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आचार्य श्रीराम शर्मा >> आत्मीयता का माधुर्य और आनंद

आत्मीयता का माधुर्य और आनंद

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :56
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4187
आईएसबीएन :81-89309-18-8

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आत्मीयता का माधुर्य और आनंद


यही भाव जब विस्तृत होने लगता है तो व्यक्तित्व भी उसी क्रम से परिष्कृत होने लगता है। इसके अनेक रूप समाज के साथ हमारे संबंधों को प्रगाढ़ और मधुर बनाते हैं। छोटों से प्रेम, स्नेह, समवयस्कों से मैत्री और भ्रातृत्व, पत्नी का प्रेम राग और बड़ों से प्रेम श्रद्धा कहलाता है। यह सब प्रेम रूपी वृक्ष के शाखा, पत्तों और फूल की तरह हैं। ईश्वर के प्रति प्रेम कहलाता है, यह निष्काम और विश्वास की शक्ति से संपन्न होने के कारण महान हो जाता है और जिस अंतःकरण में प्रस्फुटित होता है, उसे भी महान, कीट्स कालीदास सूर और तुलसी की तरह क्षुद्र से महान बना देता है।

अपने प्रति प्रेम-स्वार्थ से विश्व-प्रेम परमार्थ की ओर प्रगति करता हुआ, प्रेम-साधक ही विराट जगत में फैली आत्मा की एकता को हृदयंगम कर सकता है। उसी की ओर संकेत करते हुए गीताकार ने लिखा है-

आत्मनां सर्वभूतेषु सर्वभूतानि चात्मनिः।
ईक्षते योगयुक्तात्मा सर्वत्र समदर्शिनः।।


अर्थात्—वह योगी सभी भूत-प्राणियों में अपनी ही आत्मा समाई हुई देखता है, इसलिए सभी को समभाव से देखता हुआ, वह सभी के साथ प्रेम करता है।

जीवन की सर्वोच्च प्रेरणा आत्मा का प्रकाश ही है उसकी प्रेरणा से काम करना ही ईश्वर की इच्छा का पालन करना है। उसने आत्मीयता से ही संसार की रचना की है। एक-एक को यह ही जोड़कर रखता है और अंत में स्वयं भी उसी से जुड़ गया है। अन्य सब साधनाएँ जो ईश्वर को प्राप्त करा सकती हैं, देश, काल, स्वस्थिति के अनुसार अदल-बदल सकती है, लाभदायक भी हो सकती हैं और हानिकारक भी, किंतु आत्मीयता की साधना में कहीं भी किसी भी समय परिवर्तन की आवश्यकता नहीं।प्रेम आत्मा को झकझोरकर जगा देता है और व्यक्ति को परमार्थवादी बनने को विवश कर देता है। प्रेम का शुद्ध अर्थ है विश्वास। जो निराकार सत्ता में विश्वास करना सीख गया, ईश्वर उससे दूर नहीं रह सकता। आत्मा को झकझोरकर परमात्मा से मिला देने वाली इसीलिए सबसे सरल, अमर साधना प्रेम है। अध्यात्मवादी प्रेमी हुए बिना ईश्वर की ओर गमन नहीं कर सकता।



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    अनुक्रम

  1. सघन आत्मीयता : संसार की सर्वोपरि शक्ति
  2. प्रेम संसार का सर्वोपरि आकर्षण
  3. आत्मीयता की शक्ति
  4. पशु पक्षी और पौधों तक में सच्ची आत्मीयता का विकास
  5. आत्मीयता का परिष्कार पेड़-पौधों से भी प्यार
  6. आत्मीयता का विस्तार, आत्म-जागृति की साधना
  7. साधना के सूत्र
  8. आत्मीयता की अभिवृद्धि से ही माधुर्य एवं आनंद की वृद्धि
  9. ईश-प्रेम से परिपूर्ण और मधुर कुछ नहीं

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