लोगों की राय

आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्म चेतना का ध्रुव केन्द्र देवात्मा हिमालय

अध्यात्म चेतना का ध्रुव केन्द्र देवात्मा हिमालय

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2001
पृष्ठ :64
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4197
आईएसबीएन :0000

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

370 पाठक हैं

अध्यात्म चेतना का ध्रुव केन्द्र


हिमाच्छादित प्रदेशों में कम ऊँचाई वाले ऐसे भी अनेक क्षेत्र हैं, जहाँ शीत ऋतु में हलकी बर्फ जमती है। गर्मी आने पर वह पिघल भी जाती है। पिघलने पर उर्वरा भूमि निकल आती है। इस प्रकार भूमि के उभर आने का समय श्रावण-भाद्रपद के दो महीने विशेष रूप में होते हैं। किन्हीं क्षेत्रों में थोड़ा आगा-पीछा भी रहता है। इन्हीं दो महीनों में उस भूमि में दबी वनस्पतियाँ अचानक उभर आती हैं। अंकुरित और पल्लवित तो वे पहले से भी किसी रूप में बनी रहती हैं, पर गर्मी पाते ही वसन्त काल की तरह द्रुतगति से विकसित होती हैं। इन दो महीनों में ही उनका जीवनकाल पूरा हो जाता है। इस अवधि में पूरी तरह फूल-फल लेती हैं। मध्यम ऊँचाई के हिम पर्वतों में दो महीने का वसन्त रहता है। उनमें विशेषतया छोटे-बड़े आकार की जड़ी-बूटियाँ फूलती हैं। दूर-दूर तक फूलदार मखमली गलीचे जैसे बिछे दिखाई पड़ते हैं। उस नयनाभिराम दृश्य को देखते-देखते मन नहीं भरता। प्रकृति का यह अद्भुत कलाकौशल दर्शक को भाव-विभोर कर देता है। ऐसे फूलों की घाटी देवात्मा हिमालय क्षेत्र में दर्जनों हैं, उनमें से हेमकुण्ड वाली अधिक प्रख्यात है। केदारनाथ के ऊपर वाला क्षेत्र भी ऐसा ही है। फूलने के बाद यह वनौषधियाँ फलती हैं। पकने पर बने हुए बीज धरती पर बिखर जाते हैं। इसके बाद बर्फ पड़ने लगती है। बीज उसके नीचे दब जाते हैं। प्रायः आठ महीने उपरान्त बर्फ पिघलने पर यह जमीन फिर खुलासा होती है। इस बीच में बीज भूमि में अपनी जड़ें जमा लेते हैं, अंकुरित हो लेते हैं। धूप के दर्शन होते ही वे तेजी से बढ़ने, पल्लवित होने और फलने-फलने लगते हैं। यह उनके दृश्य स्वरूप की चर्चा हुई। इन वनस्पतियों के गुणों की नये सिरे से खोज होने की आवश्यकता है। इन्हें पुष्प-वाटिका के समतुल्य नहीं माना जाना चाहिए, वरन् समझना चाहिए कि इनमें एक से एक बढ़े-चढ़े गुणों वाली-शारीरिक और मानसिक रोगों का शमन करने वाली, जीवन शक्ति एवं दीर्घ आयुष्य प्रदान करने वाली वनस्पतियाँ हैं। चरक युग में तत्कालीन वनौषधियों की खोज हुई थी। आयुर्वेद का औषधि खण्ड उसी आधार पर बना था। उस बात को अब लम्बा समय बीत गया। कितनी ही लुप्त हो गयीं और कितनी ही प्रजातियाँ नये सिरे से उत्पन्न हो गयीं। यदि उनका विश्लेषण, वर्गीकरण, परीक्षण किया जाय तो नये सिरे से फिर आधुनिक औषधि शास्त्र विनिर्मित हो सकता है। इस क्षेत्र की कितनी ही वनस्पतियाँ अभी भी प्रख्यात; किन्तु दुर्लभ हैं। रात्रि को प्रकाश देने वाली ज्योतिष्मती, संजीवनी, रुन्दती, सोमवल्ली आदि को देव वर्ग का माना जाता है। इनमें मृत-मूछितों को नव-जीवन प्रदान करने की शक्ति मानी जाती है। वृद्ध च्यवन ऋषि ने इन्हीं के आधार पर जराजीर्ण वृद्धावस्था को नवयौवन में परिवर्तित करके कायाकल्प जैसा आनन्द उठाया।

दैवी सहायता मात्र पुण्य प्रयोजनों के लिए मादक द्रव्यों की भाँति सम्पदाओं, सफलताओं का भी एक नशा होता है। जिन्हें असाधारण रूप से बल, वैभव, पद, गौरव आदि मिलता है, वे अहंता की मादकता से उन्मत्त जैसे हो जाते हैं। मर्यादाओं को तोड़ने, वर्जनाओं की उपेक्षा करने और अपराधी स्तर के उद्धत आचरणों में निरत होने लगते हैं। अनुकरण की छूत एक से दूसरे को लगती है। अनाचार उत्पीड़न की प्रतिक्रिया उत्पन्न होती है। प्रतिशोध पर प्रतिशोध का क्रम चल पड़ता है। नियति भी उद्घतों को प्रताड़ित किये बिना चैन से कब बैठती है। मनःस्थिति में घुसी हुई विषाक्तता परिस्थितियों में विग्रह-विद्रोह के तत्त्व उभारती है। संघर्ष खड़े होते हैं साथ ही प्रकृति भी अनेकानेक प्रतिकूलताएँ, विपत्तियाँ, विभीषिकाएँ बरसाने लगती हैं। अशान्ति के अनेकानेक विस्फोट फूटने लगते हैं। वातावरण संकटों, असंतोषों, अभावों से भर जाता है।

मनुष्य यों चाहे तो चिन्तन, चरित्र, व्यवहार की उत्कृष्टता बनाये रहकर सुख-शान्ति का माहौल बनाए रह सकता है। स्नेह सहयोग की नीति अपनाकर हँसती-हँसाती जिन्दगी जी सकता है। जितने साधन उपलब्ध हैं उन्हें मिल बाँटकर खाते हुए प्रगति और प्रसन्नता भरपूर मात्रा में उपलब्ध कर सकता है। पर वह ऐसा करता नहीं है। क्षुद्रता जब भी साधन सम्पन्न होती है तभी विष उगलती है। कुमार्ग अपनाने का प्रतिफल विपत्तियों और विग्रहों के रूप में ही सामने आ सकता है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. अध्यात्म चेतना का ध्रुव केन्द्र देवात्मा हिमालय
  2. देवात्मा हिमालय क्षेत्र की विशिष्टिताएँ
  3. अदृश्य चेतना का दृश्य उभार
  4. अनेकानेक विशेषताओं से भरा पूरा हिमप्रदेश
  5. पर्वतारोहण की पृष्ठभूमि
  6. तीर्थस्थान और सिद्ध पुरुष
  7. सिद्ध पुरुषों का स्वरूप और अनुग्रह
  8. सूक्ष्म शरीरधारियों से सम्पर्क
  9. हिम क्षेत्र की रहस्यमयी दिव्य सम्पदाएँ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book