कहानी संग्रह >> बाजे पायलियाँ के घुँघरू बाजे पायलियाँ के घुँघरूकन्हैयालाल मिश्र
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सहज, सरस संस्मरणात्मक शैली में लिखी गयी प्रभाकर जी की रचना बाजे पायलियाँ के घुँघरू।
इतिहास-रत्न जयमल और वीर-शिरोमणि फत्ता का हम कितना ही गुणगान करें, पर उनका सच्चा सम्मान तो मुग़ल-सम्राट् वीर अकबर ही कर सका था।
झाँसी की वीर महारानी लक्ष्मीबाई के सम्मान में हम कितने ही काव्यों का निर्माण क्यों न करें, उस देवी का वास्तविक सम्मान ब्रिटिश सेना के वीर सेनापति ह्यूरोज के वे शब्द हैं, जो आज भी इतिहास के स्वर्ण-पृष्ठों में अपनी दिव्य-प्रकाशमाला के साथ जगमगा रहे हैं।
बल और बुद्धि का वही सम्बन्ध है जो देह और आँख का। बद्धि-कौशल के बिना बल का कुछ अर्थ नहीं और बल के अभाव में बुद्धि-कौशल पंगु है।
राजपूतों में बल था; ऐसा बल, विश्व-इतिहास के पृष्ठों में जिसकी कोई उपमा नहीं, पर पराजय के अतिरिक्त उन्हें क्या मिला?
वे जहाँ लड़े सिंह की भाँति लड़े। शत्रु और मित्र सभी ने खुले दिल उनके शौर्य की प्रशंसा की, पर इससे क्या?
कल्पना के मोदक हमें कुछ काल के लिए आनन्द के मधुर आवेश में भले ही भुला दें, पर हमारी क्षुधा की शान्ति नहीं कर सकते।
शाहजहाँ का उत्तराधिकारी दारा, साठ हज़ार से भी अधिक बल-राशि का स्वामी था और उसका छोटा भाई औरंगजेब इससे आधी से भी कम, पर बुद्धि-कौशल के अभाव में एक का अन्त इतना दयनीय है कि पत्थर भी पसीज उठे और दूसरा इसी के सहारे साम्राज्य का अधीश्वर बन बैठा !
बल के साथ बुद्धि का एकत्र संयोग सौभाग्य-श्री का पुनीत वरदान है। जिस मनुष्य, जाति या राष्ट्र को महामाया का यह वरदान प्राप्त है, सफलता उसके सामने हाथ बाँधे खड़ी रहने में अपने जीवन की चरितार्थता मानती है और विजय उसकी आँख के एक सूक्ष्म संकेत पर नाचने में अपना गौरव अनुभव करता है।
यह संयोग सत्त्वाश्रित होने पर सौन्दर्य एवं प्रेम के सम्मिलन-सा मनोहर, प्रकृति एवं पुरुष के सम्मिलन-सा पुनीत और काव्य एवं संगीत के सम्मिलन-सा अजेय हो उठता है।
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- उग-उभरती पीढ़ियों के हाथों में
- यह क्या पढ़ रहे हैं आप?
- यह किसका सिनेमा है?
- मैं आँख फोड़कर चलूँ या आप बोतल न रखें?
- छोटी कैची की एक ही लपलपी में !
- यह सड़क बोलती है !
- धूप-बत्ती : बुझी, जली !
- सहो मत, तोड़ फेंको !
- मैं भी लड़ा, तुम भी लड़े, पर जीता कौन?
- जी, वे घर में नहीं हैं !
- झेंपो मत, रस लो !
- पाप के चार हथियार !
- जब मैं पंचायत में पहली बार सफल हुआ !
- मैं पशुओं में हूँ, पशु-जैसा ही हूँ पर पशु नहीं हूँ !
- जब हम सिर्फ एक इकन्नी बचाते हैं
- चिड़िया, भैंसा और बछिया
- पाँच सौ छह सौ क्या?
- बिड़ला-मन्दिर देखने चलोगे?
- छोटा-सा पानदान, नन्हा-सा ताला
- शरद् पूर्णिमा की खिलखिलाती रात में !
- गरम ख़त : ठण्डा जवाब !
- जब उन्होंने तालियाँ बजा दी !
- उस बेवकूफ़ ने जब मुझे दाद दी !
- रहो खाट पर सोय !
- जब मैंने नया पोस्टर पढ़ा !
- अजी, क्या रखा है इन बातों में !
- बेईमान का ईमान, हिंसक की अहिंसा और चोर का दान !
- सीता और मीरा !
- मेरे मित्र की खोटी अठन्नी !
- एक था पेड़ और एक था ठूंठ !
- लीजिए, आदमी बनिए !
- अजी, होना-हवाना क्या है?
- अधूरा कभी नहीं, पूरा और पूरी तरह !
- दुनिया दुखों का घर है !
- बल-बहादुरी : एक चिन्तन
- पुण्य पर्वत की उस पिकनिक में