आचार्य श्रीराम शर्मा >> आत्मीयता का माधुर्य और आनंद आत्मीयता का माधुर्य और आनंदश्रीराम शर्मा आचार्य
|
3 पाठकों को प्रिय 380 पाठक हैं |
आत्मीयता का माधुर्य और आनंद
हालैंड निवासी एक वन संरक्षक दंपत्ति ने अपने व्यवहार से सिंह जैसी खूनी और क्रूर प्रकृति के प्राणी को स्नेह सौजन्य के बंधनों में इस प्रकार बाँधा कि वे स्वयं मृदुलता और सौजन्य की प्रतिमूर्ति बन गए। हालैंड निवासी मि. जार्ज वहाँ के नेशनल पार्क में वरिष्ठ जंतु संरक्षक के पद पर काम करते हैं। उनका निवास अधिकतर इन्हीं पशुओं के साथ रहा। मि. जार्ज एडम्सन की पत्नी का नाम था जाय एडम्सन। दोनों पति-पत्नी अधिकांशतः वन्य जीवों के साथ रहते-रहते उनसे इतने प्रेम करने लगे कि जाय एडम्सन को वनदेवी तथा एडम्सन को वन मित्र कहा जाने लगा।
जिस संरक्षित वन में वे काम करते थे, उसका नाम है सिरमनेटी। इस वन का क्षेत्रफल ४५०० वर्गमील है। वन जीवों के लिए बने इस उन्मुक्त उद्यान को देखने के लिए संसार भर से लाखों लोग लंबी यात्राएँ करके आते हैं। कुछ समय पूर्व इसमें रहने वाले वन्य जानवरों की संख्या करीब ४ लाख आँकी गई थी। एक दिन पार्क के वन रक्षक कर्मचारी को किसी सिंह ने मार डाला।
सर्वविदित है कि मनुष्य के रक्त का चस्का लग जाने के बाद सिंह प्रायः नरभक्षी हो जाते हैं। बहुत संभावना थी कि वह शेर, जिसने वन रक्षक कर्मचारी को मारा था, वह भी नरभक्षी हो जाए। जार्ज को यह काम सौंपा गया कि वे उस नरभक्षी का अंत कर डालें और उन्होंने ऐसा कर भी दिया। वह नरभक्षी सिंह मादा शेरनी थी और उसकी माँद में तीन सिंह शावक पाए गए।
जार्ज को न जाने क्या सूझी कि वे तीनों सिंह शिशुओं को ले आए और उन्हें लाकर अपनी पत्नी को भेंट किया। जाय सिंह शावकों को देखकर पहले डरी, पीछे उसने इन बच्चों को पालने का निश्चय किया। उन्हें पालते समय ही जाय के हृदय में वात्सल्य का स्रोत उमड़ पड़ा और वह उन्हें चाव-दुलार से पालने लगी। आरंभ में उन्हें दूध पीना सिखाना तक बड़ा कठिन था। मुँह में रबड़ की नली डालकर दूध पिलाया गया। कुछ ही महीनों में बच्चे उछलने-कूदने लायक हो गए।
तब तीन सिंह शिशुओं में से दो को तो चिड़ियाघर भेज दिया गया और एक मादा शिशु को जाय ने अपने पास ही रख लिया। उसका नाम था ऐल्सा। जाय ने ऐल्सा को अपनी पुत्री की तरह पालना, लाड़-दुलार करना आरंभ कर दिया। वे अपने हाथों से उसे भोजन कराती, उसी के लिए बनाई गई चारपाई पर उसे सुलातीं। मच्छरों से बचाने के लिए मसहरी लगातीं। सर्दी न लग जाए इसलिए रजाई ओढ़ातीं।
ऐल्सा भी इस प्रेम व्यवहार से प्रभावित हुए बिना न रह सकी। वह अपनी इस नर शरीर धारी मौसी के हाथ-पैर चाटकर अपने ढंग से प्रेम प्रदर्शित करती। जाय की गोदी में जा बैठती और सिर खुजलाए जाने का आनंद लेती। बिल्ली की तरह वह पीछे-पीछे लगी रहती इन दोनों के प्रेम संबंध इतने सधन हो गए कि ऐल्सा जाय एडम्सन की गोदी में सिर रखकर घंटों निंद्रामग्न रहती। जाय भी कभी-कभी ऐल्सा की पीठ पर सिर रखकर चुपचाप पड़ी रहती थी।
यह स्नेह सद्भावना का ही चमत्कार था कि क्रूरता और हिंसा स्वभाव को भूलकर वह सिंह शाविका इतनी मृदुल हो गई, उसके स्वभाव में ममता और आत्मीयता के अंकुर इतने गहरे जमते गए कि उसकी भयंकरता और आक्रामकता एक दम तिरोहित हो ही गई। घर में रहते-रहते ऐल्सा बहुत-से शब्दों और इशारों का अर्थ भी समझने लगी। वह धीरे-धीरे बड़ी होने लगी। होते-होते प्रौढ़ हो गई और साथी की आवश्यकता अनुभव कर व्याकुलता प्रदर्शित करने लगी। जार्ज ने उसकी मनः स्थिति को समझकर जंगल के उस क्षेत्र में छोड़ दिया जिधर सिंह रहते थे।
यौवन गंध के आकर्षण ने उसे सिंह साथी से भी मिला दिया और फिर वह उधर ही रहने लगी। लेकिन वह अपने मायके को सर्वथा भुला न सकी। जब कभी वह एडम्सन दंपत्ति के निवास पर आ जाया करती और हफ्तों वहाँ रहती। लोग तो ऐल्सा को देखकर सहम से जाते, परंतु उसने कभी किसी पर आक्रमण नहीं किया और न ही कभी किसी की ओर गुर्राकर देखा ही। उन्मुक्त वातावरण में स्नेह और प्रेम द्वारा सिंह को पालते और उसकी क्रूरता निरस्त कर उसमें सौम्य स्वभाव उत्पन्न करने की कुशलता के लिए एडम्सन दंपत्ति को सर्वत्र सराहा गया। स्नेह वात्सल्य, प्रेम, ममता और आत्मीयता ऐसे चुंबकीय गुण हैं जो किसी को भी अपनी ओर आकर्षित कर उसमें भी चुंबकत्व उत्पन्न कर देते हैं। फिर क्या कारण है कि अहिंसा, प्रेम तथा करुणा की धाराओं से परिपूर्ण व्यक्तित्व के संरक्षण मंी हिंसक पशु अपना स्वभाव न भूल सकें और शेर तथा मेमने के एक साथ रहने की बात कपोल कल्पना लगे।
आत्मीयता, करुणा और प्रेम में शक्ति ही ऐसी असीमित-अनंत है कि उसके द्वारा बड़े से बड़े चमत्कार संभव हो सकते हैं। इसमें कुछ भी आश्चर्य नहीं।
|
- सघन आत्मीयता : संसार की सर्वोपरि शक्ति
- प्रेम संसार का सर्वोपरि आकर्षण
- आत्मीयता की शक्ति
- पशु पक्षी और पौधों तक में सच्ची आत्मीयता का विकास
- आत्मीयता का परिष्कार पेड़-पौधों से भी प्यार
- आत्मीयता का विस्तार, आत्म-जागृति की साधना
- साधना के सूत्र
- आत्मीयता की अभिवृद्धि से ही माधुर्य एवं आनंद की वृद्धि
- ईश-प्रेम से परिपूर्ण और मधुर कुछ नहीं