आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्म चेतना का ध्रुव केन्द्र देवात्मा हिमालय अध्यात्म चेतना का ध्रुव केन्द्र देवात्मा हिमालयश्रीराम शर्मा आचार्य
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अध्यात्म चेतना का ध्रुव केन्द्र
हिम खण्ड पर्वत धरती की ऊपरी सतह पर है, उसके नीचे सामान्य भूमि है। इस निचली सतह से कभी-कभी गरम गैसें ऊपर आती हैं और पानी के साथ मिलकर खौलते तप्त कुण्डों का सृजन करती हैं। इनके स्रोत खोजे जा सकें, तो असाधारण मात्रा में ऐसी ऊर्जा हस्तगत हो सकती है, जो अनादिकाल से सुरक्षित हैं, जिसका दोहन कभी भी नहीं हुआ। पत्थरों में ऐसे तत्त्व भरे पड़े हैं, जो बहुमूल्य रसायनों के रूप में बाहर निकाले जा सकते हैं, जिनका अति महत्त्वपूर्ण उपयोग हो सकता है। शिलाजीत उन्हीं में से एक है, जिसे असाधारण रूप से बलवर्धक माना जा सकता है। हिमालय से आने वाली नदियों की बालू में सोने-चाँदी जैसी बहुमूल्य धातुओं का सम्मिश्रण पाया गया है। यदि उनके उदगम खोजे जा सकें तो समतल भूमि में पाई जाने वाली धातु खदानों से अधिक मूल्यवान् सम्पदा हाथ लग सकती है। कहींकहीं यूरेनियम जैसी धातुओं का सम्मिश्रण भी रेत में पाया गया है। कुछ सरिताएँ ऐसी हैं, जिनके पानी में ऐसे तत्त्व मिले हुए हैं, जो उन्हें प्रभावशाली औषधियों के समतुल्य बनाते हैं। यह रसायन उन क्षेत्रों की परतों में पाये जा सकते हैं, जहाँ से कि वह टकराती हुई प्रवाहित होती हैं।
कस्तूरी हिरन हिमालय की ऊँचाइयों में पाये जाते हैं। बारहसिंगे के सींग अपने आप में औषधीय विशेषताओं से भरे-पूरे हैं। चंवरी हिरन की पूँछ न केवल सुन्दर होती है, वरन् उसके शरीर पर दुलने से प्रसुप्त ऊर्जा में उभार आता है। इसी प्रकार अन्यान्य जीव-जन्तु भी असाधारण विशेषताओं से भरे होते हैं। वातावरण का प्रभाव प्राणियों पर भी आता है और वे इस योग्य बनते हैं कि मनुष्य को शारीरिक-मानसिक स्तर के विशेष अनुदान दे सके। दुर्भाग्य इसी बात का है कि इन प्राणियों का अभिवर्धन करके उनके सम्पर्क से लाभ नहीं उठाया जा रहा है, वरन् मांस के लिए उनका वध करके महती संभावनाओं से दिनानुदिन वंचित होता चला जा रहा है।
हिमालय के वृक्षों की अपनी विशेषताएँ हैं। उनकी लकड़ियों में तेल की इतनी प्रचुर मात्रा पाई जाती है कि उनकी गीली लकड़ी को भी जलाया और ताप का लाभ उठाया जा सके। चीड़, देवदारु के तनों से निकलने वाला रस 'बिरोज' के रूप में बाजार में बिकता है और अनेक रासायनिक प्रयोजनों के लिए काम आता है। अन्य पेड़ भी अपने-अपने ढंग के गोंद देते हैं। उनके पुष्प तथा फल औषधियों की तरह काम में लाये जाते हैं। अन्न तो प्रचुर परिमाण में हिमालय की ऊबड़-खाबड़ भूमि पर पैदा नहीं होता, पर उसकी पूर्ति कर सकने वाले कई प्रकार के कन्द अनायास ही उपलब्ध होते हैं। उनकी क्षमता अन्न की तुलना में कम नहीं अधिक ही होती है। कितने ही शाक अलग-अलग क्षेत्रों में अलग आकृति-प्रकृति के ऐसे पाये जाते हैं, जिन्हें शाक-भाजियों के समतुल्य गुणकारी पाया जाता है। पत्तियों के रूप में पाये जाने पर भी उनमें पोषक तत्त्व उनसे कम नहीं होते, जैसे कि समतल भूमि के शाकों और फलों में होते हैं।
भोज पत्र एक बहु उद्देश्यीय वृक्ष है। उसके बल्कल का उपयोग वस्त्रों के रूप में, बिस्तर के रूप में एवं झोपड़ी आच्छादन के रूप में हो सकता है। उसके पत्र कागज के रूप में प्रयुक्त होते रहे हैं। भोज-पत्र में उभरने वाली गाँठों का काढ़ा बनाकर पीने से कड़क चाय की आवश्यकता पूरी होती है।
औषधियों का तो हिमालय को भण्डार ही समझना चाहिए। ऊँचाई पर पाये जाने वाली वनौषधियाँ असामान्य गुणों से भरपूर पाई गई हैं। उसी जाति की वनौषधियाँ यदि मैदानी इलाके के गरम वातावरण में लगाई जाएँ, तो उनमें वे विशेषताएँ नहीं पाई जाएँगी जो ऊँचाई वाले पहाड़ी क्षेत्रों में उगने पर होती हैं। चट्टानों पर हवा के द्वारा मिट्टी की हलकी परत छोड़ दी जाती है। उसी में जड़ी-बूटियाँ अपने लिए जड़ें फैलाने का स्थान बना लेती हैं। वायुमण्डल से मिलने वाले खाद-पानी से अपना पोषण करती हैं। ऐसी दशा में उनका विशिष्टताओं से सम्पन्न होना स्वाभाविक है। ऊँचाई पर होने के कारण उनका उपयोग नहीं हो पाता। कोई उन्हें लाने के लिए नहीं पहुँचता। यदि मार्ग बना लिया जाए और उन्हें बोने-बटोरने का व्यवस्थित क्रम चलाया जाए, तो मनुष्य के हाथ अमृतोपम औषधियों का भंडार हाथ लग सकता है। साथ ही अति लाभदायक उपयोग के रूप में भी विकसित किया जा सकता है।
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- अध्यात्म चेतना का ध्रुव केन्द्र देवात्मा हिमालय
- देवात्मा हिमालय क्षेत्र की विशिष्टिताएँ
- अदृश्य चेतना का दृश्य उभार
- अनेकानेक विशेषताओं से भरा पूरा हिमप्रदेश
- पर्वतारोहण की पृष्ठभूमि
- तीर्थस्थान और सिद्ध पुरुष
- सिद्ध पुरुषों का स्वरूप और अनुग्रह
- सूक्ष्म शरीरधारियों से सम्पर्क
- हिम क्षेत्र की रहस्यमयी दिव्य सम्पदाएँ