कहानी संग्रह >> बाजे पायलियाँ के घुँघरू बाजे पायलियाँ के घुँघरूकन्हैयालाल मिश्र
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सहज, सरस संस्मरणात्मक शैली में लिखी गयी प्रभाकर जी की रचना बाजे पायलियाँ के घुँघरू।
दूसरे के दृष्टिकोण को समझने का प्रयत्न एक ऐसी प्रवृत्ति है, जो वातावरण को कोमलता से भर देती है। यह कोमलता समन्वय के लिए जगह बनाती है और इस प्रकार बीच की दूरी कम होकर एकता का जन्म होता है।
यही दूरी इतनी अधिक और मौलिक हो कि एकता असम्भव रहे, तब भी यह दूरी इतनी कम ज़रूर रह जाती है कि बीच में एक हलका मतभेद ही रह जाए और मन-भेद तक बात न बढ़े !
दूसरे को हमेशा उसकी आँख से देखिए और सावधान रहिए उस खतरे से, जो दूरबीन को उलटी करके देखने से पैदा होता है। यहीं यह भी कि सत्य वही और उतना ही नहीं है कि जो-जितना आप देख पाये। फिर यह भी सम्भव है कि हाथी के स्वरूप का अलग-अलग वर्णन करने वाले वे दोनों आदमी शत-प्रतिशत सच्चे होकर भी बस इसलिए अधूरे हों कि एक ने हाथी को देखा था सूण्ड की तरफ़ से और दूसरे ने पेट या पैर की तरफ़ से।
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- उग-उभरती पीढ़ियों के हाथों में
- यह क्या पढ़ रहे हैं आप?
- यह किसका सिनेमा है?
- मैं आँख फोड़कर चलूँ या आप बोतल न रखें?
- छोटी कैची की एक ही लपलपी में !
- यह सड़क बोलती है !
- धूप-बत्ती : बुझी, जली !
- सहो मत, तोड़ फेंको !
- मैं भी लड़ा, तुम भी लड़े, पर जीता कौन?
- जी, वे घर में नहीं हैं !
- झेंपो मत, रस लो !
- पाप के चार हथियार !
- जब मैं पंचायत में पहली बार सफल हुआ !
- मैं पशुओं में हूँ, पशु-जैसा ही हूँ पर पशु नहीं हूँ !
- जब हम सिर्फ एक इकन्नी बचाते हैं
- चिड़िया, भैंसा और बछिया
- पाँच सौ छह सौ क्या?
- बिड़ला-मन्दिर देखने चलोगे?
- छोटा-सा पानदान, नन्हा-सा ताला
- शरद् पूर्णिमा की खिलखिलाती रात में !
- गरम ख़त : ठण्डा जवाब !
- जब उन्होंने तालियाँ बजा दी !
- उस बेवकूफ़ ने जब मुझे दाद दी !
- रहो खाट पर सोय !
- जब मैंने नया पोस्टर पढ़ा !
- अजी, क्या रखा है इन बातों में !
- बेईमान का ईमान, हिंसक की अहिंसा और चोर का दान !
- सीता और मीरा !
- मेरे मित्र की खोटी अठन्नी !
- एक था पेड़ और एक था ठूंठ !
- लीजिए, आदमी बनिए !
- अजी, होना-हवाना क्या है?
- अधूरा कभी नहीं, पूरा और पूरी तरह !
- दुनिया दुखों का घर है !
- बल-बहादुरी : एक चिन्तन
- पुण्य पर्वत की उस पिकनिक में