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बाजे पायलियाँ के घुँघरू

कन्हैयालाल मिश्र

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2000
पृष्ठ :228
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 422
आईएसबीएन :81-263-0204-6

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सहज, सरस संस्मरणात्मक शैली में लिखी गयी प्रभाकर जी की रचना बाजे पायलियाँ के घुँघरू।


फिर राम और सीता ने समाज-व्यवस्था की रक्षा के लिए अलग-अलग रहकर समाज का अन्याय सहा और विण्डसर ने देश की रक्षा के लिए अपनी पत्नी के साथ अपने घर से अलग रहकर समाज का अन्याय सहा। विण्डसर सम्राट् एडवर्ड के रूप में यदि पार्लामेण्ट को भंग कर उस समय सम्राट बना रहता और इंग्लैण्ड की शक्तियों को इस झमेले में उलझा, राजनीतिज्ञों में बुद्धि-भेद पैदा कर देता तो दूसरे महायुद्ध में इंग्लैण्ड की वही दशा होती, जो कि फ्रांस की हुई।

एडवर्ड ने विण्डसर बनकर इंग्लैण्ड को बचा लिया; एकदम उसी तरह जैसे राम ने सीता को त्याग करके भारत को बचा लिया था। राम ने इस एक ही झटके में अपने महापुरुष को देवत्व दे दिया और सारे विद्रोहों की भावना पर तेज़ाब छिड़क दिया !

इस प्रकार स्पष्ट है कि सीता ने समाज-व्यवस्था की रक्षा के लिए समाज की मर्यादाओं का पालन किया। यह जानकर भी कि राम का दिया दण्ड अन्यायपूर्ण है, नारी पर पुरुष का राक्षसी अत्याचार है, उसने राम के विरुद्ध विद्रोह नहीं किया। सीता ने राम के दण्ड की ओर नहीं देखा, राम के उद्देश्य की ओर ही आँखें रखीं। मन के प्याले में असन्तोष का जो विष घुला, उसे वह भगवान् का चरणामृत मानकर पी गयी। एक विशिष्ट उद्देश्य के लिए पति के साथ पत्नी की लीनता का विश्व के साहित्य में सीता सर्वोत्तम उदाहरण है।

राम हमारी सभ्यता के पाणिनि थे। पाणिनि ने संस्कृत भाषा को अपने व्याकरण की चारदीवारी में ऐसा घेरा कि वह सदा के लिए बिखरने से बच गयी। साथ ही यह भी सच है कि फूंक-फूंककर पग रखने की नीति ने संस्कृत की ग्रहण शक्ति को रोक दिया। फलस्वरूप उसकी प्रगति रुक गयी। संस्कृत को मृतभाषा कहना तो मूर्खता है, पर इसमें सन्देह नहीं कि वह अतीत का वैभव बनकर तो रह ही गयी। निश्चय ही आज भी वह हमारा शक्ति-स्रोत है, पर जीवन का प्रवाह तो नहीं !

राम ने समाज-व्यवस्था की जो मर्यादा बाँधी. सीता-परित्याग के रूप में उसका स्वयं इतनी कठोरता से पालन किया और शम्बूक-बध के रूप में जनता से उसका पालन इतनी कठोरता से कराया कि आगे चलकर यह मर्यादा आत्म-निर्माण की मधुर साधना न रहकर, बन्दी-जीवन का कठोर नियन्त्रण रह गयी। सीता ने अपने जीवन के आदर्श से पुरुष के जिन अधिकारों की घोषणा की, पुरुष की प्रधानता का जो प्रदर्शन किया और विशिष्ट उद्देश्य के लिए पुरुष के प्रति नारी के आत्म-समर्पण का जो दृष्टान्त उपस्थित किया, वह क़ानून बन गया। अब समाज में पुरुष के अधिकार निःसीम और नारी का कोई अधिकार नहीं। हमारे सामाजिक विधान की कोमलता नष्ट हो गयी और वह पत्थर के स्तम्भ की तरह नारी की बन्धन-शिला बनकर रह गया।

मीरा इस बन्धन-शिला के विरुद्ध एक शक्तिशाली विद्रोह है।

मीरा ने धार्मिक वातावरण में अपने बचपन के साँस लिये। माँ उसकी बचपन में मर गयी। पितामह दूदाजी परम वैष्णव थे। उनके सम्पर्क में मीरा का मन कृष्ण-प्रेम में कुछ इस तरह रँग गया कि उसमें और किसी के लिए स्थान ही न रहा। दुनिया ने जाना और माना कि मीरा का विवाह मेवाड़ के महाराणा साँगा के ज्येष्ठ पुत्र भोजराज के साथ हो गया, पर मीरा का विवाह मीरा के लिए तो, उसी गिरिधर गोपाल के साथ हुआ, जिसकी को अपने साथ लेकर वह विवाह-संस्कार के आसन पर बैठी।

आनुषंगिक दुर्भाग्य कि वह शीघ्र ही विधवा हो गयी और उसके सगे देवर रतनसिंह की भी मृत्यु के कारण उसके सौतेले देवर राणा विक्रम पर आ पड़ा उसके संरक्षण का भार।

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    अनुक्रम

  1. उग-उभरती पीढ़ियों के हाथों में
  2. यह क्या पढ़ रहे हैं आप?
  3. यह किसका सिनेमा है?
  4. मैं आँख फोड़कर चलूँ या आप बोतल न रखें?
  5. छोटी कैची की एक ही लपलपी में !
  6. यह सड़क बोलती है !
  7. धूप-बत्ती : बुझी, जली !
  8. सहो मत, तोड़ फेंको !
  9. मैं भी लड़ा, तुम भी लड़े, पर जीता कौन?
  10. जी, वे घर में नहीं हैं !
  11. झेंपो मत, रस लो !
  12. पाप के चार हथियार !
  13. जब मैं पंचायत में पहली बार सफल हुआ !
  14. मैं पशुओं में हूँ, पशु-जैसा ही हूँ पर पशु नहीं हूँ !
  15. जब हम सिर्फ एक इकन्नी बचाते हैं
  16. चिड़िया, भैंसा और बछिया
  17. पाँच सौ छह सौ क्या?
  18. बिड़ला-मन्दिर देखने चलोगे?
  19. छोटा-सा पानदान, नन्हा-सा ताला
  20. शरद् पूर्णिमा की खिलखिलाती रात में !
  21. गरम ख़त : ठण्डा जवाब !
  22. जब उन्होंने तालियाँ बजा दी !
  23. उस बेवकूफ़ ने जब मुझे दाद दी !
  24. रहो खाट पर सोय !
  25. जब मैंने नया पोस्टर पढ़ा !
  26. अजी, क्या रखा है इन बातों में !
  27. बेईमान का ईमान, हिंसक की अहिंसा और चोर का दान !
  28. सीता और मीरा !
  29. मेरे मित्र की खोटी अठन्नी !
  30. एक था पेड़ और एक था ठूंठ !
  31. लीजिए, आदमी बनिए !
  32. अजी, होना-हवाना क्या है?
  33. अधूरा कभी नहीं, पूरा और पूरी तरह !
  34. दुनिया दुखों का घर है !
  35. बल-बहादुरी : एक चिन्तन
  36. पुण्य पर्वत की उस पिकनिक में

विनामूल्य पूर्वावलोकन

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