आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्मवाद ही क्यों ? अध्यात्मवाद ही क्यों ?श्रीराम शर्मा आचार्य
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अध्यात्मवाद ही क्यों किया जाए
यह बात निराशा उत्पन्न करने और मनोबल गिराने के लिए नहीं कही गयी है। यह तो वस्तुस्थिति का विश्लेषण मात्र है। प्रगति पर प्रसन्नता व्यक्त करना अच्छी बात है। हम जिस दिशा में बढ़े हैं उसकी सराहना कौन नहीं करेगा ? इस बात में दो राय नहीं हो सकतीं कि भौतिक-साधनों को बढ़ाने में हम जुटे हैं और उसमें आशाजनक सफलता पाई है, पर यह भुला नहीं दिया जाना चाहिए कि साधनों के बढ़ने के साथ-साथ, उनके सदुपयोग का उत्तरदायित्व भी बढ़ता है। भौतिक प्रगति के समानांतर आत्मिक प्रगति भी होनी चाहिए, अन्यथा उपभोग का संकट उत्पादन की उपलब्धियों को लाभदायक होने के स्थान पर और भी अधिक हानिकारक बना देगा।
सामाजिक सुख-शांति की धुरी भी आध्यात्मिकता ही है। उसे कहने-सुनने की विडंबना बनाकर नहीं रखा जाना चाहिए वरन् व्यावहारिक जीवन में उतारा जाना चाहिए। अध्यात्म कथा-पुराणों के द्वारा सिखाया ही जाना चाहिए, पर उसे सुनने-सुनाने की फलश्रुति में सीमाबद्ध नहीं किया जाना चाहिए। आज तो श्रवण और पठन तक ही अध्यात्मवादी आदर्शों का माहात्म्य मान लिया गया है। कथा सुनने और सुनाने भर से लोग स्वर्ग जाने की उपहासास्पद आशा करते हैं, जबकि वह प्रशिक्षण विशुद्ध रूप से व्यवहारिक जीवन की रीति-नीति में समाविष्ट किए जाने के लिए ही विनिर्मित हुआ है। उसका मर्म समझे बिना, तत्त्व अपनाए बिना ही आध्यात्मिकता की दुहाइयाँ देने से कोई लाभ नहीं निकल सकता। ऐसा करने वाले तो और उस ओर से लोगों को अरुचि हो जाती है। अध्यात्म को उसके सही स्वरूप से समझाया जाना चाहिए। यदि ऐसा हो सके तो हर क्षेत्र में इस ऋषि प्रणीत पद्धति का लाभ उठाया जाना संभव है।
विज्ञान के विकास से लेकर अर्थ साधन बढ़ाने तक के अनेकानेक प्रयत्न समस्याओं के समाधान के लिए चल रहे हैं। यह सब उचित है और यही चलते भी रहें, पर हमारे ध्यान में यह तथ्य बना ही रहना चाहिए कि अध्यात्म का आश्रय लिए बिना न तो व्यक्तिगत उलझने सुलझेंगी और न सामूहिक समस्याओं का समाधान निकलेगा। यदि प्रगति और शांति की वस्तुत: आवश्यकता और आकांक्षा हो तो यह तथ्य समय रहते स्वीकार कर लिया जाना चाहिए कि अध्यात्मवाद के प्रकाश से ही समस्त समस्याओं का हल किया जा सकता है और उसे जीवन में प्रसन्नतापूर्वक, तत्परतापूर्वक अपनाया जाना चाहिए।
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- अध्यात्मवाद ही क्यों ?