लोगों की राय

आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्म चेतना का ध्रुव केन्द्र देवात्मा हिमालय

अध्यात्म चेतना का ध्रुव केन्द्र देवात्मा हिमालय

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2001
पृष्ठ :64
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4197
आईएसबीएन :0000

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

370 पाठक हैं

अध्यात्म चेतना का ध्रुव केन्द्र


देवात्मा क्षेत्र हरिद्वार से आरम्भ होकर यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ, बद्रीनाथ, गोमुख, तपोवन; नन्दनवन वाले उत्तराखण्ड से आरम्भ होकर कैलाश, मान सरोवर तक चला गया है। कैलाश क्षेत्र को देवभूमि माना जाता है। शिव को कैलाश और पार्वती को मान सरोवर कहा जाता है।

इस क्षेत्र के प्रत्येक शिखर को एक मूर्तिमान देव माना गया है। नदियाँ, सरोवर, झरने देवियाँ हैं। गुफाओं को देवालय कहा जा सकता है। इस प्रकार यदि किसी को दिव्य दृष्टि प्राप्त हो, तो वह सारा क्षेत्र प्रकटतः प्राकृतिक पदार्थों से बना; किन्तु तत्त्वतः देव चेतना से ओत-प्रोत दिखाई पड़ेगा। इस क्षेत्र में यदाकदा व्यक्ति तीर्थयात्रा के आधार पर वहाँ जा पहुँचते हैं। वे प्रकृति की शान्तिदायक शीतलता और साथ ही दिव्य चेतना की अभिनव प्रेरणा प्राप्त करते हैं। शर्त एक ही है कि पहँचने वाला दिव्य भावना लेकर दिव्य प्रयोजन के लिए वहाँ पहुँचा हो। जहाँ शान्ति मिले, वहाँ कुछ समय शान्त मन से ठहर सकने जितना अवकाश लेकर गया हो। जो भगदड़ की तरह धक्के देते और धक्के खाते भटकते-भटकाते पहुँचते हैं, उन्हें मात्र कौतुक-कौतूहल ही दीख पड़ता है। ऐसे दिग्भ्रान्त मूर्ख को हर जगह पाये जाने वाले धूर्त अच्छी तरह पहचान लेते हैं और उलटे उस्तरे से हजामत बनाते हैं। इस वरदान क्षेत्र में अभिशाप भी उसी प्रकार पाये जाते हैं। घर-बिस्तर में चूहे, छिपकली, मकड़ी, खटमल, पिस्सू, जुएँ आदि का अड्डा जमा रहता है। मलीनता ही उनकी खुराक है। जो भाव श्रद्धा लेकर नहीं, कामनाओं की पूर्ति और चित्रविचित्र दृश्य देखने जाते हैं, वे खीज और थकान ही साथ लेकर वापस लौटते हैं।

चर्म चक्षुओं को दृश्य पदार्थ ही दीख पड़ते हैं। उन्हीं को देखकर उन्हें मन को सन्तोष देना पड़ता है। बाल बोध की प्राथमिक पुस्तकों में प्रत्येक अक्षर के साथ एक तस्वीर जुड़ी रहती है। स्मरण रखने की दृष्टि से इस प्रकार की संगति बिठाने की उपयोगिता भी हैं। चित्रकला, मूर्तिकला का आधार यही है- प्रत्यक्ष को देखकर उसके साथ जुड़े हुए भावनात्मक सम्बन्ध, सूत्र में प्रतिपादित भाव चेतना को जाग्रत् करना। प्रसन्नता की बात है कि यह आवश्यकता भी उदारचेत्ता, सम्पन्नजनों ने अनुभव की है और ऐसे देवालय, स्मारक इस क्षेत्र में विनिर्मित किए हैं, जिनके दर्शन,
पूजन, वन्दन के सहारे प्रसुप्त श्रद्धा किसी सीमा तक जगायी जा सकती है। इस जागरण को यदि बिजली की कौंध जैसा क्षणिक न रहने दिया जाए, उस आलोक को अन्तरात्मा में बसाकर मार्गदर्शन के लिए आधार बनाया जाए, तो यह सब प्रकार उपयुक्त ही होगा। ऐसी तीर्थयात्रा से भी आत्मिक उत्कर्ष का प्रयोजन पूरा करने में सहायता मिलती है। फिर भी इतना तो स्मरण रखा ही जाना चाहिए कि पदार्थों से बने और आँखों से देखे गए दृश्य नेत्रों के माध्यम से आँखों को ही प्रभावित कर पाते हैं। दृश्य बदलने पर दृष्टि बदल जाती है और उसके माध्यम से मस्तिष्क पर पड़ी छाप भी तिरोहित हो जाती है।

विद्याध्ययन वर्णमाला याद करने से होता है। दिव्य चेतना के साथ अन्तरात्मा को जोड़ने की प्रक्रिया विशुद्ध भावनात्मक है, अदृश्य भी। फिर उसके लिए आवरण की सहायता लेनी पड़ती हैं। देवात्मा हिमालय में दीख पड़ने वाले दृश्य एवं देवालय इसी आवश्यकता की पूर्ति करते हैं।



...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. अध्यात्म चेतना का ध्रुव केन्द्र देवात्मा हिमालय
  2. देवात्मा हिमालय क्षेत्र की विशिष्टिताएँ
  3. अदृश्य चेतना का दृश्य उभार
  4. अनेकानेक विशेषताओं से भरा पूरा हिमप्रदेश
  5. पर्वतारोहण की पृष्ठभूमि
  6. तीर्थस्थान और सिद्ध पुरुष
  7. सिद्ध पुरुषों का स्वरूप और अनुग्रह
  8. सूक्ष्म शरीरधारियों से सम्पर्क
  9. हिम क्षेत्र की रहस्यमयी दिव्य सम्पदाएँ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai