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आचार्य श्रीराम शर्मा >> आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधान आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधानश्रीराम शर्मा आचार्य
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आन्तरिक कायाकल्प का सरल विधान....
वमन प्रक्रिया के पीछे सिद्धांत है-संचित मलों को आमाशय में एकत्र हो जाने पर उन्हें निकाल बाहर करना। यदि वमन प्रक्रिया ठीक प्रकार से विशेषज्ञ मार्गदर्शन में की जा सके तो शरीर वस्तुतः हल्का होकर कल्प के योग्य हो जाता है। यह संचित कफ को निकाल देने की प्रक्रिया है। विरेचन इसीलिए वमन के बाद कराया जाता है ताकि ऊपर का कफ आँतों में कष्ट न उत्पन्न करे।
विरेचन में किस प्रकृति के व्यक्ति के लिए क्या श्रेष्ठ औषधि हो यह उसकी प्रकृति पर निर्भर है। आयुर्वेद के निष्णात इसका निर्धारण करते हैंं एवं पित्त से मृद, वात कफ से क्रूर तथा समदोष वाले व्यक्ति के लिए विरेचन की प्रक्रिया का स्वरूप बनाते हैंं।
अन्तिम प्रक्रिया है वस्ति। जहाँ वमन और विरेचन मात्र आमाशय और पित्ताशय की शुद्धि करते हैंं, वहीं वस्ति से मलाशय तथा पक्वाशय के विकारों का निष्कासन किया जाता है। एनिमा इसका एक आधुनिक स्वरूप है। आयुर्वेद में इसी प्रयोग हेतु विभिन्न मन्त्रों से मूत्राशय, महिलाओं के योनि मार्ग तथा मलाशय की शुद्धि का विधान है। औषधियुक्त तेल, साबुन मिश्रित जल अथवा ग्लिसरीन आदि अन्दर पहुँचाकर संचित मल को इससे निकाल बाहर किया जाता है।
यह तो संक्षेप में उन पंचकर्मों की चर्चा हुई, जिन्हें कल्प के पूर्व किए जाने का शास्त्रोक्त विधान है। शरीर का शोधन करने के लिए इनसे श्रेष्ठ कोई उपचार नहीं। परन्तु आजकल ऐसे सुदृढ़ मनःस्थिति के व्यक्ति मिलते नहीं जो इस पूरे प्रकरण को धैर्यपूर्वक निभा सकें। आध्यात्मिक-भाव-कल्प में इसी कारण पहले मन को मजबूत बनाने के लिए प्रायश्चित प्रक्रिया तथा आहार में सीमा बन्धन जैसे छोटे प्रयोगों से शुभारम्भ किया जाता है। इतना बन पड़ने पर आगे वह पृष्ठभूमि बन जाती है, जिसके आधार पर और भी क्लिष्ट प्रयोग कायाकल्प के किये जा सकें।
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