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आचार्य श्रीराम शर्मा >> अन्त्याक्षरी पद्य-संग्रह

अन्त्याक्षरी पद्य-संग्रह

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : श्रीवेदमाता गायत्री ट्रस्ट शान्तिकुज प्रकाशित वर्ष : 2001
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4136
आईएसबीएन :00000

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जीवन मूल्यों को स्थापित करने के लिए अन्त्याक्षरी पद्य-संग्रह

(उ)


उग आयो पूरब से सूरज, काँधे धरो कुदाल जी।
दूर देश का करो अंधेरो, हाथ लिया मशाल जी॥

उगो सूर्य की तरह गगन पर, बन प्रकाश छा जाओ।
और अँधेरा इस जगती का, जलकर स्वयं मिटाओ॥

उज्जल देखि न धीजिए, बग ज्यूं माडै ध्यान।
धौरे बैठि चपेटसी, यूं ले बूडै ग्यान॥

उजला कपड़ा पहिरि करि, पान सुपारी खाहिं।
एकै हरि के नाव बिन, बाँधे जमपुर जाहिं॥

उठ जाग मुसाफिर भोर भई,अब रैन कहाँ जो सोवत है।
जो सोवत है सो खोवत है, जो जागत है सो पावत है॥

उठो करें पुरुषार्थ आज सब, मिलकर थोड़ा-थोड़ा।
आया अश्वमेध का घोड़ा, आया अश्वमेध का घोड़ा॥

उठो चेतना के नये गीत गाओ।
बढ़ो नव सृजन का सन्देशा सुनाओ॥

उठो देश की नारियो जाग जाओ।
बुलाया नया युग, चरण तो बढ़ाओ॥

उठो बाँसुरी में नई साँस फूंको।
नई जिंदगी स्वर नये माँगती है।।

उद्यम कबहुँ न छाड़िये, पर आसा के मोद।
गागरि कैसे फोरिये, उमड्यो देखि पयोद॥

उद्यम बुद्धि बल सों मिले, तब पावत सुख साज।
अन्ध कन्ध चढ़ि पंगु ज्यों, सबै सुधारत काज॥

उनके पद चिह्नों पर चलकर, यश गौरव हम पायें।
कि जिनने अमर किया इतिहास, आज हम उनकी जय गायें॥

उन चरणों को पूजो जिनने, राहें नई बनाई हैं।
चरण जो कि ठोकर खाकर भी, हरदम आगे बढ़ते हैं।।

उन्नति के शिखर चढ़ो-लेकिन, भौतिक ही सब कुछ मत मानो।
अध्यात्म यही तो कहता है, अपनी भी गरिमा पहचानो॥

उपल बरषि गरजत तरजि, डारत कुलिस कठोर।
चितव कि चातक मेघ तजि, कबहुँ दूसरी ओर॥

उमड़ी है विश्वभर में, विष की विशाल धारा।
ऐसे में है मनुज को, गुरुदेव का सहारा॥

उरग तुरग नारि, पति, नीच जाति, हथियार।
रहिमन इन्हें सँभारिये, पलटत लगै न वार॥

उस महाप्राज्ञ मनीषि को, युग-पुरुष पावन-गुण-सदन।
युग-साधकों का देव-संस्कृति का, सतत शत शत नमन॥


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    अनुक्रम

  1. ज्ञ
  2. ट-ण

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