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आचार्य श्रीराम शर्मा >> आत्मीयता का माधुर्य और आनंद

आत्मीयता का माधुर्य और आनंद

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :56
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4187
आईएसबीएन :81-89309-18-8

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आत्मीयता का माधुर्य और आनंद



अपनत्व पृथ्वी की मिट्टी, सूर्य के कण और विश्व के कण-कण में व्याप्त परमाणुओं में छिपा स्पंदन है। वह स्वर्गीय है, वह मर्त्यभाव में भी अमृतत्व का संचार किया करता है, जड़ में भी चेतनता की अनुभूति कराया करता है। इतिहास प्रसिद्ध घटना है कि अपनी साधना के अंतिम दिनों में महर्षि विश्वामित्र ने नदियों से बातचीत की थी। ऋग्वेद में ऐसे सूक्त हैं जिनके देवता नदी हैं और दृष्टा ने उनसे बातचीत की है। उस वार्तालाप में और कुछ आधार भले ही न हो, पर उसमें समस्त जड़-चेतन जगत के प्रति आत्मारोपण का अनोखा उदाहरण प्रस्तुत है।

उस विज्ञान को समझने में भले ही किसी को देर लगे, किंतु भावनाओं में जड़ पदार्थों को भी चेतन कर देने की शक्ति है और प्रेम इन समस्त भावनाओं का मूल है। इसलिए यह कहना अत्युक्ति नहीं कि आत्मीयता-संपन्न व्यक्ति के लिए संसार में चेतन ही नहीं जड़ भी इतने ही सुखदायक होते हैं। जड़ भी प्रेम के अधीन होकर नृत्य करते हैं। प्रेम के लिए सारा संसार तड़पता रहता है। जो इस तड़पन को समझ कर, लेने की नहीं देने और निरंतर देने की ही बात सोचता है, सारा संसार उसके चरणों पर निवेदित हो जाता है।

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    अनुक्रम

  1. सघन आत्मीयता : संसार की सर्वोपरि शक्ति
  2. प्रेम संसार का सर्वोपरि आकर्षण
  3. आत्मीयता की शक्ति
  4. पशु पक्षी और पौधों तक में सच्ची आत्मीयता का विकास
  5. आत्मीयता का परिष्कार पेड़-पौधों से भी प्यार
  6. आत्मीयता का विस्तार, आत्म-जागृति की साधना
  7. साधना के सूत्र
  8. आत्मीयता की अभिवृद्धि से ही माधुर्य एवं आनंद की वृद्धि
  9. ईश-प्रेम से परिपूर्ण और मधुर कुछ नहीं

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