आचार्य श्रीराम शर्मा >> अन्त्याक्षरी पद्य-संग्रह अन्त्याक्षरी पद्य-संग्रहश्रीराम शर्मा आचार्य
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जीवन मूल्यों को स्थापित करने के लिए अन्त्याक्षरी पद्य-संग्रह
(इ)
इक दिन ऐसा होइगा, सब सूपड़े बिछोह।
राजा राणा छत्रपति, सावधान किन होइ॥
इक भीजे चहले परे, बूड़े बहे हजार।
कितो न औगुन जग करत, नै वै चढ़ती बार॥
इतना कर्ज लदा है मुझ पर, सोच रहा किस तरह चुकाऊँ।
किस-किस का मैं कर्जदार हूँ, किस-किसका मैं नाम गिनाऊँ॥
इतना चिन्तन किया तुम्हारा, तुमसे इतना प्यार हो गया।
तजकर अपना रूप तुम्हारा, मैं पावन आकार हो गया।।
इतना बाँटो प्यार-प्यार में, सारा जीवन लय हो।
आज घृणा की नहीं विश्व में, विश्व प्रेम की जय हो॥
इतते सब कोई गये, भार लदाय-लदाय।
उतते कोई न आइया, जासों पूछियो धाय।।
इतने रत्न दिये हैं कैसे, जिससे देश महान है।
भारत की परिवार व्यवस्था ही रत्नों की खान है॥
इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों पर, कुछ नया सृजन कर पायेंगे।
जब महाकाल के न्यौते पर, कुछ नया सृजन कर पायेंगे॥
इन दिनों बात उनसे कही जा रही।
सुन समझ सोच कर जो अमल कर सकें॥
इन्सान से नफरत करते हो,
भगवान को तुम क्या पाओगे।
इन्सान को तुम अपना न सके,
भगवान को क्या अपनाओगे।।
इस तन का दावा करौ बाती मूल्यूं जीव।
लोही सीचों तेल ज्यूं कब मुख देखो पीव॥
इस दहेज ने ही फैलाया, भारी अत्याचार है।
इस दानव को मार भगाओ, यह समाज का भार है।।
इस देश को न हिन्दू ,न मुसलमान चाहिए।
हर मजहब जिसको प्यारा, वो इन्सान चाहिए।।
इस धरा के लिए, इस गगन के लिए।
हम जियेंगे मरेंगे, वतन के लिए॥
इस मिट्टी की महिमा, पावन है इतिहास महान।
विश्व धरा को सदा मसीहा, देना इसकी आन।।
इस वासन्ती लहर को, जो भी वरण कर पायेंगे।
वे सुधा रस पान करके, देवता बन जायेंगे।।
इस विराट जीवन पथ को, मत निज लघुता से तोलो।
पाना है यदि लक्ष्य पथिक!,तो पंख हृदय के खोलो।।
इस विवाह में वर वालों ने, जो आदर्श निभाया है।
मानवता का मान बढ़ाकर, जीवन धन्य बनाया है।।
इहि आसा अटक्यो रहै, अलि गुलाब के मूल।
हवे, बहुरि बसंत ऋतु, इन डारन वे फूल॥
इहि उदर के कारणे, जग जाच्यों निस जाम।
स्वामी-पणौ जो सिरि चढ्यो, सर्यो न एकौ काम।।
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