आचार्य श्रीराम शर्मा >> अन्त्याक्षरी पद्य-संग्रह अन्त्याक्षरी पद्य-संग्रहश्रीराम शर्मा आचार्य
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जीवन मूल्यों को स्थापित करने के लिए अन्त्याक्षरी पद्य-संग्रह
(ख)
खरच बढ्यो उद्यम घट्यो, नृपति निठुर मन कीन।
कहु रहीम कैसे जिए, थोरे जल की मीन॥
खल सो कहिये न गूढ़ तत, होहि कतह अति मेल।
यों फैले जग माँहि जों, जल पर बूंद की तेल॥
खाय न खरचै सूम धन, चोर सबै ले जात।
पीछे ज्यों मधु मच्छिका, हाथ मलै पछतात॥
खाली तज पूरन पुरुष, जेहि सब आदर देत।
रीतौ कुआँ उसारिये, ऐंच भरयो घट लेत॥
खींच लो राम! अब तो धनुष बाण तुम।
आज निर्भय करो त्रस्त संसार को॥
खीरा को मुँह काटिये, मलिये नौन लगाय।
रहिमन कडुवे मुखन को, चहिए यही सजाय॥
खूदन तौ धरती सहै, बाढ़ सहै बनराइ।
कुसबद तौ हरिजन सहै, दूजै सह्या न जाइ॥
खूब खांड है खीचड़ी माहिं पड्याँ टुक लूण।
पेड़ा रोटी खाई करि, गला कटावे कूण॥
खेत खलिहान बदलना है, हमें इन्सान बदलना है।
बदलने यह सारा संसार, हमें कांटों पर चलना है।।
खेत भला बीज भला, बोये मुठी का फेर।
काहे विरवा रूखरा, ये गुण खेतहिं केर॥
खेती बानि विद्या बनिज, सेवा सिलप सुराज।
तुलसी सुरतरू सरिस सब, सुफल राम के काज॥
खैर. खन, खांसी. खशी, बैर, प्रीति, मद-पान।
रहिमन दाबे न दबे, जानत सकल जहान॥
खोलो मन के द्वार, कि कोई आता है।
सुनी नहीं आवाज, कपाट बजाता है।।
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