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आचार्य श्रीराम शर्मा >> आत्मीयता का माधुर्य और आनंद

आत्मीयता का माधुर्य और आनंद

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :56
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4187
आईएसबीएन :81-89309-18-8

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आत्मीयता का माधुर्य और आनंद


६०० वर्ष पूर्व की घटना है। रोम में एक महिला अपने बच्चे से खेल रही थी। वह कभी उसे कपड़े पहनाती, कभी दूध पिलाती, इधर-उधर के काम करके फिर बच्चे के पास आकर उसे चूमती, चाटती और अपने काम में लग जाती। प्रेम भावनाओं से जीवन की थकान मिटती है। लगता है अपने काम की थकावट दूर करने के लिए उसे बार-बार बच्चे से प्यार जताना आवश्यक हो जाता था। घर के सामने एक ऊँचा टावर था उसमें बैठा हुआ एक बंदर यह सब बड़ी देर से, बड़े ध्यान से देख रहा था। स्त्री जैसे ही कुछ क्षण के लिए अलग हुई बंदर लपका और उस बच्चे को उठा ले गया। लोगों ने भागदौड़ मचाई, तब तक बंदर सावधानी के साथ बच्चे को लेकर उसी टावर पर चढ़ गया।

जैसे-जैसे उसने माँ को बच्चे से प्यार करते देखा था स्वयं भी बच्चे के साथ वैसा ही व्यवहार करने लगता। कभी उसे चूमता-चाटता तो कभी उसके कपड़े उतारकर फिर से पहनाता। इधर वह अपने प्रेम की प्यास बुझा रहा था उधर उसकी माँ और घर वाले तड़प रहे थे। बिलख-बिलखकर रो रहे थे। बच्चे की माँ तो एकटक उसी टावर की ओर देखती हुई बुरी तरह चीखकर रो रही थी।

बंदर ने यह सब देखा। संभवतः उसने सारी स्थिति भी समझ ली इसलिए एक हाथ से बच्चे को छाती से चिपका लिया शेष तीन हाथ-पाँवों की मदद से वह बड़ी सावधानी से नीचे उतरा और बिना किसी भय अथवा संकोच के उस स्त्री के पास तक गया और बच्चे को उसके हाथों में सौंप दिया। यह कौतुक लोग स्तब्ध खड़े देख रहे थे। साथ-साथ एक कटु सत्य कि किस तरह बंदर जैसा चंचल प्राणी प्रेम के प्रति इस तरह गंभीर और आस्थावान हो सकता है। माँ के हाथ में बच्चा पहुँचा। सब लोग देखने लगे उसे कहीं कोई चोट तो नहीं आई। इसी बीच बंदर वहाँ से कहाँ गया, किधर चला गया यह आज तक किसी ने नहीं जाना।

पीछे जब लोगों का ध्यान उधर गया तो सबने यह माना कि बंदर या तो कोई दैवी शक्ति थी जो प्रेम की वात्सल्य महत्ता दर्शाने आई थी अथवा वह प्रेम से बिछुड़ी हुई कोई और आत्मा थी जो अपनी प्यास को एक क्षणिक तृप्ति देने आई। उस बंदर की याद में एक अखंड-दीप जलाकर उस टावर में रखा गया। इस टावर का नाम भी उसकी यादगार में बंदर टावर (मंकी टावर) रखा गया। कहते हैं, ६०० वर्ष हुए, यह दीपक आज भी जल रहा है। दीपक के ६०० वर्ष से चमत्कारिक रूप में जलते रहने में कितनी सत्यता है, हम नहीं जानते। पर यह सत्य है कि बंदर के अंतःकरण में बच्चे के प्रति प्रसूत प्यार का प्रकाश जब तक यह टावर खड़ा रहेगा, लाखों लागों को मानव जीवन की इस परम उदात्त ईश्वरीय प्रेरणा की ओर आकर्षित करता रहेगा।

सद्भावनाओं का, प्रेम पूर्ण अंतःकरण का, मनुष्यों पर ही नहीं, पशुओं पर भी प्रभाव पड़ता है, इस तथ्य को प्रतिपादित करने में इंग्लैंड के एक सामान्य व्यक्ति ने न केवल तर्क प्रस्तुत किए, वरन् प्रामाणिकता की प्रतिमा बनकर स्वयं ही खड़ा हो गया। उसने न केवल सामान्य पशुओं पर प्रेम की प्रतिक्रिया का प्रदर्शन किया वरन् यह भी साबित कर दिया कि ख्वार, उदंड और जंगली जानवरों को सभ्य और मृदुल बनाया जा सकता है। इस व्यक्ति का नाम है-जान सोलेमन रेरी।

उसके पिता ओहियो प्रदेश के फ्रेंकलिन गाँव में रहते थे। नाम था एडम रेरी। उन्होंने एक घोड़ा खरीदा। घोड़ा जितना शानदार था, उतना ही सस्ता भी। एडम ने सोचा इसे सधा लेंगे। पर था वह बहुत ही ख्वार। उसे सिखाने सधाने के लिए दूर-दूर से क्रमशः एक दर्जन से भी अधिक घुड़सवार बुलाए गए पर वे सभी असफल रहे। घोड़ा किसी के काबू में न आया। एडम ने स्वयं उसे काबू में लाने की कोशिश की और कोड़े मारे। क्रुद्ध घोड़े ने रस्सों से बँधे होते हुए भी उन्हें ऐसा पछाड़ा कि टाँग टूट गई। उन्हें अस्पताल भिजवाया गया। घोड़ा छूट निकला। उसे खतरनाक समझकर पुलिस द्वारा उसे मरवा देने का निश्चय किया।

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    अनुक्रम

  1. सघन आत्मीयता : संसार की सर्वोपरि शक्ति
  2. प्रेम संसार का सर्वोपरि आकर्षण
  3. आत्मीयता की शक्ति
  4. पशु पक्षी और पौधों तक में सच्ची आत्मीयता का विकास
  5. आत्मीयता का परिष्कार पेड़-पौधों से भी प्यार
  6. आत्मीयता का विस्तार, आत्म-जागृति की साधना
  7. साधना के सूत्र
  8. आत्मीयता की अभिवृद्धि से ही माधुर्य एवं आनंद की वृद्धि
  9. ईश-प्रेम से परिपूर्ण और मधुर कुछ नहीं

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