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बाजे पायलियाँ के घुँघरू

कन्हैयालाल मिश्र

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2000
पृष्ठ :228
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 422
आईएसबीएन :81-263-0204-6

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सहज, सरस संस्मरणात्मक शैली में लिखी गयी प्रभाकर जी की रचना बाजे पायलियाँ के घुँघरू।


अधूरे या पूरे काम का घर की व्यवस्था से भला क्या सम्बन्ध? आपके मन में यह प्रश्न पूरे ज़ोर से उमड़ रहा है पर इसका बड़ा गहरा सम्बन्ध है, क्योंकि अधूरे काम ही घर की व्यवस्था को ख़राब करते हैं।

यह कैसे? इस तरह कि आपका घर इस समय पूरी तरह व्यवस्थित है, हर चीज़ अपनी जगह पर रखी खिल रही है और आपने यह निश्चय भी कर लिया है कि इसे ऐसा ही रखेंगे। अब आप कपड़ों के दराज़ में से एक बनियाइन निकालते हैं। वह कहीं कपड़ों में रखा गया है, मिलता नहीं। आप दो-चार कपड़े निकालकर कुरसी पर रख देते हैं और बनियाइन लेकर बाहर के कमरे में आ जाते हैं। बस सारी व्यवस्था समाप्त समझिए; क्योंकि आपने अधूरा काम किया और कपड़ों को ज्यों-का-त्यों नहीं रखा।

आपके बाद आपका पुत्र आ गया और वह अपने स्थान पर रखी उस कुरसी को खींच, ऊपर के ताक़ में रखा अपना खेल उतारकर कुरसी को वहीं छोड़ जाएगा। तब दर्शन देंगी उसकी माताजी और वे कपड़ों की मरम्मत करके, कैंची से कटी कतरनें और सुई-तागे का डिब्बा बीच में छोड़ जाएँगी और बस आज का सूरज डूबने से पहले ही आपका घर कबाड़ी की दूकान बन जाएगा।

है न अधूरा काम घर की व्यवस्था का दुश्मन?

दूर के नगर में मेरे एक मित्र रहते हैं। तीन-चार साल बाद मैं गया तो देखा कि एक छोटा-सा दोमंजिला मकान उन्होंने बना लिया है। नया मकान, नया फ़रनीचर, नयी किताबें, पर दरवाज़े की तरफ़ वाली दीवार पर पानी के डोरे खिंचे हए, जिससे कमरे में एक भद्दापन छाया हुआ।

पूछा, यह पानी कहाँ से आया है, तो बोले, “ये पैड के दो छेद बन्द होने से रह गये, बरसात में पिछवाड़ आ जाती है।"

वही अधूरा काम कि मकान बने दो साल हो गये, पर पैड बाँधने के लिए बने छेद रह गये, जिन्हें बन्द करने का काम सिर्फ दस मिनिट का था। अब चार ईंट, आध सेर सीमेण्ट, दस मिनिट के लिए मिस्त्री और सीढ़ी, यह सब हो तो वे छेद बन्द हों, इसलिए दस मिनिट की वह अपूर्णता जाने कब तक पूर्ण हो !

इससे भी एक छोटी बात लीजिए। आपने अपने कमरे में झाडू लगायी, सामान जहाँ का तहाँ किया, पर आप देख रहे हैं कि ऊपर कोने में एक जाला लगा है। आप अपनी बेंत ज़रा हिला दें तो जाला ख़त्म हो, पर नहीं आपने उसे छोड़ दिया और बस आपका काम अधूरा रह गया।

काम को अपूर्ण करने की आदत जीवन को अपूर्ण कर देती है और कभी-कभी इसके भयंकर परिणाम निकलते हैं।

मेरे एक मित्र हैं पी. सी. एस.। यूनिवर्सिटी में फ़र्स्ट आये थे और डिप्टी कलेक्टर होने के कुछ दिन बाद ही सिटी मजिस्ट्रेट हो गये। एक शहर से दूसरे शहर में तबादला हुआ। किराये पर लिया हुआ फ़रनीचर और क़ालीन अपने किसी अर्दली के हाथों लौटा दिया और चले गये, पर दो साल बाद फ़रनीचरवाले ने उस सामान और किराये की नालिश कर दी। अब मजिस्ट्रेट साहब की पोजीशन खतरे में। पन्द्रह दिन मैं दौड़ा-दौडा फिरा और तब कहीं चार सौ रुपये में फैसला हुआ।

बात यह हुई कि या तो अर्दली साहब ने सामान साफ़ किया या फिर फ़रनीचरवाले के मुंशी ने बेच खाया। सामान लौटाकर रसीद न लेने के अधूरे काम ने यह परेशानी और जुर्माना दिया।

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    अनुक्रम

  1. उग-उभरती पीढ़ियों के हाथों में
  2. यह क्या पढ़ रहे हैं आप?
  3. यह किसका सिनेमा है?
  4. मैं आँख फोड़कर चलूँ या आप बोतल न रखें?
  5. छोटी कैची की एक ही लपलपी में !
  6. यह सड़क बोलती है !
  7. धूप-बत्ती : बुझी, जली !
  8. सहो मत, तोड़ फेंको !
  9. मैं भी लड़ा, तुम भी लड़े, पर जीता कौन?
  10. जी, वे घर में नहीं हैं !
  11. झेंपो मत, रस लो !
  12. पाप के चार हथियार !
  13. जब मैं पंचायत में पहली बार सफल हुआ !
  14. मैं पशुओं में हूँ, पशु-जैसा ही हूँ पर पशु नहीं हूँ !
  15. जब हम सिर्फ एक इकन्नी बचाते हैं
  16. चिड़िया, भैंसा और बछिया
  17. पाँच सौ छह सौ क्या?
  18. बिड़ला-मन्दिर देखने चलोगे?
  19. छोटा-सा पानदान, नन्हा-सा ताला
  20. शरद् पूर्णिमा की खिलखिलाती रात में !
  21. गरम ख़त : ठण्डा जवाब !
  22. जब उन्होंने तालियाँ बजा दी !
  23. उस बेवकूफ़ ने जब मुझे दाद दी !
  24. रहो खाट पर सोय !
  25. जब मैंने नया पोस्टर पढ़ा !
  26. अजी, क्या रखा है इन बातों में !
  27. बेईमान का ईमान, हिंसक की अहिंसा और चोर का दान !
  28. सीता और मीरा !
  29. मेरे मित्र की खोटी अठन्नी !
  30. एक था पेड़ और एक था ठूंठ !
  31. लीजिए, आदमी बनिए !
  32. अजी, होना-हवाना क्या है?
  33. अधूरा कभी नहीं, पूरा और पूरी तरह !
  34. दुनिया दुखों का घर है !
  35. बल-बहादुरी : एक चिन्तन
  36. पुण्य पर्वत की उस पिकनिक में

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