आचार्य श्रीराम शर्मा >> आत्मीयता का माधुर्य और आनंद आत्मीयता का माधुर्य और आनंदश्रीराम शर्मा आचार्य
|
3 पाठकों को प्रिय 380 पाठक हैं |
आत्मीयता का माधुर्य और आनंद
रेरी अपने मिशन का प्रचार करने के लिए स्वीडन, एशिया, मिश्र, फ्रांस, रूस, अमरीका आदि अनेक देशों में गया और उसने वहाँ घोड़ों पर किए गए अपने प्रयोगों की चर्चा करते हुए प्रेम के परिणाम को जानने और उसे व्यवहारिक जीवन में अधिकाधिक मात्रा में प्रयुक्त करने की प्रेरणा दी। वह जहाँ भी गया, जनता ने उसका भरपूर स्वागत किया।
फ्रांस सरकार ने उसके कर्त्तव्य की शोध करने और उसका निष्कर्ष निकालने के लिए एक आयोग नियुक्त किया। अमरीका के राष्ट्रपति बुकेनन ने उसकी शिक्षा पद्धति के नोट्स लेकर ऐसी पुस्तक लिखाई जिससे घोड़ों को सिखाने-सधाने में सहायता मिले। अश्व विज्ञान की वह पुस्तक अब भी बड़ी प्रामाणिक मानी जाती है।
राल्फ एमर्सन ने कहा था, प्रेम की महत्ता के लिए विनिर्मित ईसाई धर्म के मूल सिद्धांत को रेरी ने जिस अनोखे ढंग से प्रतिपादित किया है, उससे सभ्यता के इतिहास में एक नए अध्याय का आरंभ हुआ है।
अमरीका के सैनडिगों चिड़ियाघर की निर्देशिका वेले जे. वेनशली ने चिड़ियाघर में अपने उन्नीस वर्ष के अनुभवों का जिक्र करते हुए लिखा है, मैंने वन्य पशुओं के जीवन में भी प्रेम की तड़प देखी, वे भी प्रेम से ही सीखते सिखाते हैं। एक बार चिड़ियाघर की मादा भालू ने एक बच्चे को जन्म दिया, उसका नाम टाकू रखा गया। भालू जितना क्रोधी प्रकृति का ख्वार जानवर है उससे अधिक उसमें वात्सल्य भाव देखा जा सकता है। देखने से लगता है संसार की विषम परिस्थितियों ने उसे क्रुद्ध होने पर विवश न किया होता तो भालू संसार में सबसे अधिक स्नेह और ममता वाले स्वभाव का जीव होता। मादा चार माह तक बच्चे को पेट से चिपकाए गुफा में पड़ी रही। गुफा से वह बाहर भी नहीं निकली, किंतु फिर जैसे उसे याद आया कि बच्चे के प्रति प्रेम और वात्सल्य का यह तो अर्थ नहीं कि उसके आत्म विकास को अवरुद्ध रखा जाए। मादा माँद से बाहर आई, नन्हा शिशु उसके साथ-साथ बाहर आया। मादा सीधे तालाब के पास पहुंची और पानी में उतरकर स्नान करने लगी। उसने अपने बच्चे को भी बहुतेरा पानी में उतरने को प्रेरित किया मुँह से तरह-तरह की आवाज निकाली। उससे प्रतीत होता था कि माँ उसे पानी में बुला रही है न आने के लिए उसमें गुस्सा भी है, किंतु वह अपनी प्यार भावना को भी दबा सकने में असमर्थ है। बच्चा अपनी माँ के साथ खिलवाड़ करता है कभी-कभी किनारे पहुंचकर उसके बाल पकड़कर बाहर खींचता है मानों वह माँ को पानी में नहीं रहने देना चाहता। पर माँ जानती है कि आरोग्य के लिए बच्चे को स्नान कराना आवश्यक है। ममतावश उसने कई बार बच्चे को छोड़ा पर उसे गुस्सा भी दिखाना पड़ा। वह नाराजी भी प्रेम का एक अंग थी, भगवान भी तो नाराज होकर अपनी बनाई सृष्टि में अपने बच्चों को दंड देता है, पर उसकी दंड प्रक्रिया भी उसके प्रेम का ही प्रतीक है। खराब से खराब सृष्टि को भी वह नष्ट नहीं करना चाहता। उसे सुधार की आशा रहती है इसलिए वह अपनी उस साधना को न बंद करते हुए भी अपनी संतान पर प्यार रखना नहीं भूलता। स्वयं भी रोता रहता है, पर नाराज होकर सृष्टि को नष्ट कर डालने की बात उसके मन में कभी नहीं आई।
एक दिन मादा ने जबरदस्ती की और उसे पानी में पकड ही तो ले गई। उसने अपने पंजों से बच्चे को अच्छी तरह धोकर स्नान कराया। कभी वह डूबने लगा तो माँ उसे सतह से ऊपर उठा देती। धीरे-धीरे शिशु का संशय दूर हो गया और वह अपनी माँ के साथ अच्छी तरह तैरना सीख गया।
|
- सघन आत्मीयता : संसार की सर्वोपरि शक्ति
- प्रेम संसार का सर्वोपरि आकर्षण
- आत्मीयता की शक्ति
- पशु पक्षी और पौधों तक में सच्ची आत्मीयता का विकास
- आत्मीयता का परिष्कार पेड़-पौधों से भी प्यार
- आत्मीयता का विस्तार, आत्म-जागृति की साधना
- साधना के सूत्र
- आत्मीयता की अभिवृद्धि से ही माधुर्य एवं आनंद की वृद्धि
- ईश-प्रेम से परिपूर्ण और मधुर कुछ नहीं