह लंबाई की भिन्नता ही उस सुंदर दृश्य के रूप में अपना परिचय देती है। इस बिखराव को एक भीड़-भेड़चाल कह सकते हैं। लेजर प्रक्रिया में परमाणुओं को उत्तेजित करके एक ही रंग की, एक ही कद की किरणें निकाली जाती हैं और उन्हें अधिकाधिक सघन बनाया जाता है। इतने से ही वे किरणे इतनी प्रचंड हो उठती हैं कि—गजब का काम करती हैं। इन्हें अब तक के उपलब्ध शक्ति स्रोतों में सबसे अधिक प्रचंड माना जाता है। अणु विस्फोट की शक्ति से भी कई क्षेत्रों में यह अधिक तीखी और पैनी है। लेजर किरणों के प्रयोग से अगले दिनों भौतिक क्षेत्रों में अनोखी एवं क्रांतिकारी प्रतिक्रिया सामने आने वाली है। उन्हीं में से एक होलीग्राफी भी है।

आविष्कार के प्रारंभिक दिनों में यह कठिनाई थी कि, लेजर किरणें केवल एक ही रंग की किरणें उत्पन्न करती थी, इसलिए फोटो भी एक रंग के बनते थे। दूसरी कठिनाई यह थी कि, खींचने की तरह देखने में भी लेजर किरणों का प्रकाश ही प्रयुक्त करना पड़ता था। स्पष्ट है कि, लेजर अत्यंत खतरनाक होती है। उनका तनिक भी व्यतिक्रम हो जाए तो सर्वनाश निश्चित है। अब उसमें कितने ही सुधार हो गये हैं। विज्ञानी लिपमाना ने तीन आयाम वाली फोटोग्राफी के लिए जो 'प्लेट' बनाई थी, वे होलीग्राफी में फिट बैठ गई हैं और तस्वीर देखने के लिए साधारण रोशनी के प्रयोग से काम चलने लगा है। यह सुधार हो जाने से अब मार्ग निष्कंटक हो गया और सर्व-साधारण के लिए होलीग्राफी का आनंद ले सकना संभव हो गया। अब उसके लिए सुलभ यंत्रों का बनना ही शेष रह गया है।

होलोग्राफी का आविष्कार ब्रिटिश नागरिक डॉ० डैनिस गैवर ने किया। उसे इसके उपलक्ष्य में भौतिकी का नोबल पुरस्कार मिला है। चमत्कारी आविष्कारों में इस भौतिकी को अपने ढंग की अत्यंत अद्भुत ही कहा जायेगा। यों अभी उसका क्षेत्र निर्धारित प्रयोगशालाओं में ही है। फिल्म या टेलीविजन की तरह उसका विस्तार इतना व्यापक नहीं हुआ है कि, जनसाधारण उससे लाभ उठा सके, पर वह दिन दूर नहीं, जब यह आविष्कार सर्व सुलभ हो जाएगा। फोटोग्राफी का विज्ञान आविष्कृत होने के ११२ वर्ष बाद सर्व साधारण के लिए प्रयोग योग्य बन पाया था। टेलीफोन ५६ वर्ष बाद, टेलीविजन १२ वर्ष बाद, एटम बम ५ वर्ष बाद, अपने आविष्कार के बाद उपयोग में आए थे। होलीग्राफी को भी कुछ समय लग सकता है, पर जब भी वह प्रयुक्त होगी, तब जिन्होंने उसे पहले कभी नहीं देखा था, उन्हें बहुत ही अजीब-किसी जादू लोक के तिलस्म जैसा लगेगा।

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    अनुक्रम

  1. भविष्यवाणियों से सार्थक दिशा बोध
  2. भविष्यवक्ताओं की परंपरा
  3. अतींद्रिय क्षमताओं की पृष्ठभूमि व आधार
  4. कल्पनाएँ सजीव सक्रिय
  5. श्रवण और दर्शन की दिव्य शक्तियाँ
  6. अंतर्निहित विभूतियों का आभास-प्रकाश
  7. पूर्वाभास और स्वप्न
  8. पूर्वाभास-संयोग नहीं तथ्य
  9. पूर्वाभास से मार्गदर्शन
  10. भूत और भविष्य - ज्ञात और ज्ञेय
  11. सपनों के झरोखे से
  12. पूर्वाभास और अतींद्रिय दर्शन के वैज्ञानिक आधार
  13. समय फैलता व सिकुड़ता है
  14. समय और चेतना से परे

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