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आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्म चेतना का ध्रुव केन्द्र देवात्मा हिमालय

अध्यात्म चेतना का ध्रुव केन्द्र देवात्मा हिमालय

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2001
पृष्ठ :64
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4197
आईएसबीएन :0000

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अध्यात्म चेतना का ध्रुव केन्द्र


तान्त्रिक साधनाएँ करने वाले, कापालिक अपने प्रयोगों के लिए श्मशान भूमि में डेरा डालते हैं। क्योंकि वहाँ का वातावरण एवं प्रेतात्माओं का जमघट उन्हें अपने लिए अधिक कारगर दीखता है, ठीक इसी प्रकार उच्चस्तरीय आत्मबल सम्पादन के सम्बन्ध में भी हैं, जिन क्षेत्रों में देव शक्तियाँ, दिव्य आत्माएँ यूथ रूप में बहुलतापूर्वक विचरण करती हैं। वहाँ रहकर निर्धारित साधनाओं में उपयुक्त सहायता भी मिलती है और अहैतकी अनुग्रह भी मार्गदर्शन भी। मार्गदर्शन, परामर्श भी उन्हें उच्चस्तरीय मिलता रहता है। जिस प्रकार चन्दन के निकट उगने वाले अन्य पौधे भी सुगन्धित हो जाते हैं, उसी प्रकार देवात्मा क्षेत्र में रहने वाले स्थूल एवं सूक्ष्म शरीरधारी, साधना की अपनी-अपनी रुचि के मनोरथ प्राप्त करते हैं। थियोसॉफिकल सोसाइटी के संस्थापकों ने यह प्रतिपादन विस्तार पूर्वक किया है कि हिमालय के देवात्मा भाग में सिद्ध पुरुषों की संगठित समिति कार्य करती हैं। उसके फैसले उन लोगों द्वारा कार्यान्वित किए जाते हैं। इससे जन-साधारण को अनेक ऐसी सहायताएँ अयाचित रूप से प्राप्त होती रहती हैं, जिन्हें वे अपने प्रबल पुरुषार्थ से भी प्राप्त नहीं कर सकते थे। सोसाइटी के उपरोक्त प्रतिपादन में बहुत कुछ सच्चाई है। इस क्षेत्र के साथ सूक्ष्म सम्बन्ध जोड़ सकने वाले अदृश्यदर्शियों ने वैसा ही पाया भी है। साधारण स्थानों में रहने वाले सामान्यजन भी इस क्षेत्र में जाकर थोड़े समय रहने पर भी अपने लिए उपयोगी जीवन तत्त्व सन्तोषजनक मात्रा में उपलब्ध करते हैं।

शीत प्रधान वातावरण में वस्तुएँ स्थिर रहती हैं। गर्मी की अधिकता में जहाँ पदार्थों का क्षरण अधिक मात्रा में होता है। वहाँ यह भी देखा गया है कि शीत में पदार्थों को देर तक सुरक्षित रखने की क्षमता है। शीत ऋतु में पदार्थ जल्दी खराब नहीं होते। रेफ्रीजरेटर में खाद्य पदार्थ कई-कई दिन सुरक्षित रहते हैं। बर्फ में दबाकर रखे गये मृत शरीर लम्बे समय तक यथावत् बने रहते हैं। शुक्राणुओं को शीतल करके उन्हें काफी समय तक गर्भाधान के उपयुक्त स्थिति में बनाये रखा जा सकता है। कोल्ड स्टोरों में फल-सब्जी आदि को महीनों सुरक्षित रखा जाता है।

अजगर, भालू शीत प्रदेश की गुफाओं में बिना कुछ खाये-पिये लम्बे समय तक गहरी निद्रा में सोते रहते हैं। हिमालय का देवात्मा भाग भी ऐसा है, जहाँ स्थूल एवं सूक्ष्म शरीरों को अनेक विकृतियों से बचाकर उपयुक्त स्थिति में सुरक्षित रखा जा सकता है। अब तो मृत शरीरों को गहरी शीतलता में इस निमित्त भी सुरक्षित रखा जाने लगा है कि कालान्तर में उन्हें पुनर्जीवित किया जा सकेगा। इतना निश्चित है कि शीतलता में सुरक्षा-सुस्थिरता अधिक है। सिद्ध पुरुषों की सूक्ष्म एवं स्थूल कायाओं को सुरक्षित एवं चिरस्थाई बनाए रहने की आवश्यकता अनुभव होती है। इसलिए उनने प्रकृति विनिर्मित केन्द्र स्तर वाला ऐसा क्षेत्र चुना है, जहाँ की सहज स्थिति है। अधिक गर्मी की तरह अधिक शीत भी सामान्य क्रिया-कलापों में बाधक होती है। इसलिए मध्यवर्ती चयन ही उपयुक्त पड़ता है। सिद्ध पुरुषों ने ऐसे ही संतुलित क्षेत्र को अपनी क्रीड़ा- भूमि बनाया हुआ है। यह सुरक्षित क्षेत्र है-देवात्मा हिमालय।



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    अनुक्रम

  1. अध्यात्म चेतना का ध्रुव केन्द्र देवात्मा हिमालय
  2. देवात्मा हिमालय क्षेत्र की विशिष्टिताएँ
  3. अदृश्य चेतना का दृश्य उभार
  4. अनेकानेक विशेषताओं से भरा पूरा हिमप्रदेश
  5. पर्वतारोहण की पृष्ठभूमि
  6. तीर्थस्थान और सिद्ध पुरुष
  7. सिद्ध पुरुषों का स्वरूप और अनुग्रह
  8. सूक्ष्म शरीरधारियों से सम्पर्क
  9. हिम क्षेत्र की रहस्यमयी दिव्य सम्पदाएँ

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