आचार्य श्रीराम शर्मा >> अन्त्याक्षरी पद्य-संग्रह अन्त्याक्षरी पद्य-संग्रहश्रीराम शर्मा आचार्य
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जीवन मूल्यों को स्थापित करने के लिए अन्त्याक्षरी पद्य-संग्रह
(आ)
आँख से झरता नहीं जल, हृदय में घन छा रहे हैं।
बरसना है मना फिर भी, वे सतत गहरा रहे हैं।।
आँखें नम हो गयीं हमारी, पीड़ा घुली हवाओं में।
आओ युग के सृजन साधकों, फैलो दशों दिशाओं में॥
आई दिवाली-आई दिवाली, देखो आई दिवाली।
दीप की सी निष्ठा की करना, रखवाली आई दिवाली॥
आओ-आओ नौजवान, मुक्त आवाजें गाओ गान।
मानवता नी एकज शान, जीवन सादू जीवी आग॥
आओ सुहागिन नार, कलश सिर धारण करो।
आओ सीता लक्ष्मी नारी, कलश सिर धारण करो॥
आओ बरसायें मन मंदिर में, झाँकी सीताराम की।
जिस मन में सियाराम नहीं, वो काया है किस काम की॥
आगि जो लागी समुद्र में, टूटि - टूटि खसे झोल।
रोवै कबिरा डॉफिया, मोर हीरा जरै अनमोल।।
आगि जो लागि समुद्र में, धुआँ न परगट होय।
की जाने जो जरि भुवा, की जाकी लाई होय॥
आगे-आगे दौं जरो, पाछे हरियर होय।
बलिहारी तेहि वृक्ष की, जड़ काटे फल होय॥
आगे सीढ़ी साँकसी, पाछे चकनाचूर।
परदा तर की सुन्दरी, रहा धका से दूर॥
आज अपने कण्ठ के स्वर से मोहो,
गीतकारो अग्नि अंगारे उगल दो।
वादको! संगीत के स्वर ताल तजकर,
मातृ भू रक्षार्थ रण भेरी बजाओ॥
आज क्रान्ति का बिगुल बजाओ, युग के निर्माताओ।
सुधा धार रहने दो पहले, अंगारे बरसाओ॥
आज गुरु पूर्णिमा पर्व है साथियो,
एक क्षण बैठकर आत्म चिंतन करें।
त्याग-तप से सृजित श्रेष्ठ गुरुतत्व का,
ज्ञान के चक्षु से चारु दर्शन करें।।
आज जरूरत भारत माँ को, बेटे सोच विचार करें।
जो पीड़ा से भरे घाव हैं, उनका वह उपचार करें।।
आज दाँव पर लगा देश का स्वाभिमान सेनानी।
और पड़ा सोया तू कैसे जाग वीर बलिदानी॥
आज बेचैन हैं स्वर्ग की शक्तियाँ।
हे मनुज तुम उठो दिव्य अनुदान लो।।
आज मेरा मन तुम्हारे गीत गाना चाहता है।
शुष्क जीवन में पुनः अब रस बहाना चाहता है॥
आज में जो जिया सो जिया आदमी।
गतागत का नहीं मरसिया आदमी॥
आज समय वह नहीं रह गया, क्यों झगड़े इन्सान रे।
माँ गायत्री भू पर आईं, देने को सद्ज्ञान रे॥
आज हम ब्रह्म यज्ञ के साथ, यहाँ सदज्ञान जगायेंगे।
विमल सद्ज्ञान जगायेंगे-सहज सद्भाव जगायेंगे।।
आजादी की खुली हवा में, निकले सीना तान के।
बालक हिन्दुस्तान के, हम बालक हिन्दुस्तान के।।
आ जाना बन ध्यान हमारे कीर्तन में।
भर जाना माँ प्राण हमारे जीवन में॥
आज काल दिन कैइक में, अस्थिर नाहिं शरीर।
कहहिं कबीर कस गरिवहो, काँचे बासन नीर॥
आत्म गौरव का दिन जन्मदिन तो मना,
आत्म सौरभ का दिन जन्म दिन तो मना।।
मोड़ के आगे मंजिल मिलेगी तुझे,
मोड़ दे जिंदगी जन्मदिन तो मना॥
आत्म समीक्षा ऐसी हो जो, बना सके इन्सान को।
दृष्टि अगर हो आत्म प्रगति की, भगा सके हैवान को॥
आत्म साधना ऐसी हो जो, चटका दे चट्टान को।
शाश्वत प्राण ज्योति पी जाये, अन्धकार अज्ञान को।।
आदमी-आदमी को सुहाता नहीं,
आदमी से अरे! डर रहा आदमी।
हाल इतना बुरा है कि विश्वास भी,
आदमी पर नहीं कर रहा आदमी॥
आदर घटै नरेस ढिंग, बसे रहै कछ नाहिं।
जो रहीम कोटिन मिलै, धिक् जीवन जग माँहि॥
आदि शक्ति तुम वीर प्रसूता, प्रेम मूर्ति साकार।
दुष्प्रवृत्तियों के रावण का करना है संहार॥
आधी साखी सिर खड़ी, जो निरुवारी जाय।
क्या पण्डित को पोथिया, जो राति-दिवस मिलि गाय॥
आप अनेकन छू कये, नहिं मानहिं दुष्कर्म।
होते विधवा व्याह पर जात रसातल धर्म॥
आप-आप कहँ सब भलो, अपने कहँ कोई-कोइ।
तुलसी सब कहँ जो भलो, सुजन सराहिय सोइ॥
आपका सान्निध्य हम, मन में बसायेंगे सदा।
परिजनो! अब आप हमको, याद आयेंगे सदा॥
आपका स्वागत है श्रीमान्।
बड़े भाग्य जो आप बने हैं, हम सबके मेहमान।।
आप न काहू काम के, डार पात फल फूल।
औरन को रोकत फिरै, रहिमन पेड़ बबूल।।
आपन छोड़े साथ जब, ता दिन हितू न कोइ।
तुलसी अंबुज अंबु बिनु, तरनि तासु रिपु होइ॥
आप बुरे जग है बुरौ, भलौ भले जग जानि।
तजत बेर की छाँह सब, गहत आम की आनि॥
आपसे इस तरह रोज मिलते रहे,
आपके द्वारा निस्तार हो जायेगा।
आपका ध्यान यूं रोज धरते रहे,
तो किसी रोज दीदार हो जायेगा।।
आप हिम्मत बँधाकर हमें चल दिये।
किन्तु सामीप्य की याद तो आयेगी॥
आपा मेट्याँ हरि मिलै, हरि मेट्याँ सब जाइ।
अकथ कहाणी प्रेम की, कयाँ न कोउ पत्याइ॥
आपुहि मद को पान कर, आपुहि होत अचेत।
तुलसी विविध प्रकार को, दुख उत्पति एहि हेत॥
आमंत्रण है तुम्हें देश के वीर जवानो।
इस दुनिया को आज बदलकर ही रखना है॥
आया देवदूत धरती पर स्वर्णिम सृष्टि बसाने।
तम से लड़ने ज्योति सुतों को फिर झकझोर जगाने॥
आवत गारी एक है, उलटत होइ अनेक।
कह कबीर नहीं उलटिए, वही एक की एक॥
आवत जात न जानिये, तेजहिं तजि सियराम।
घरहिं जवांई लौं घट्यो, खरो पूस दिन मान॥
आसरा इस जहाँ का मिले न मिले, मुझको तेरा सहारा सदा चाहिए।
चाँद तारे फलक पर दिखे न दिखे, मुझको तेरा नजारा सदा चाहिए।।
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