आचार्य श्रीराम शर्मा >> आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधान आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधानश्रीराम शर्मा आचार्य
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आन्तरिक कायाकल्प का सरल विधान....
शरीर और मन के रोगों की रोकथाम के लिए कई प्रकार के उपचार, उपकरण एवं विशेषज्ञ उपलब्ध हो सकते हैंं किन्तु अन्तःस्थल की गहराई में पहुँचकर वहाँ कुछ उलट-पुलट करनी हो तो फिर अध्यात्म चिंतन एवं साधनात्मक उपचार ही एकमात्र अवलम्बन रह जाता है। 'योग' भावनाओं को उत्कृष्टता के साथ जोड़ता है और 'तप' कुसंस्कारिता को गलाकर सुसंस्कारिता में ढालने वाली भट्टी का प्रयोजन पूर्ण करता है।
इन आवश्यकताओं की पूर्ति जिन साधना उपचारों से हो सकती है उनमें कल्प साधना सर्वोपरि है। उसकी निर्धारित कार्य पद्धति का प्रभाव आरोग्य रक्षा, मनोयोग चिकित्सा के रूप में ही नहीं, एक कदम आगे बढ़कर अन्तराल की गहरी परतों में जमी हुई कुसंस्कारिता को उखाड़ फेंकने की दृष्टि से भी अत्यन्त महत्वपूर्ण सिद्ध होता है। एकांगी साधनाएँ तो कितनी ही प्रचलित हैं, जिनमें परिशोधन और प्रगति परिष्कार के दोनों प्रयोजन सिद्ध होते हैंं। जो एक होते हुए भी अनेक प्रयोजन सिद्ध कर सके ऐसी अध्यात्म चिकित्सा प्रस्तुत कल्प साधना के अतिरिक्त दूसरी कोई परिलक्षित नहीं होती।
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