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आचार्य श्रीराम शर्मा >> आत्मीयता का माधुर्य और आनंद

आत्मीयता का माधुर्य और आनंद

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :56
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4187
आईएसबीएन :81-89309-18-8

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आत्मीयता का माधुर्य और आनंद


अमरीका के मध्य भाग में पाई जाने वाली एक छिपकली के सिर पर अनेक सींग होते हैं। यह माँसाहारी जंतु क्रोध की स्थिति में होता है तो उसकी आँखों में रक्त उतर आता है, फिर वह शत्रु पर कैसा भी भयंकर आक्रमण करने से नहीं चूकती। इसका सारा जीवन ही चींटियों, गिराड़ों को मारने खाने में बीतता है। पर अपनी प्रेयसी के प्रति उसकी करुणा देखते ही बनती है। उसके लिए तो वह गिलहरी और खरगोश की तरह दीन बन जाती है।

बिच्छू बड़ा क्षुद्र जंतु है, किंतु आत्मीयता की प्यास से मुक्त वह भी नहीं। वह अपने बच्चों से इतना प्यार करती है कि उन्हें, जब तक वे पूर्ण नहीं हो जाते पीठ पर चढ़ाए घूमती है। भालू खूख्वार जानवर है, वह भूखा नहीं रह सकता, पर जब कभी मादा भालू बच्चे देगी तो जब तक बच्चों की आँखें नहीं खुल जाएँगी वह उनके पास ही बैठी भूख-प्यास भूलकर उन्हें चूमती चाटती रहेगी।

चींटियों के जीवन में सामान्यतः मजदूर चींटियों में कोई विलक्षणता नहीं होती, उनमें अपनी बुद्धि, अपनी निजी कोई इच्छा भी नहीं होती। एक नियम व्यवस्था के अंतर्गत जीती रहती हैं, तथापि आत्मीयता की आकांक्षा उनमें भी होती है और वे अपने उस कोमल भाव को दबा नहीं सकतीं। इस अंतरंग भाव की पूर्ति वे किसी और तरह से करती हैं। वह तितली के बच्चे से ही प्रेम करके अपनी आंतरिक प्यास बुझाती हैं। यद्यपि यह सब एक प्राकृतिक प्रेरणा जैसा लगता है पर मूलभूत भावना का उभार स्पष्ट समझ में आता है। तितलियाँ फूलों का मधु चूसती रहती हैं, उससे उनके जो बच्चे होते हैं उनकी देह भी मीठी होती है। माता-पिता के स्थूल शारीरिक गुण बच्चे पर आते हैं। यह एक प्राकृतिक नियम है। तितली के नन्हें बच्चे, जिसे लार्वा कहते हैं, मजदूर चींटी सावधानी से उठा ले जाती है, उसके शरीर के मीठे वाले अंग को चाट-चाटकर चींटी अपने परिवार के लिए मधु एकत्र कर लेती है, पर ऐसा करते-करते हुए स्पष्ट-सा पता चलता रहता है कि यह एक स्वार्थपूर्ण कार्य है इससे नन्हें से लार्वे को कष्ट पहुँचता है इसलिए वह थोड़ी मिठास एकत्र कर लेने के तुरंत बाद उस बच्चे को परिचर्या भवन में ले जाती है और उसकी तब तक सेवा-सुश्रूषा करती रहती है जब तक लार्वा बढ़कर अच्छी तितली नहीं बन जाता। तितली बन जाने पर चींटी उसे हार्दिक स्वागत के साथ घर से विदा कर देती हैं। जीव-शास्त्रियों के लिए चींटी और तितली की यह प्रगाढ़ मैत्री गूढ रहस्य बनी हुई है। उसकी मूल प्रेरणा अंतःकरण का वह प्यार ही है जिसके लिए आत्माएँ जीवन भर प्यासी इधर-उधर भटकती रहती हैं।

आस्ट्रेलिया में फैलेंजर्स नामक गिलहरी की शक्ल का एक जीव पाया जाता है। इसे सुगर स्क्वै रेल भी कहते हैं। यह एक लड़ाकू और उग्र स्वभाव वाला जीव है, तो भी अपने बच्चों और परिवारीय जनों के प्रति उसकी ममता देखते ही बनती है। वह जहाँ भी जाती है अपनी एक विशेष थैली में बच्चों को टिकाये रहती है और थोड़ी-थोड़ी देर में उन्हें चाटती और सहलाती रहती है, मानो वह अपने अंतःकरण की प्रेम भावनाओं के उद्रेक को सँभाल सकने में असमर्थ हो जाती हो। जीव-जंतुओं का यह प्रेम-प्रदर्शन यद्यपि एक छोटी सीमा तक अपने बच्चों के कुटुंब तक ही सीमित रहता है तथापि वह इस बात का प्रमाण है कि प्रेम जीव मात्र की अंतरंग आकांक्षा है। मनुष्य अपने प्रेम की परिधि अधिक विस्तृत कर सकता हैं। इसलिए कि वह अधिक संवेदनशील और कोमल भावनाओं वाला है। अन्य जीवों का प्यार पूर्णतया संतुष्ट नहीं हो पाता इसलिए वे अपेक्षाकृत अधिक कठोर, स्वार्थी खूख्वार से जान पड़ते हैं, पर इसमें संदेह नहीं कि यदि उनके अंतःकरण में छिपे प्रेम-भाव से तादात्म्य किया जा सके तो उन हिंसक व मूर्ख जंतुओं में भी प्रकृति का अगाध सौंदर्य देखने को मिल सकता है। भगवान शिव सर्पो को गले में लटकाए रहते हैं, महर्षि रमण के आश्रम में बंदर, मोर और गिलहरी ही नहीं सर्प, भेड़िए आदि तक अपने पारिवारिक झगड़े तय कराने आया करते थे। सारा 'अरुणाचलम्' पर्वत उनका घर था और उसमें निवास करने वाले सभी जंतु उनके बंधु-बांधव, सुहृद-सखा, पड़ौसी थे। स्वामी रामतीर्थ हिमालय में जहाँ रहते, वहाँ शेर, चीते, प्रायः उनके दर्शनों को आया करते और उनके समीप बैठकर घंटों विश्राम किया करते थे। यह उदाहरण इस बात के प्रमाण हैं कि हमारा प्रेमभाव विस्तृत हो सके तो हम अपने को विराट् विश्व परिवार के सदस्य होने का गौरव प्राप्त कर एक ऐसी आनंद निर्झरिणी में प्रवाहित होने का आनंद लूट सकते हैं, जिसके आगे संसार के सारे सुख-वैभव फीके पड़ जाएँ।

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    अनुक्रम

  1. सघन आत्मीयता : संसार की सर्वोपरि शक्ति
  2. प्रेम संसार का सर्वोपरि आकर्षण
  3. आत्मीयता की शक्ति
  4. पशु पक्षी और पौधों तक में सच्ची आत्मीयता का विकास
  5. आत्मीयता का परिष्कार पेड़-पौधों से भी प्यार
  6. आत्मीयता का विस्तार, आत्म-जागृति की साधना
  7. साधना के सूत्र
  8. आत्मीयता की अभिवृद्धि से ही माधुर्य एवं आनंद की वृद्धि
  9. ईश-प्रेम से परिपूर्ण और मधुर कुछ नहीं

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