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आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्म चेतना का ध्रुव केन्द्र देवात्मा हिमालय

अध्यात्म चेतना का ध्रुव केन्द्र देवात्मा हिमालय

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2001
पृष्ठ :64
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4197
आईएसबीएन :0000

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अध्यात्म चेतना का ध्रुव केन्द्र


पर्वतारोही इतना जोखिम भरा कार्य किसलिए उठाते हैं ? इसका मौलिक प्रयोजन तो प्रत्यक्षतः इतना ही दिखाई पड़ता है कि दूसरों पर अतिरिक्त बलिष्ठता, साहसिकता और कुशलता की छाप डाली जाय। लोगों को चकित किया जाय कि जो कार्य दूसरे लोग नहीं कर सकते उसे वे कर दिखाते हैं। इस आधार पर अपने को विशिष्ट लोगों की पंक्ति में बैठने का यश प्राप्त करते हैं। सम्भवतः पर्वतीय वातावरण में लगातार कुछ दिन रहने से स्वास्थ्य संवर्धन में भी सहायता मिलती है। चित्र-विचित्र दृश्य देखने पर कलात्मक दृष्टि उभरती है। ऊँचे क्षेत्रों में आक्सीजन कम पड़ जाने पर भी मनोबल के आधार पर उस कमी को सहन करना किस प्रकार संभव हो सकता है। इस तथ्य को भी सिद्ध करता है। जिनका मात्र आरोहण भर से संबंध है, उनका प्रयोजन मात्र यही रहता हो; फिर भी वे उन दुर्गम स्थानों तक पहुँच पाने में असफल रहे हैं, जिसे वस्तुतः देवात्माओं की आश्रयस्थली कहा गया है।

जिनकी वैज्ञानिक दृष्टि है, वे इस आधार पर अन्यान्य कई प्रयोजन भी सिद्ध कर सकते हैं। उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव पर शोधकर्ता इसीलिए जाते हैं कि वहाँ के नीचे वाले धरातल की स्थिति जाँच सकें। संभावित बहुमूल्य खनिजों की टोह ले सकें। स्वास्थ्य सुधार एवं दीर्घजीवन के लिये किस क्षेत्र का वातावरण कितना उपयोगी हो सकता है, यह जान सकें । अन्तर्ग्रही शोधों के लिए भी हिमालय के ऊँचाई वाले भाग अन्वेषण के लिए सहायक हो सकते हैं। नदियों के पानी में पाई जाने वाली विशेषताएँ भी शोध का विषय हो सकती हैं। किस नदी निर्झर के  किस भाग में किस स्तर के गुण हैं और उनका उपयोग चिकित्सा प्रयोजनों के लिये किस सीमा तक हो सकता हैं ? यह भी एक अनुसंधान का विषय है।

उत्तराखण्ड की एक सरिता "सोन गड़" नदी में स्वर्ण कणों की एक अच्छी मात्रा पाई गई। उससे अनुमान लगाया जाता है कि जिस क्षेत्र से यह नदी आती है, उसके आस-पास कहीं भूमिगत स्वर्ण भण्डार हो सकता है। ऐसे-ऐसे अनेक आधार हैं जिनके निमित्त वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाले व्यक्ति उस क्षेत्र में जोखिम भरा परिभ्रमण कर सकते हैं। महत्वपूर्ण अनुसंधान सदा प्रयोगशालाओं में बैठकर ही सम्पन्न नहीं होते रहे हैं। उनके लिए लम्बी यात्राएँ भी करनी पड़ी हैं। भूखण्डों, द्वीपों, सागरों, वन, पर्वतों जलाशय की स्थिति जानने के लिए कितने ही शोधकर्ताओं ने परिभ्रमण को अपना प्रमुख आधार बनाया है। इन्हीं कार्यों में पर्वत भी आते हैं। समुद्र की गहराई में सन्निहित सम्पदाओं को खोजने में इतना कुछ पाया गया है, जिसे धरती पर उपलब्ध सम्पदा से किसी भी प्रकार कम मूल्यवान् या महत्त्वपूर्ण नहीं समझा जा सकता। पर्वतों को विशेषतया देवात्मा खण्ड क्षेत्र को शोध का विषय बनाया जाए, तो उससे भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिक दृष्टि से बहुत कुछ पाया जा सकता है।

दिव्य वनौषधियाँ अपने आप में एक महान् विषय है। सामान्य जड़ी-बूटियाँ तो उर्वर भूमि वाले वन प्रदेशों में जहाँ-तहाँ उगी पाई जाती हैं। इनमें से जो सुलभ स्थानों में बहुलता के साथ पाई जाती हैं, उन्हीं को मजदूर स्तर के लोग खाली समय में खोद लेते हैं। इसके बाद भी उनका यह प्रयत्न नहीं कि बीज आने से पूर्व उन्हें खोद लेने पर उनकी वंश परम्परा कुछ ही दिनों में समाप्त हो जायेगी, इसलिए उन्हें पकने पर खोदा जाय। बीज वहीं बिखेर दिये जाएँ; ताकि अगले दिनों भी उनकी उपलब्धि लगातार होती रहे।

वनौषधियों की शोध इतनी महत्त्वपूर्ण है कि उस आधार पर समूची मनुष्य जाति को कष्ट साध्य रोगों से छुटकारा दिलाया जा सकता है। विश्वभर में जो खर्च और श्रम औषधि निर्माण के लिए हो रहा है, वनौषधियों के आधार पर उसमें भारी कटौती हो सकती है। अपने देश के लिए एक ऐसा उद्योग हाथ लग सकता है, जो निर्धन लोगों को आरोग्य प्रदान करने की दृष्टि से अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हो, साथ ही विदेशी मुद्रा का भी बड़ी मात्रा में अर्जन कर सके। यह प्रकटतः प्रसिद्ध वनौषधियों की बात हुई। हिम पिघलने के उपरान्त पर्वतों की मिट्टी वाले भागों में वनस्पतियाँ भी प्रकट हो जाती हैं, जो हिमपात के दिनों उसके नीचे दब जाती हैं; किन्तु जीवित बनी रहती हैं। बर्फ हटते ही उनका वसन्त फूट पड़ता है। श्रावण, भाद्रपद के महीनों में हिमालय के कई क्षेत्र पुष्पवाटिका की तरह खिल पड़ते हैं। इन क्षेत्रों को “फूलों की घाटी" कहा जाता है। उनकी मनोरम दृष्टि तो नयनाभिराम होती ही है, साथ ही मखमली गलीचा बिछा होने जैसा दृश्य प्रस्तुत होता है; पर साथ ही इन सुगंधित वनस्पतियों में से कितनी ही ऐसी होती हैं, जो औषधि प्रयोजनों के लिए अमृतोपम गुणकारी सिद्ध हो सकें। इनकी खोज नये सिरे से की जानी आवश्यक है। इस कार्य को पर्वतीय क्षेत्रों की यात्रा से ही पूरा किया जा सकता है।



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    अनुक्रम

  1. अध्यात्म चेतना का ध्रुव केन्द्र देवात्मा हिमालय
  2. देवात्मा हिमालय क्षेत्र की विशिष्टिताएँ
  3. अदृश्य चेतना का दृश्य उभार
  4. अनेकानेक विशेषताओं से भरा पूरा हिमप्रदेश
  5. पर्वतारोहण की पृष्ठभूमि
  6. तीर्थस्थान और सिद्ध पुरुष
  7. सिद्ध पुरुषों का स्वरूप और अनुग्रह
  8. सूक्ष्म शरीरधारियों से सम्पर्क
  9. हिम क्षेत्र की रहस्यमयी दिव्य सम्पदाएँ

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