लोगों की राय

आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्म चेतना का ध्रुव केन्द्र देवात्मा हिमालय

अध्यात्म चेतना का ध्रुव केन्द्र देवात्मा हिमालय

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2001
पृष्ठ :64
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4197
आईएसबीएन :0000

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

370 पाठक हैं

अध्यात्म चेतना का ध्रुव केन्द्र


सबसे बड़ी कमी हुई है, उस क्षेत्र में विचरण करने वाले सिद्ध पुरुषों की। वे मात्र शीतलता के लिए ही यहाँ नहीं बसते थे, वरन सबसे बड़ी उपलब्धि थी-निस्तब्धता। वह एकान्त में ही मिल पाती है। कोलाहल और घिचपिच का प्रभाव वातावरण पर पड़ता है। फिर जिनमें व्यवसाय बुद्धि ही प्रधान है, वे जन साधारण में पाये जाने वाले दोष-दुर्गुणों से भरे रहते हैं। प्रवृत्तियाँ भी क्षेत्र को प्रभावित करती हैं। योगी, तपस्वी यदि वातावरण में उत्कृष्टता का संचार करते हैं, तो गये-गुजरे व्यक्ति उसमें प्रदूषण भी करते हैं। कमल पुष्पों में रमण करने वाले भ्रमर दुर्गन्धित स्थानों में घुटन अनुभव करते हैं और वहाँ टिकने के लिए उद्यत नहीं होते, उसी प्रकार सिद्ध पुरुष भी कोलाहल भरे व्यवसाय बुद्धि से अनुप्राणित क्षेत्र में टिक नहीं सकते। कोई समय था, जब उत्तराखण्ड क्षेत्र में मध्यम ऊँचाई वाले क्षेत्र में भी जब-तक सिद्ध पुरुषों का साक्षात्कार किन्हीं सौभाग्यशालियों को हो जाता था, उनका परामर्श और सहयोग मिल जाया करता था, पर अब वैसा नहीं होता। इस प्रयोजन के लिए जो लोग उधर जाते हैं, उन्हें निराश ही वापस लौटना पड़ता है।

असल की नकल बनाने में दुनियाँ बड़ी प्रवीण है। नकली रेशम, रत्न, नकली घी, नकली आँख, नकली दाँत तक बाजार में बहुलता के साथ सस्ते मोल में मिलते हैं। उनका विज्ञापन भी किया जाता है; ताकि सस्ते के लोभ में कम समझ वाले ग्राहकों को आसानी से आकर्षित किया जा सके। जन संकुल क्षेत्र के आस-पास अड्डे बनाकर बस जाने वाले नकली सन्तों और सिद्ध पुरुषों की भी बाढ़ जैसी लगी है। भावुक श्रद्धालु लोग आसानी से इनके चंगुल में फँसते हैं। पुरातन मान्यताओं के अनुरूप उनकी मनोभूमि तो बनी ही होती है, फिर सहज प्राप्ति का प्रलोभन किसी से किस प्रकार छोड़ते बने। चिड़िया जाल में और मछली कटिया में इसी सस्ते प्रलोभन के कारण फँसती है। सिद्ध पुरुषों की तलाश में निकले व्यक्ति भी आमतौर से इसी भ्रमजाल में फँसकर अपना समय, मन और धन खराब करते हैं।

कितने ही भावुकजनों की अभिलाषा होती है कि सिद्ध पुरुषों से भेंट का सुयोग किसी प्रकार उन्हें मिले। इस कामना के पीछे मोटे रूप से तो उनकी भक्ति भावना ही दिखाई पड़ती है, पर वस्तुतः ऐसा होता नहीं। वे दर्शन मात्र के अभिलाषी नहीं होते। वे उनका कोई कौतूहल-चमत्कार 
देखना चाहते हैं। चमत्कार देख चुकने पर उन्हें इस बात का भरोसा होता है कि यह सिद्ध पुरुष है या नहीं। इससे कम प्रदर्शन के बिना उन्हें इस बात का भरोसा ही नहीं होता है कि यह कोई दिव्य आत्मा है या नहीं। जब कुछ अचम्भा, अनोखा, जादू-तमाशे जैसा कोई कौतुक दीख पड़े, तब उसके बाद अपने मन की गाँठ खोलते हैं। गाँठ में कामनाएँ, ललक, लिप्साएँ भरी होती हैं। प्रचुर धन, खोया हुआ यौवन, बल, सौन्दर्य, अधिकार, यश, प्रतिष्ठा, विजय, शत्रु नाश जैसी कामनाएँ जब अपने पुरुषार्थ के बलबूते पूरी नहीं हो पातीं, तो उसकी पूर्ति देवताओं या सिद्ध पुरुषों से चाहते हैं। देव पूजन आये दिन होता रहता हैं। जप, अनुष्ठान, पूजन, अर्चन का सिलसिला लम्बी अवधि तक चलने पर भी जब मनोरथ पूरा नहीं होता, तो एक ही संभावना शेष रहती है-वे आकांक्षाएँ किसी सिद्ध पुरुष के अनुग्रह से पूरी हों। अनुग्रह का विश्वास तब हो, जब उनके प्रत्यक्ष दर्शन चर्म-चक्षुओं से हो सकें, आमने-सामने का वार्तालाप बन पड़े।

कुछ की आशंका कुछ और बड़े स्तर की होती है। वे स्वयं सिद्ध पुरुष बनना चाहते हैं। इसके लिए साधना करने का मूल्य तो चुकाना नहीं चाहते, वरदान आशीर्वाद मात्र से ऋद्धि-सिद्धियों का विपुल भण्डार झोली में भरना चाहते हैं। इन्हीं कामनाओं की पूर्ति के लिए आम लोग सिद्ध पुरुषों की तलाश में जहाँ-तहाँ भटकते रहते हैं।


...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. अध्यात्म चेतना का ध्रुव केन्द्र देवात्मा हिमालय
  2. देवात्मा हिमालय क्षेत्र की विशिष्टिताएँ
  3. अदृश्य चेतना का दृश्य उभार
  4. अनेकानेक विशेषताओं से भरा पूरा हिमप्रदेश
  5. पर्वतारोहण की पृष्ठभूमि
  6. तीर्थस्थान और सिद्ध पुरुष
  7. सिद्ध पुरुषों का स्वरूप और अनुग्रह
  8. सूक्ष्म शरीरधारियों से सम्पर्क
  9. हिम क्षेत्र की रहस्यमयी दिव्य सम्पदाएँ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai