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आचार्य श्रीराम शर्मा >> आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधान

आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधान

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :172
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 4194
आईएसबीएन :0000

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आन्तरिक कायाकल्प का सरल विधान....

कल्प के पूर्व कुछ अनिवार्य ज्ञातव्य


कल्प साधना एवं चिर पुरातन कल्प चिकित्सा में कुछ अन्तर है। कल्प एक साधना भी है चिकित्सा एक प्राकृतिकोपचार।

कल्प चिकित्सा के लिए औषधि का प्रयोग करने के पहले शरीर की शुद्धि एक परमावश्यक बात है। क्योंकि जब तक शरीर में मल की अधिकता रहेगी उस पर औषधियों का ठीक प्रभाव नहीं पड़ सकता। साथ ही यह भी सम्भव है कि कल्प के प्रभाव से मल उमड़कर कोई नया उपद्रव खड़ा कर दे। इसलिए आयुर्वेद के ग्रन्थों में इस बात पर बहुत जोर दिया गया है कि कल्प की औषधियाँ सेवन करने से पूर्व स्नेहन, वमन, विरेचन आदि पंच कर्मों के द्वारा शरीर में संचित दुषित मल को भली प्रकार निकाल डालना चाहिए ताकि वह औषधियों के प्रभाव को शीघ्र ग्रहण करने में समर्थ हो सके। इन पंच कर्मों में यद्यपि वमन और विरेचन को प्रधान माना गया है, पर जो मल शारीरिक अंगों में चिपटा रहता है उसे सुगमता से निकालने के लिए स्नेहन और स्वेदन आवश्यक है। जैसे साबुन लगाकर मैले को फुला दिया जाता है, उसी प्रकार स्नेहन तथा स्वेदन कर लेने से वमन-विरेचन में सहायता मिलती है।

स्नेहन प्रक्रिया के लिए वसा प्रधान पदार्थों का प्रयोग किया जाता है। स्थावर जो वनस्पतियों से मिलते हैं तथा जंगम जो प्राणियों से घी, वसा के रूप में प्राप्त होते हैंं। कल्प चिकित्सा में घी और तेल को ही प्रधानता देते हैंं। इनका प्रयोग पीने, वस्ति, शिरोवस्ति, नस्य, मालिश एवं भोजन आदि के द्वारा किया जा सकता है।

स्वेदन प्रक्रिया का अर्थ किसी प्रकार से काया को गर्मी पहुँचाकर पसीना लाना है। इसके माध्यम से शरीरगत दोषों को बाहर निकलने में सहायता मिलती है। प्राकृतिक चिकित्सा के ढंग से भाप प्रक्रिया द्वारा ऊपर कम्बल व नीचे अंगीठी रखकर पसीना लाया जा सकता है। इससे रोम कूप खुलते हैंं और मल निष्कासन की प्रक्रिया तेज होती है। आजकल इस कार्य के लिए बिजली का, इन्फारेड किरणों का भी प्रयोग किया जाता है।

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    अनुक्रम

  1. अध्यात्म क्षेत्र की उच्चस्तरीय सफलताओं का सुनिश्चित राजमार्ग

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