आचार्य श्रीराम शर्मा >> आत्मीयता का माधुर्य और आनंद आत्मीयता का माधुर्य और आनंदश्रीराम शर्मा आचार्य
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आत्मीयता का माधुर्य और आनंद
प्रातःकाल बिना चूक मैना तोता को "नमस्ते” कहती। तोता बड़ी ही मीठी वाणी में उसके अभिवादन का कुछ कहकर उत्तर देता। पिंजड़े पास-पास कर दिए जाते। दोनों में वार्ताएँ छिड़तीं। न जाने क्या मैना कहती न जाने क्या तोता कहता, पर उनको देखकर लगता यह दोनों बहुत खुश हैं। दोनों का प्रेम प्रतिदिन प्रगाढ़ होता चला गया-चोंच से दबाकर अपनी चीज बाँटकर खाते।
कुछ ऐसा हुआ कि श्रीमती एनन की एक रिश्तेदार का तोता मर गया, वे जिद करके उसे माँग ले गयीं। ठीक उसी दिन मैना बीमार पड़ गई और चौथे दिन सायंकाल ५ बजे उसने नश्वर देह त्याग दी। तोता कृतघ्न नहीं था। वह बंदी था। चला तो गया, पर आत्मा को बंदी बनाना किसके लिए संभव है। वह भी मैना की याद में बीमार पड़ गया और चौथे दिन सायंकाल ५ बजे उसने अपने प्राण त्याग दिए। पता नहीं दोनों की आत्माएँ परलोक में कहीं मिली या नहीं, पर इस घटना ने श्रीमती एनन का स्वभाव ही बदल दिया। अब उनके स्वभाव में सेवा और मधुरता का ऐसा प्रवाह फूटा कि वर्षों से पारिवारिक कलह में जलता हुआ दांपत्य सुख फिर खिल उठा। पति-पत्नी में कुछ ऐसी घनिष्ठता हुई कि मानो उनके अंतःकरण में तोता और मैना की आत्मा ही साक्षात् उतर आई हों। उनकी मृत्यु भी वियोगजन्य परिस्थितियों में एक दिन ही, एक ही समय पर हुई।
तोता, मैना, बंदर छोटे-छोटे सौम्य स्वभाव जीवों की कौन कहे, प्रेम की प्यास तो भयंकर खूख्वार जानवरों के हृदयों में भी होती है। एफ. कुवियर के एक मित्र को भेड़िया पालने की सूझी। कहीं से एक बच्चा भेड़िया मिल गया। उसे वह अपने साथ रखने लगे। भेड़िया कुछ ही दिनों में उनसे ऐसा घुल-मिल गया मानो उनकी मैत्री इस जन्म की ही नहीं, कई जन्मों की हो।
कुछ ऐसा हुआ कि एक बार उन सज्जन को किसी काम से बाहर जाना पड़ गया। वह भेड़िया एक चिड़ियाघर को दे गए। भेडिया चिड़ियाघर आ गया, पर अपने मित्र की याद में दुःखी रहने लगा। मनुष्य का जन्म-जात बैरी मनुष्य के प्रेम के लिए पीड़ित हो यह देखकर चिड़ियाघर के कर्मचारी बड़े विस्मित हुए। कोई भारतीय दार्शनिक उनके पास होता और आत्मा की सार्वभौमिक एकता का तत्वदर्शन उन्हें समझाता तो संभव था, ये भी जीवन को एक नई आध्यात्मिक दिशा में देखने में समर्थ होते। उनका विस्मय चर्चा का विषय बनकर रह गया।
भेड़िए ने अपनी आत्मीयता की भूख शांत करने के लिए दूसरे जीवों की ओर दृष्टि डाली। कुत्ता-भेड़िया का नंबर एक का शत्रु होता है, पर आत्मा किसका मित्र, किसका शत्रु। क्या तो वह कुत्ता और क्या भेड़िया कर्मवश भ्रमित अग-जग आत्मा से एक है। यदि यह तथ्य संसार जान जाए तो फिर क्यों लोगों में झगड़े हों, क्यों मन-मुटाव, दंगे-फसाद, भेदभाव, उत्पीड़न और दूसरे से घृणा हो। विपरीत परिस्थितियों में भी प्रेम जैसी स्वर्गीय सुख की अनूभूति आत्मदर्शी के लिए ही संभव है, इस घटना का सार-संक्षेप भी यही है। भेड़िया अब कुत्ते का प्रेमी बन गया। उसके बीमार जीवन में भी एक नई चेतना आ गई। प्रेम की शक्ति कितनी वरदायक है कि वह निर्बल और अशक्तों में भी प्राण की गंगोत्री पैदा कर देता है।
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