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आचार्य श्रीराम शर्मा >> आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधान आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधानश्रीराम शर्मा आचार्य
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आन्तरिक कायाकल्प का सरल विधान....
(७) शिथिलीकरण मुद्रा-योगनिद्रा-इस मुद्रा का अभ्यास शवासन में लेटकर अथवा आराम कुर्सी पर शरीर ढीला छोड़कर किया जाता है। यह क्रिया शरीर, मन, बुद्धि को तनाव से मुक्त करके नई चेतना से अनुप्राणित कर देती है। साधक को शरीर से भिन्न अपनी स्वयं की सत्ता की प्रत्यक्ष अनुभूति होती है।
कोलाहल मुक्त वातावरण में लेटकर पहले शरीर शिथिलीकरण के निर्देश स्वयं को दिये जाते हैंं। शरीर के निचले अंगों से आरम्भ करके शनैः शनैः यह क्रम ऊपर तक चलाते हैंं। हर अंग को एक स्वतंत्र सत्ता मानकर उसे विश्राम का स्नेह भरा निर्देश देते हैंं। कुछ देर उस स्थिति में रहकर धीरे-धीरे शारीरिक शिथिलीकरण सधने पर क्रमशः मानसिक शिथिलीकरण एवं दृश्य रूप में शरीर पड़ा रहते देखने, चेतनसत्ता के सरोवर में ईश्वर को समर्पित कर देने की भावना की जाती है।
शिथिलीकरण योगनिद्रा का प्रारम्भिक चरण है। अचेतन को विश्राम देने, नई-स्फूर्ति दिलाने तथा अन्तराल के विकास-आत्मशक्ति के उद्भव का पथ प्रशस्त करने की यह प्रारम्भिक क्रिया है। ध्यान योग की यह प्रक्रिया आध्यात्मिक दृष्टि से उपलब्धियों से भरी हुई है, शरीरगत तथा मनोगत इसके सत्परिणाम तो सर्वविदित है ही।
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