आचार्य श्रीराम शर्मा >> अतीन्द्रिय क्षमताओं की पृष्ठभूमि अतीन्द्रिय क्षमताओं की पृष्ठभूमिश्रीराम शर्मा आचार्य
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गुरुदेव की वचन...
अंतर्निहित विभूतियों का आभास-प्रकाश
"मुझे अच्छी तरह स्मरण है, तब मैं सात वर्ष का बच्चा था। पिताजी किसी काम से बाहर गये थे। विचार और भावनाएँ कहाँ से आती हैं, मुझे कुछ मालूम नहीं है, किंतु मुझे इनमें मानव-जीवन का कुछ यथार्थ दर्शन और अमरता का रहस्य छिपा हुआ जान पड़ता है। ऐसा मैं इस आधार पर कहता हूँ कि, मुझे उस दिन यों ही एकाएक खेलते-खेलते ऐसा लगा कि, पिताजी एक ट्राम से घर आ रहे हैं। ट्राम दुर्घटना ग्रस्त हो गई है और उसमें पिताजी बुरी तरह घायल हो गए हैं। बिना किसी दूरदर्शन (टेलीविजन) यंत्र के इस तरह का आभास क्या था ? मुझे कुछ पता नहीं है।"
रीडर्स डाइजेस्ट नामक विश्व विख्यात मासिक पत्रिका में "सैम बेंजोन की सूक्ष्म शक्तियाँ" नामक शीर्षक से यह पंक्तियाँ उद्धृत की गई हैं। पूर्वाभास की घटनाओं का उल्लेख करते हुए इसमें लेखक ने स्वीकार किया है कि-"संसार में कोई एक ऐसा तत्त्व भी है, जो हाथ-पॉव विहीन होकर भी सब कुछ कर सकता है, कान न होकर भी सब कुछ सुन सकता है, आँखें उसके नहीं हैं, पर वह अपने आपके प्रकाश में ही सारे विश्व को एक ही दृष्टि में देख सकता है। त्रिकाल में क्या संभाव्य है ? यह उसको पता है। उसका संबंध विचार और भावनाओं से है, इसलिए यह कहा जा सकता है कि, विचार और ज्ञान की शक्ति चिरभूत और सनातन है।"
सैम बेंजोन अपनी माँ के पास गया और कहा-"माँ ! पिताजी घायल हो गए लगते हैं, मुझे अभी-अभी ऐसा आभास हुआ है कि, वे जिस ट्राम से वापस आ रहे थे, वह दुर्घटना ग्रस्त हो गई है।" माँ ने बच्चे को झिड़की दी-"तुझे यों ही ख्याल आया करते हैं, चल भाग जा, अपना काम कर।"
बच्चा अभी वहाँ से गया ही था कि, सचमुच उसके पिता घायल अवस्था में घर लाये गए। पूछने पर ज्ञात हुआ कि, सचमुच वे जिस ट्राम से आ रहे थे, वह दुर्घटना ग्रस्त हो गई, उसमें कई व्यक्ति मारे गए। माँ को जितना पति की चोट का दुःख था, उससे अधिक पुत्र के पूर्वाभास का आश्चर्य। हमारे जीवन में ऐसे अनेक बार आत्मा से प्रकाश आता है, जिसमें हमें कुछ सत्य अनुभव होते हैं, पर सांसारिकता में अनुरक्त मनुष्य उनसे आत्म-ज्ञान प्राप्त करने की आवश्यकता कहाँ अनुभव करते हैं ?
क्रिसमस का त्यौहार आया। घर दावत दी गई। बहुत से मित्र, संबंधी और पड़ोसी आये। लोगों ने अनेक तरह के उपहार दिये। उपहार के सब डिब्बे एक तरफ रख दिये। प्रीतिभोज चलता रहा। सबको बड़ी प्रसन्नता रही। हँसी-खुशी के वातावरण में सब कुछ सानंद संपन्न हुआ।
मेहमान घरों को विदा हो गए, तब डिब्बों की पड़ताल प्रारंभ हुई। माँ ने बच्चे से कहा-बेंजोन ! तू बड़ा भविष्यदर्शी बनता है, बोल इस डिब्बे में क्या है ?" 'बेसबाल' माँ ! ऐसे जैसे उसने खोलकर देखा हो। जबकि डिब्बा जैसा आया था, वैसे ही बंद था, किसी को भी खोलने तो क्या, देखने का भी अवकाश नहीं मिला था।
डिब्बा खोला गया। माँ अवाक् रह गई। सचमुच डिब्बे में 'बेसबाल' ही था।
अब जब एक्सरे जैसे यंत्र बन गए हैं, जो त्वचा के आवरण को भी पार करके भीतर के चित्र खींच देते हैं, तो यह कोई आश्चर्यजनक बात नहीं रह गई है। किंतु बिना किसी 'लेन्स' या यंत्र के डिब्बे के भीतर की वस्तु का ज्ञान प्राप्त कर लेना यह बताता है कि, विचार और भावनाओं की शक्ति इतनी दिव्य और सूक्ष्म है कि, गहन अंतराल में छिपी हुई वस्तुओं का भी ज्ञान बिना किसी माध्यम के प्राप्त कर सकती है। इससे उसकी सर्वव्यापकता का पता चलता है।
सैम बेंजोन की घरों में रंग-रोगन करने वाले एक पेंटर मार्टिन से जान-पहचान थी। एक दिन वह अपने ऑफिस में बैठे हुए कुछ काम कर रहे थे। एक रात सैम बेंजोन घर पर सो रहे थे। एककाएक उनकी नींद टूटी। उन्हें ऐसा लगा कि, कहीं से किसी के जलने की दुर्गंध आ रही है। अपनी धर्मपत्नी को जगाकर उन्होंने पूछा-"देखना चाहिए, कहीं कुछ जल तो नहीं रहा।" पति-पत्नी ने सारा घर ढूँढ लिया, कहीं कोई आग या जलती हुई वस्तु नहीं मिली। बेंजोन ने कहा-"मुझे ऐसा लगता है, दुर्गंध तुम्हारी माँ के घर से आ रही है।"
पत्नी ने बिदक कर कहा-"पागल हुए हो, मेरी माता जी का घर आठ मील दूर है, इतनी दूर से कोई दुर्गंध आ सकती है। सैम बेंजोन ने थोड़ा जोर देकर कहा-"तुम जानती हो मेरा आत्मविश्वास प्रायः अचूक होता है। देखो टेलीफोन करके ही पूछ लो, सचमुच कोई बात तो नहीं।"
पत्नी ने रिंग बजाई, उधर से कोई आवाज नहीं आई। किसी ने टेलीफोन नहीं उठाया। लगभग १५ मिनट तक प्रयत्न करने के बाद भी जब उधर से किसी ने टेलीफोन रिसीव' (उठाया) नहीं किया, तो पत्नी ने झिड़ककर कहा-"सब लोग सो रहे होंगे, व्यर्थ ही परेशान किया।" पर तभी उधर से 'हलो' की आवाज आई माँ ने बताया कि घर के पिछले हिस्से में आग लग गई थी, पड़ौसियों की सहायता से उसे बुझाया जा सका। इस घटना का पत्नी पर कुछ ऐसा प्रभाव पड़ा कि, फिर उन्होंने आत्मा के अस्तित्व से कभी इनकार नहीं किया। वे रातभर इस विलक्षण तत्त्व के बारे में सोचती रहीं।
यह तो एक व्यक्ति से संबंधित घटना हुई। कई बार साधारण व्यक्तियों को सामान्य अवस्था में भी इस प्रकार की अनुभूतियाँ होती हैं, जो लगती तो स्वप्न जैसी हैं परंतु उनकी प्रामाणिकता के कारण वे वास्तविक सी भी लगती हैं। उस समय की अनभतियों पर भले ही विश्वास न हो, परंतु कालांतर में वही घटनाएँ सत्य सिद्ध होती हैं।
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- भविष्यवाणियों से सार्थक दिशा बोध
- भविष्यवक्ताओं की परंपरा
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