लोगों की राय

आचार्य श्रीराम शर्मा >> आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधान

आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधान

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :172
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 4194
आईएसबीएन :0000

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

237 पाठक हैं

आन्तरिक कायाकल्प का सरल विधान....

आहार सम्बन्धी कुछ भ्रान्तियाँ एवं उनका निवारण


आहार से ही जीवन बनता है। अन्न एवं वनस्पतियाँ हमारे बाह्य कलेवर का प्राण हैं। इनके बिना शरीर रूपी वाहन चल नहीं सकता। प्राण में प्राणशक्ति न हो, हमारा मूल ईंधन ही अपमिश्रित हो तो कलेवर में गति कहाँ से उत्पन्न हो? आवश्यकता इस बात की है कि अन्न प्राणवान बने, संस्कार दे तथा शरीर शोधन व नव निर्माण की दुहरी भूमिका सम्पन्न करे। खान-पान सम्बन्धी आदतों ने आज अन्न को विकृत तथा शाक-वनस्पतियों को पूरी तरह दुषित कर दिया है। तला-भुना खाने, सुस्वादु भोजन ही लेने की मान्यताओं ने बहुसंख्य व्यक्तियों को रोगी बना दिया है। कुपोषण वही नहीं, जो कम आहार या कैलोरी लेने से होता है, वह भी है जो विकृत आहार लेने से होता है। जिसे भोजन के रूप में अपने प्राकृतिक स्वरूप में ग्रहण किया जाना चाहिए था, उसे ही हम अशुद्ध बनाकर अपनी पाचन क्रिया बिगाड़ते, नाना प्रकार के रोगों तथा जरा को शीघ्र आमंत्रण देते हैंं। इन मान्यताओं में परिवर्तन करने के लिए एक प्रकार की विचार क्रांति का ही स्वरूप बनाना होगा।

सभी जानते हैंं कि नमक एक प्रकार का विष है। जितना भी शरीर को आवश्यकता है, उतना अपने सहज रूप से अन्न से लेकर वनस्पति तक सभी में यह अनिवार्य तत्व विद्यमान है। उस पर भी यदि ऊपर से लिया जाय तो वह रक्त की सांद्रता बढ़ाकर जीव कोष की क्रियाशीलता घटाता है, जीवन शक्ति को गिराता है तथा शरीर को रोगों का घर बनाता है। नमक में सोडियम क्लोराइड होता है और बाहर से लिए गये इस अतिरिक्त रसायन से मोर्चा लेने में हृदय, रक्त परिवहन संस्थान तथा गुर्दे को कितना संघर्ष करना पड़ता होगा, इसकी कल्पना सामान्य जन कर भी नहीं सकते। वैज्ञानिकों का कथन है कि बाहर से लिए गये नमक को आहार से हटाकर निश्चय ही उन व्याधियों की संख्या कम की जा सकती है जो व्यक्ति को मृत्यु के मुँह में धकेलती हैं। इनमें उच्च रक्तचाप, दमा, एथेरोस्क्लेरोसिस, कैन्सर जैसी व्याधियाँ प्रमुख मानी जाती है। जीवनकोष अपने लिए निश्चित मात्रा- अनुपात में आवश्यक तत्वों का आदान-प्रदान ‘सोडियम-पोटेशियम पम्प के माध्यम से करते हैंं। इन दोनों का झिल्ली की सतह पर आगमन ही 'सेल' को विद्युत्तीय चार्ज से युक्त करना है। इन दोनों का झिल्ली की सतह पर आगमन ही 'सेल' को विद्युतीय चार्ज से युक्त करना है। इन आवेशों के कारण ही 'सेल' सभी महत्वपूर्ण क्रियायें सम्पन्न कर पाते हैंं। अतिरित मात्रा में आया सोडियम जीव कोषों की झिल्ली पर विद्युत्त रसायन प्रक्रिया को अस्त-व्यस्त कर देता है और धीरे-धीरे इन कोषों की आयु कम होने लगती है। यदि समग्र कायाकल्प ही अभीष्ट है, काया को निरोगी बनाना है, जीवनी शक्ति को जूझने योग्य सामर्थ्यवान बनाना है तो निश्चित ही इस कृत्रिम विष की आहार में मात्रा को या तो घटाना पड़ेगा या मनोबल दृढ़ हो तो उसे हटाना ही होगा। इससे कमजोरी आने की बात कहना तो मन को झुठलाना भर है। स्वादेन्द्रियों की दृष्टि को महत्व देने वालों की तो बात ही क्या करना? वे तो अपने पक्ष के समर्थन में भाँति-भाँति के तर्क देते रहते हैं पर विचारशील मनीषी वर्ग यदि मन से विचार करे तो उसे प्रतीत होगा कि आहार में समुचित संशोधन अनिवार्य है। इसके बिना कायाकल्प करना तो दूर, उसका नाम भी नहीं लेना चाहिए।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. अध्यात्म क्षेत्र की उच्चस्तरीय सफलताओं का सुनिश्चित राजमार्ग

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book