कहानी संग्रह >> बाजे पायलियाँ के घुँघरू बाजे पायलियाँ के घुँघरूकन्हैयालाल मिश्र
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सहज, सरस संस्मरणात्मक शैली में लिखी गयी प्रभाकर जी की रचना बाजे पायलियाँ के घुँघरू।
एक साहब ने अपने क़ीमती सामान की अटैची कुली के सिर पर रखी और टिकिट ख़रीदने लगे। मेम साहब ने कहा, सामान क़ीमती है, मैं साथ जा रही हूँ तो अकड़कर बोले, डोंट बरी, कमौन डीयर (चिन्ता मत करो, तुम मेरे साथ रहो प्यारी !) कुली ने यह बात सुन ली और जाने कहाँ रल गया। न मेम साहब साथ गयीं, न साहब ने नम्बर नोट किया। वही काम की अपूर्णता !
यह अपूर्णता क्यों होती है? इस प्रश्न के मनोवैज्ञानिक विश्लेषण में मैं न उतरूँगा; क्योंकि किसी छोटे दर्जे की अँगरेज़ी पुस्तक में युग बीते पढ़ी एक कविता की दो पंक्तियों में ही इसका समाधान है-
“वर्क ह्वाइल यू वर्क, प्ले ह्वाइल यू प्ले !
दैट इज़ दी वे, टु बि हैप्पी आई से !"
जब तुम काम करो तो बस काम ही करो और जब खेलो तो बस खेलो ही खेलो; मैं कहता हूँ प्रसन्न रहने का एक यही तरीक़ा है।
बात गहरी है कि काम करो तो उसमें पूरा ध्यान, पूरी दिलचस्पी, पूरी योग्यता लगा दो; क्योंकि दिलचस्पी, लगन और चाह ही आदमी में पूर्णता के लिए चाव पैदा करती है और इसी से वह अधूरेपन से बच, पूर्ण काम करने का आदी हो जाता है।
अधूरा काम जीवन को अधूरा कर देता है, उससे बचो और हमेशा पूरा काम तो करो ही, काम को पूरी तरह भी करो-
“वर्क ह्वाइल यू वर्क, प्ले ह्वाइल यू प्ले!"
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- उग-उभरती पीढ़ियों के हाथों में
- यह क्या पढ़ रहे हैं आप?
- यह किसका सिनेमा है?
- मैं आँख फोड़कर चलूँ या आप बोतल न रखें?
- छोटी कैची की एक ही लपलपी में !
- यह सड़क बोलती है !
- धूप-बत्ती : बुझी, जली !
- सहो मत, तोड़ फेंको !
- मैं भी लड़ा, तुम भी लड़े, पर जीता कौन?
- जी, वे घर में नहीं हैं !
- झेंपो मत, रस लो !
- पाप के चार हथियार !
- जब मैं पंचायत में पहली बार सफल हुआ !
- मैं पशुओं में हूँ, पशु-जैसा ही हूँ पर पशु नहीं हूँ !
- जब हम सिर्फ एक इकन्नी बचाते हैं
- चिड़िया, भैंसा और बछिया
- पाँच सौ छह सौ क्या?
- बिड़ला-मन्दिर देखने चलोगे?
- छोटा-सा पानदान, नन्हा-सा ताला
- शरद् पूर्णिमा की खिलखिलाती रात में !
- गरम ख़त : ठण्डा जवाब !
- जब उन्होंने तालियाँ बजा दी !
- उस बेवकूफ़ ने जब मुझे दाद दी !
- रहो खाट पर सोय !
- जब मैंने नया पोस्टर पढ़ा !
- अजी, क्या रखा है इन बातों में !
- बेईमान का ईमान, हिंसक की अहिंसा और चोर का दान !
- सीता और मीरा !
- मेरे मित्र की खोटी अठन्नी !
- एक था पेड़ और एक था ठूंठ !
- लीजिए, आदमी बनिए !
- अजी, होना-हवाना क्या है?
- अधूरा कभी नहीं, पूरा और पूरी तरह !
- दुनिया दुखों का घर है !
- बल-बहादुरी : एक चिन्तन
- पुण्य पर्वत की उस पिकनिक में