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आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्म चेतना का ध्रुव केन्द्र देवात्मा हिमालय

अध्यात्म चेतना का ध्रुव केन्द्र देवात्मा हिमालय

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2001
पृष्ठ :64
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4197
आईएसबीएन :0000

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अध्यात्म चेतना का ध्रुव केन्द्र


इस प्रदेश में वृक्ष बनस्पतियों का भी बाहुल्य है। उनकी रासायनिक विशेषताएँ अन्य सामान्य क्षेत्रों में उगने वाली वनस्पतियों की तुलना में कहीं अधिक हैं। यह यहाँ के विशेष वातावरण की विशेषता है। इसी प्रकार यहाँ पाये जाने वाले जीव-जन्तुओं, पक्षियों में भी अपनी मौलिक विशेषताएँ हैं। राजहंस मानसरोवर पर पाये जाते हैं, जो कीड़े नहीं खाते, गहरे पानी में गोता लगाकर मोती ढूँढ़ते और उन्हीं पर निर्वाह करते हैं। लम्बी उड़ान की क्षमता भी उनमें ऐसी होती है, जिसे अनोखी कहा जा सके। नीर-क्षीर विवेक भी उनमें होता है। इसके अतिरिक्त कस्तूरी हिरण, चँवर पूँछ वाली गाय, याक, सफेद भालू, सफेद लोमड़ी, सफेद तेंदुआ आदि अनेक प्राणी ऐसे हैं जो इसी क्षेत्र में देखे गये हैं।

हिम मानव के संबंध में ऐसी ही किम्वदंती हैं। उसे देखा तो अनेकों ने है, पर पद-चिह्न प्रमाण स्वरूप मिले हैं। उसे मनुष्य से प्रायः दूने आकार का और बल में दस पहलवानों के सदृश बताया जाता है। वह नीचे उतर तो आता है, पर रहता कहाँ है ? उसका परिवार कहाँ रहता है ? यह अभी तक पता नहीं चला। पकड़ में भी किसी के नहीं आया है। फिर भी घटनाएँ और विवरण इतने अधिक हैं कि उसके अस्तित्व से इन्कार नहीं किया जा सकता। अनेक विदेशी पर्यटक खोजियों ने भी उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर उसका अस्तित्व स्वीकारा है। जो हो, इतना अवश्य है कि इस क्षेत्र में कुछ अधिक ऊँचाई पर जो प्राणी पाये जाते हैं, जो वनस्पतियाँ देखी गई हैं, वे सर्वथा असाधारण हैं। उनकी विशेषताओं और उपलब्धियों के संबंध में यदि बारीकी से जाँच पड़ताल की जाय, तो पाया जायेगा कि यह समूचा परिकर अनेकानेक ऐसी विचित्रताओं से भरा पड़ा है, जो मनुष्य के लिए असाधारण रूप से उपयोगी भी हैं।

इस क्षेत्र में आमतौर से तीर्थ यात्री ही पर्यटक के रूप में भ्रमण करते पाये जाते हैं। उन्हें उस क्षेत्र की प्राकृतिक सुन्दरता से अपने नेत्रों को तृप्त करने का लाभ मिलता है। पैदल चलने को भी एक प्रकार की चिकित्सा पद्धति एवं स्वास्थ्य संरक्षक विधा माना गया है। नदियाँ अनेक खनिजों और वनस्पतियों का सार अपने साथ लेकर बहती हैं। इसीलिए उनका जल भी जीवनदायी औषधियों के समतुल्य रहता है। गंगा जल की महत्ता सर्वविदित है। उसे श्रद्धा के कारण ही श्रेय नहीं मिला है, वरन् वैज्ञानिक परीक्षण में भी यह पाया गया है कि उसमें जीवनी शक्ति संवर्धक एवं अनेक रोगों के निवारण की क्षमता है। यह गंगा की विशेषता उस हिमप्रदेश से बहने वाली अन्यान्य नदियों में भी न्यूनाधिक मात्रा में पाई जाती है।

देवात्मा हिमालय क्षेत्र में कुछ प्रमुख हिमाच्छादित शिखरों की ऊँचाई समुद्र की सतह से इस प्रकार है:-गंगोत्री १०५०० फीट, गोमुख १२७७० फीट, नन्दनवन १४२३० फीट, भगीरथ पर्वत २२४६५ फीट, मेरुशिखर २१०५० फीट, सतोपंथ शिखर २३२१३ फीट, केदारनाथ शिखर २२०७७ फीट, सुमेरु शिखर २०७०० फीट, स्वर्गारोहण शिखर २३८८० फीट, चन्द्रपर्वत २२०७० फीट, नीलकंठ शिखर २१६४० फीट और भी कितने ही प्रमुख शिखर उस क्षेत्र में बिखरे पड़े हैं। उनकी भी ऊँचाई न्यूनाधिक मिलती जुलती है।

कुछ वर्ष पूर्व हिमालय के एक २२ हजार फुट ऊँचे पर्वत शिखर पर एक पर्वतारोही दल गया था। उसमें १३ यात्री थे, इनकी व्यवस्था के लिए १८ टन, लगभग ५०० मन साधन सामग्री साथ ले जाने की आवश्यकता पड़ी। इसे ढोने के लिये ६५० कुली तथा रास्ता बनाने वाले ५२ शेरपा साथ गये। समय-समय पर ऐसे ही अन्य पर्वतारोही दल संसार के विभिन्न क्षेत्रों से आते रहते हैं। उनमें से अधिकांश सफल रहे; पर कुछ को, सदस्यों में से कइयों को प्राण गँवाने पड़े और भारी कष्ट सहकर वापस लौटने के लिए विवश हुए।

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    अनुक्रम

  1. अध्यात्म चेतना का ध्रुव केन्द्र देवात्मा हिमालय
  2. देवात्मा हिमालय क्षेत्र की विशिष्टिताएँ
  3. अदृश्य चेतना का दृश्य उभार
  4. अनेकानेक विशेषताओं से भरा पूरा हिमप्रदेश
  5. पर्वतारोहण की पृष्ठभूमि
  6. तीर्थस्थान और सिद्ध पुरुष
  7. सिद्ध पुरुषों का स्वरूप और अनुग्रह
  8. सूक्ष्म शरीरधारियों से सम्पर्क
  9. हिम क्षेत्र की रहस्यमयी दिव्य सम्पदाएँ

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