कहानी संग्रह >> बाजे पायलियाँ के घुँघरू बाजे पायलियाँ के घुँघरूकन्हैयालाल मिश्र
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सहज, सरस संस्मरणात्मक शैली में लिखी गयी प्रभाकर जी की रचना बाजे पायलियाँ के घुँघरू।
भक्त भगवान् की पूजा में लीन हो जाता है, अपूर्व आनन्द उसे मिलता है, पर एक पुजारीजी हैं। दोपहर को वे ताश जमाते हैं और शाम को जब भगवान की पूजा का तक़ाज़ा उन पर आता है तो कभी-कभी कहा करते हैं, "उठो भाई, पहले पूजा का पाप काट आएँ !"
मैं भी ऊपर चढ़ रहा हूँ, पर चढ़ाई का पाप ही तो काट रहा हूँ ! फिर आनन्द कैसे मिले?
पगडण्डी चढ़ा चला आ रहा था कि ध्यान आ गया इस पगडण्डी में कितने मोड हैं? कितने क्या, मोड़-ही-मोड़ हैं; जैसे यह राह न होकर कोई चक्कर हो !
तभी जैसे भीतर किसी ने कहा, जीवन में भी तो मोड़ हैं इसी तरह; और अब जैसे जीवन और पथ दोनों मेरे सामने आ गये। मैं सोचता रहा, पथ में भी मोड़ हैं, जीवन में भी मोड़ हैं।
“पर क्यों हैं ये मोड़?” जिज्ञासा ने पूछा और विवेक ने उत्तर दिया, “पथ में मोड़ न हों तो पथिक अपनी मंज़िल तक कैसे पहुंचे और जीवन में मोड़ न हों तो मानव अपना लक्ष्य कैसे पाए, पगले !”
तब ठीक है-मैंने सोचा-मोड़ पथ की भी शक्ति है और जीवन की भी; पर शक्ति जहाँ शक्ति है, वहीं एक ख़तरा भी है कि सदुपयोग हो तो शक्ति-निर्माण का साधन है और दुरुपयोग हो तो विनाश का मोरचा।
जीवन या पथ के मोड़ पर आते ही जहाँ आगे बढ़ने की प्रवृत्ति पनपती है, वहाँ भटक जाने की सम्भावना भी तो ! यहाँ दिशाबोध आवश्यक है और यह दिशाबोध ही शक्ति का सदुपयोग है।
चढ़ते ही चढ़ते किसी से सुना, सामने की पहाड़ियों में एक साधु रहता है और सर्दियों में, जब चारों ओर सूनापन छा जाता है तो कभी-कभी वह दिखाई देता है।
जीवन की यह कैसी स्थिति है कि न पास कोई अपना आदमी, न सुख-सुविधा का कोई साधन, बस पहाड़ की सूनी कन्दरा और उसमें निवास करता एक मनुष्य, जिसके पास अपनी एक लँगोटी भी नहीं-एकदम अकिंचन !
अकिंचन, तो क्या दयनीय? मेरी आँखों में घूम रहे हैं, वे दीन-भिखारी, जिनके पास कुछ भी नहीं होता-सचमुच दयनीय।
तो क्या साधु और भिखारी, दोनों एक ही चीज़ हैं? लगता तो यही है कि एक ही चीज़ हैं-उसके पास भी कुछ नहीं और इसके पास भी कुछ नहीं, पर देख रहा हूँ अन्तर्वासी इसे ले नहीं पा रहा और उसके विद्रोह की वाणी सुन रहा हूँ-ना, ये दोनों एक नहीं हैं; एक के पास कुछ नहीं है और वह टुकड़ों के लिए दर-दर भटकता है, पर एक के पास कुछ नहीं है, तब भी वह स्वर्ग का अधीश्वर है।
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