कहानी संग्रह >> बाजे पायलियाँ के घुँघरू बाजे पायलियाँ के घुँघरूकन्हैयालाल मिश्र
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सहज, सरस संस्मरणात्मक शैली में लिखी गयी प्रभाकर जी की रचना बाजे पायलियाँ के घुँघरू।
बल की चरम सीमा कहाँ है?
शत्रुदल-गंजन में, केसरी के साथ खेल खेलने में या फिर देश और धर्म के लिए हँसते-हँसते अपने प्राणों की आहुति देने में?
नहीं, बल की चरम सीमा वीर की उस अविचल-मुसकान में है, जो चारों ओर पराजय और पराभव का वातावरण उपस्थित होने पर भी उसके अरुण अधर-मण्डल पर अपनी पुण्य-पुनीत प्रकाशमाला के साथ थिरका करती है।
बर्बरता के राक्षसी ताण्डव के बीच चुनी जाने वाली दीवार में आकण्ठ निमग्न गुरु गोविन्दसिंह के आत्मज सरल शिशुओं के अधर-मण्डल पर विकसित होनेवाली अविचल स्मित रेखा पर कौन सहृदय है, जो नेपोलियनऔर गैरीबाल्डी, राणाप्रताप और शिवाजी ही नहीं, विश्व की समस्त वीरता का सार न्यौछावर करने में हिचकेगा?
विश्व के इतिहास-उपवन में वीरता-वल्लरी के उदाहरण-सुमनों की कमी नहीं। एक-से-एक सुरभित एवं एक-से-एक सुन्दर, पर उनमें सर्वोत्कृष्ट एवं दिव्य के नाम से उद्घोषित सुमनों का विकास विजय-वैभव की वरेण्य-वैजयन्ती की ऊँची फहरान के पार्श्व देश में नहीं हुआ, पराजय की पुण्य-परागमाला ही उनका प्रसूतिगृह है।
पश्चिम शरीरबल का उपासक है और भारत आत्मबल का। अपने-अपने क्षेत्र और समय में दोनों ही बल खूब फले-फूले और विकास की चरम सीमा तक पहुँचे। प्राचीनतम अतीत के अनन्तर भी बुद्ध के रूप में भारत ने एक बार फिर अपने पक्ष की उज्ज्वलता घोषित की, पर अभी विश्व के विशाल प्रांगण में उसके पक्ष की सर्वोत्कृष्टता प्रमाणित होनी अवशिष्ट थी कि प्रकृति ने गाँधी की महासृष्टि की, जो युद्ध की पाशविकता को अहिंसा के साथ सफलतापूर्वक जोड़ एक सांस्कृतिक अनुष्ठान का रूप दे सका और यों भारतीय संस्कृति के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ने में सफल हुआ।
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- उग-उभरती पीढ़ियों के हाथों में
- यह क्या पढ़ रहे हैं आप?
- यह किसका सिनेमा है?
- मैं आँख फोड़कर चलूँ या आप बोतल न रखें?
- छोटी कैची की एक ही लपलपी में !
- यह सड़क बोलती है !
- धूप-बत्ती : बुझी, जली !
- सहो मत, तोड़ फेंको !
- मैं भी लड़ा, तुम भी लड़े, पर जीता कौन?
- जी, वे घर में नहीं हैं !
- झेंपो मत, रस लो !
- पाप के चार हथियार !
- जब मैं पंचायत में पहली बार सफल हुआ !
- मैं पशुओं में हूँ, पशु-जैसा ही हूँ पर पशु नहीं हूँ !
- जब हम सिर्फ एक इकन्नी बचाते हैं
- चिड़िया, भैंसा और बछिया
- पाँच सौ छह सौ क्या?
- बिड़ला-मन्दिर देखने चलोगे?
- छोटा-सा पानदान, नन्हा-सा ताला
- शरद् पूर्णिमा की खिलखिलाती रात में !
- गरम ख़त : ठण्डा जवाब !
- जब उन्होंने तालियाँ बजा दी !
- उस बेवकूफ़ ने जब मुझे दाद दी !
- रहो खाट पर सोय !
- जब मैंने नया पोस्टर पढ़ा !
- अजी, क्या रखा है इन बातों में !
- बेईमान का ईमान, हिंसक की अहिंसा और चोर का दान !
- सीता और मीरा !
- मेरे मित्र की खोटी अठन्नी !
- एक था पेड़ और एक था ठूंठ !
- लीजिए, आदमी बनिए !
- अजी, होना-हवाना क्या है?
- अधूरा कभी नहीं, पूरा और पूरी तरह !
- दुनिया दुखों का घर है !
- बल-बहादुरी : एक चिन्तन
- पुण्य पर्वत की उस पिकनिक में