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आचार्य श्रीराम शर्मा >> आत्मीयता का माधुर्य और आनंद

आत्मीयता का माधुर्य और आनंद

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :56
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4187
आईएसबीएन :81-89309-18-8

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आत्मीयता का माधुर्य और आनंद


दो वर्ष पीछे मालिक लौटा। घर आकर वह चिड़ियाघर गया। अभी वह वहाँ के अधिकारी से बातचीत कर ही रहा था कि उसका स्वर सुनकर भेड़िया भागा चला आया और उसके शरीर से शरीर जोड़ खूब प्यार जताता रहा। कुछ दिन फिर ऐसे ही मैत्रीपूर्ण जीवन बीता।

कुछ दिन बाद उसे फिर जाना पड़ा। भेड़िये के जीवन में लगता है भटकाव ही लिखा था। फिर उस. कुत्ते के पास जाकर उसने अपनी पीड़ा शांत की। इस बार मालिक थोड़ा जल्दी आ गया। भेड़िया इस बार उससे दूने उत्साह से मिला। पर उसका स्वर शिकायत भरा था। बेचारे को क्या पता था कि मनुष्य ने अपनी जिंदगी ऐसी व्यस्त जटिल सांसारिकता से जकड़ दी है कि उसे आत्मीय-भावनाओं की ओर दृष्टिपात और हृदयंगम करने की सूझती ही नहीं। मनुष्य की यह कमजोरी दूर हो गई होती तो आज संसार कितना सुखी और स्वर्गीय परिस्थितियों से आच्छादित दिखाई देता।

कुछ दिन दोनों बहुत प्रेमपूर्वक साथ-साथ रहे। एक-दूसरे को चाटते, थपथपाते, हिलते-मिलते, खाते-पीते रहे और इसी बीच एक दिन उसके मालिक को फिर बाहर जाना पड़ा। इस बार भेड़िए ने किसी से न दोस्ती की, न कुछ खाया-पीया। उसी दिन से बीमार पड़ गया और प्रेम के लिए तड़प-तड़प कर अपनी इहलीला समाप्त कर दी। उसके समीपवर्ती लोगों के लिए भेड़िया उदाहरण बन गया। वे जब कभी अमानवीय कार्य करते तो भेड़िये की याद आती और उनके सिर लाज से झुक जाते।

बर्लिन की एक सर्कस कंपनी में बाघ था। नीरो उसका नाम था। इस बाघ को लीपिजिग के एक चिड़ियाघर से खरीदा गया था। जिन दिनों बाघ चिड़ियाघर में था, उसकी मैत्री चिड़ियाघर के एक नौकर से हो गई। बाघ उस मैत्री के कारण अपने हिंसक स्वभाव तक को भूल गया।

पीछे वह क्लारा हलिपट नामक एक हिंसक जीवों की प्रशिक्षिका को सौंप दिया गया। एक दिन बाघ प्रदर्शन से लौट रहा था तभी एक व्यक्ति निहत्था आगे बढ़ा-बाघ ने उसे देखा और घेरा तोड़कर बाहर निकला। भयभीत दर्शक और सर्कस वाले इधर-उधर भागने लगे। स्वयं क्लारा हलपिट तक यह देखकर दंग रह गई कि बाघ अपने पुराने मित्र के पास पहुँचकर उसे चाट रहा और प्रेम जता रहा है। मानव-मित्र ने उसकी पीठ खूब थपथपाई, प्यार किया और कहा, अब जाओ समय हो गया। बाघ चाहता तो उसे खा जाता, भाग निकलता। पर आत्मीयता के बंधनों में जकड़ा हुआ बेचारा बाघ अपने मित्र की बात मानने को बाध्य हो गया। लोग कहने लगे सचमुच आत्मीयता की ही शक्ति ऐसी है जो हिंसक को भी मृदु, शत्रु को भी मित्र और संताप से जलते हुए संसार सागर को हिम खंड की तरह शीतल और पवित्र कर सकती है।

सृष्टि का हर प्राणी, हर जीव-जंतु स्वभाव में एक-दूसरे से भिन्न है। कुछ अच्छे, कुछ बुरे गुण सब में पाए जाते हैं, पर आत्मीय सद्भावना और प्रेम की प्यास से वंचित कोई एक भी जीव सृष्टि में दिखाई नहीं देता। मनुष्य जीवन का तो संपूर्ण सुख और स्वर्ग ही प्रेम है। प्रेम जैसी सत्ता को पाकर भी मनुष्य अपने को दीन-हीन अनुभव करे तो यही मानना पड़ता है कि मनुष्य ने जीवन के यथार्थ अर्थ को जाना ही नहीं।

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    अनुक्रम

  1. सघन आत्मीयता : संसार की सर्वोपरि शक्ति
  2. प्रेम संसार का सर्वोपरि आकर्षण
  3. आत्मीयता की शक्ति
  4. पशु पक्षी और पौधों तक में सच्ची आत्मीयता का विकास
  5. आत्मीयता का परिष्कार पेड़-पौधों से भी प्यार
  6. आत्मीयता का विस्तार, आत्म-जागृति की साधना
  7. साधना के सूत्र
  8. आत्मीयता की अभिवृद्धि से ही माधुर्य एवं आनंद की वृद्धि
  9. ईश-प्रेम से परिपूर्ण और मधुर कुछ नहीं

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