लोगों की राय

आचार्य श्रीराम शर्मा >> अन्त्याक्षरी पद्य-संग्रह

अन्त्याक्षरी पद्य-संग्रह

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : श्रीवेदमाता गायत्री ट्रस्ट शान्तिकुज प्रकाशित वर्ष : 2001
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4136
आईएसबीएन :00000

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

67 पाठक हैं

जीवन मूल्यों को स्थापित करने के लिए अन्त्याक्षरी पद्य-संग्रह

अन्त्याक्षरी

 

(अ)


अंगार दहकते लाये हैं , यह महाकाल ने पहुँचाये हैं।
जिसको लेने में लाभ दिखे, वह मूल्य चुकाये ले जाये॥

अंदेसड़ा न भाजिसी, संदेसो कहियाँ।
कै हरि आयाँ भजिसी, कै हरि ही पास गयाँ॥

अंधकार आसुरी वृत्ति को, जिसने दूर भगाया।
देवदूत उतरा धरती पर, जग पहचान न पाया॥

अंषडिया झाईं पड़ी, पंथ निहारि-निहारि।
जीभड़ियाँ छाला पड्या, राम पुकारि-पुकारि॥

अगर आपका स्नेह मिलता रहेगा।
तो यह कारवाँ साथ चलता रहेगा।।

अगर चाहते हो बने स्वर्ग धरती।
तो संकल्प तुमको उठाने पड़ेंगे।।

अगर हम नहीं देश के काम आये।
धरा क्या कहेगी गगन क्या कहेगा॥

अति अगाध अति ओथरे, नदी कूप सर बाय।
सो ताको सागर जहाँ, जाकी प्यास बुझाय॥

अति अपार जे सरित बर, जो नृप सेतु कराहिं।
चढ़ि पिपीलिकउ परम लघु, बिनु श्रम पारहिं जाहिं॥

अति हठ मति कर हठ बढ़े, बात न करिहै कोय।
ज्यों-ज्यों भीजै कामरी, त्यो-त्यों भारी होय॥

अति ही सरल न हजिए, देखो जो वन राय।
सीधे-सीधे काटिये, बाँके तरु बचि जाय॥

अद्वितीय है निर्माणों में, गुरुओं का निर्माण।
जिनने फूंके चलती-फिरती, प्रतिमाओं में प्राण॥

अधर धरत हरि के परत, ओठ डीठि पट जोति।
हरित बाँस की बाँसुरी, इन्द्रधनुषि सी होति॥

अनुग्रह यही आपका कौन कम है।
दिशा हीन जीवन न रहने दिया है।।

अटल आस्था जिन्दगी में जगाकर।
दलित दीन जीवन न रहने दिया है।।

अनसमझे अनसोचना अबसि समुझिए आप।
तुलसी आप न समुझिए पल-पल पर परिताप॥

अनुचित उचित विचार तजि, जे पालहि पितु बैन।
ते भाजन सुख-सुजस के, बसहिं अमरपति ऐन॥

अनुचित वचन न मानिए,जदपि गरायसु गाढ़ि।
है रहीम रघुनाथ ते, सुजस भरत को बाढ़ि॥

अनुदान और वरदान प्रभो, जो माँगें उनको दे देना।
गुरुदेव हमें निज अन्तर की, पीड़ा में हिस्सा दे देना॥

अनुदानों का ऋण चुका सकें, वह शक्ति हमें देना गुरुवर।
उपकार नहीं हम भुला सकें, अभिव्यक्ति हमें देना गुरुवर॥

अन्तर दावा लगि रहे, धुआँ न प्रगटै सोय।
कै जिय जाने आपनो, जा सिर बीती होय॥

अपजस जोग कि जानकी, मानि चोरी की कान्ह।
तुलसी लोग रिझाइबो, करषि कातिबो नाहि॥

अपना दीप जलाओ साथी, करो ज्योति अगवानी।
साथी करो ज्योति अगवानी॥

अपना देश बनाने वाले हम बच्चे।
नव निर्माण रचाने वाले हम बच्चे॥

अपनी-अपनी गरज सब, कोलत करत निहारे।
बिन गरजे बोले नर्हि, गिरवर हूँ को मारे॥

अपनी कहै मेरी सुनै, सुनि मिलि एको होय।
हमरे देखत जग जात है, ऐसा मिला न कोय॥

अपनी राह चला लो भगवन्, अपनी राह चला लो।
हमे साथ ले हाथ-हाथ ले, अपनी रास रचा लो भगवन्।।
अपनी राह चला लो॥

अपनी संस्कृति के मन में, आदर भाव जगाओ।
यही जननी है विश्व संस्कृति की, सबको बतलाओ॥

अपनी भक्ति का अमृत पिला दो प्रभु।
पार नैया मेरी अब लगा दो प्रभु॥

अपने-अपने ठौर पर, शोभा रहत विशेख।
चरन महावर ही भली, नैनन अंजन रेख॥

अपने-अपने शिरों का, सबन लीन्ह है मान।
हरि की बात दुरन्तरी, परी न काहू-जान।।

अपने-अपने मत लगे, बाद मचावत शोर।
ज्यों-त्यों सबही सेइबो, एकै नन्द किशोर॥

अपने आजाद भारत की हमको कसम।
जान दे देंगे प्यारे वतन के लिए॥

अपने दुःख में रोने वाले मुस्कुराना सीख लें!
दूसरों के दर्द में आँसू बहाना सीख लें॥

अपने भक्तों में हमको बिठा लीजिए।
ठोकरें खा रहे हैं बचा लीजिए॥

अपनों कर तब आपु लखि, सुनि गुनि आप विचार।
अन्य न कोऊ दुख दे सकै, सुखदा सुमति अधार॥

अब खर्ल ले दर्ल है, उदय अस्त लों राज।
भक्ति महातम न तुले, ई सब कौने काज॥

अब तेरा दुःख दर्द हृदय का माँ हमने पहचाना।
इसीलिए तो पहन लिया है यह केसरिया बाना॥

अब तो जूझया ही बणै, मुड़ि चाल्या घर दूर।
सिर साहिब को सौंपता, सोंच न कीजै सूर॥

अब परिवारों का निर्माण करें, हम शान्ति भरे जीवन में।
हम रहना सीखें हिलमिल कर, सुख के फूल खिले जीवन में॥

अब मोह रूढ़ियों का हम छोड़ने चले हैं।
नाता विवेक से हम जोड़ने चले हैं।।

अब नव युग की गंगोत्री से, बही ज्ञान की धारा है।
हम युग का निर्माण करेंगे, यह संकल्प हमारा है॥

अब रन का कौ बरनिये, मोपे लख्या न जाइ।
अपना बाना बाहिया, कहि-कहि थाके माइ॥

अब रहीम मुसिकल पड़ी, गाढ़े दोऊ काम।
साँचे से तो जग नहीं, झूठे मिले न राम॥

हम मानव राष्ट्र बनायें, छोड़ेंजाति-पाँति की ममता। विश्व प्रेम फैलायें॥

अमरबेलि बिनु मूल की, प्रतिपालत है ताहि।
रहिमन ऐसे प्रभुहि तजि, खोजत फिरिए काहि॥

अम्बर से पानी बरसाता, पत्थर में जो फूल खिलाता।
ऐसी दुनिया को बनाने वाला कौन है॥

अम्मा! मैं इन्सान बनूँगा,जिस धरती पर फूल चढ़ाये।
मैं ऐसा भगवान बनूँगा॥

अरे! ईश के अंश आत्मा विश्वास जगाओ रे।
होकर राजकुमार न तुम कंगाल कहाओ रे॥

अरे! परेखो को करे, तुही विलोकि विचारि।
किहिं नर किंहि सर राखियो, खरे बढ़े पर पारि॥

अरे मन माँ की शरण गहो।
भूलो भटको नहीं भ्रमों में, यों ही दुःख न सहो।

अरे बावले तू अपने ही, मद मे बैठा चूर है।
इसीलिए तो परमेश्वर भी, तुझसे कोसों दूर है॥

अरे हंस या नगर में जैयो आपि विचारि।
कागनि सो जिन प्रीति करें, कोकिल दई बिड़ारि॥

अलख लखौं अलखें लखौं लखों निरंजन तोहि।
हौं कबीर सबकों लखों, मोरों लखे न कोई॥

अलिमण्डल मण्डित मण्डतलम, तिलकी कृत कोमल चन्द्रकलम।
करघात विदारण वैरिदलम्, प्रणमामि जटायुपतिं जटिलम्॥

अल्हड़ता उन्माद न हो, जीवन को धन्य बनायें हम।
अपने सुख के साथ-साथ, बलिदानी शिष्य कहायें हम॥

अवतरित हुई माँ गायत्री, युग शक्ति बनी निश्चित जानो।
आ गया समय युग बदलेगा, इस काल शक्ति को पहचानो॥

अवतार लिया था भारत में, सेवा से घर-घर फैल गये।
घट-घट वासी से होड़ लगा, गांधी घर-घर में फैल गये॥

अवसर कौड़ी जो चुकै, बहुरि दिये का लाख।
दुइज न चन्दा देखिये, उदै कहा भरि पाख॥

अश्वमेध की ध्वजा उठाकर, बढ़ो सृजन सेनानी।
भारत माँ के गौरव की तुम, रच दो नयी कहानी॥

अश्वमेध पर्व है यजन करो-यजन करो।
यज्ञ योग्य भाव बुद्धि कर्म का सृजन करो॥

असुन्न तखत अड़ि आसना, पिण्ड झरोखे नूर।
जाके दिल में हौं बसा, सैना लिए हजूर॥

असुर तत्व हावी है सब पर, कैसे तुम्हें सहाता है।
वीर-भूमि की ओ सन्तानों, युग-ऋषि तुम्हें बुलाता है॥

अस्ति कहौ तो कोई न पतीजे,बिना अस्ति का सिद्धा।
कहहिं कबीर सुनो ही सन्तों, हीरी हीरा बेधा॥

अहिरह तजि खसमह तजि, बिना दाद की ठोर।
मुक्ति परी बिललात है, वृन्दावन की खोर॥


...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. ज्ञ
  2. ट-ण

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book