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बाजे पायलियाँ के घुँघरू

कन्हैयालाल मिश्र

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2000
पृष्ठ :228
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 422
आईएसबीएन :81-263-0204-6

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सहज, सरस संस्मरणात्मक शैली में लिखी गयी प्रभाकर जी की रचना बाजे पायलियाँ के घुँघरू।

चार


क्यों जी, रपट पड़ने पर आदमी झेंपता क्यों है?

इसलिए कि दूसरों की नज़रों में अपनी हीनता, कमी, लघुता और हार का भाव उसके मानस को घेर लेता है।

और क्यों जी, किसी के रपट पड़ने पर हम हँसते क्यों हैं?

इसलिए कि उसकी असफलता में अपनी सफलता, उसकी कुरूपता में अपना सौन्दर्य और उसकी हार में अपनी जीत का उल्लास हमारे मानस पर छा जाता है।

और बस यहीं वह प्रश्न, जो इस सारे मामले को उधेड़कर हमारे सामने रख देगा, जब कोई रपट पड़ने पर भी नहीं झेंपता तो हमारी उठती-उभरती हँसी का फ़व्वारा आप-ही-आप क्यों दुबक जाता है?

इसलिए कि दूसरों को हम पर हँसने का मौक़ा तब आता है, जब हम अपनी आँखों में हलके हो जाएँ ! सुधारक और अग्रगामी संसार में मूल्-द्वारा सदा लांछित हुए हैं, पर वे अपनी आँखों में हलके नहीं हुए, इसीलिए यह लांछना उन्हें लांछित नहीं कर पायी और एक दिन अपने प्रति उनका यह सम्मान दूसरों के मस्तकों को अपने चरणों में झुका सका।

बात अब भी 'कामायनी' पर चल रही थी और मैं सोच रहा था।

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    अनुक्रम

  1. उग-उभरती पीढ़ियों के हाथों में
  2. यह क्या पढ़ रहे हैं आप?
  3. यह किसका सिनेमा है?
  4. मैं आँख फोड़कर चलूँ या आप बोतल न रखें?
  5. छोटी कैची की एक ही लपलपी में !
  6. यह सड़क बोलती है !
  7. धूप-बत्ती : बुझी, जली !
  8. सहो मत, तोड़ फेंको !
  9. मैं भी लड़ा, तुम भी लड़े, पर जीता कौन?
  10. जी, वे घर में नहीं हैं !
  11. झेंपो मत, रस लो !
  12. पाप के चार हथियार !
  13. जब मैं पंचायत में पहली बार सफल हुआ !
  14. मैं पशुओं में हूँ, पशु-जैसा ही हूँ पर पशु नहीं हूँ !
  15. जब हम सिर्फ एक इकन्नी बचाते हैं
  16. चिड़िया, भैंसा और बछिया
  17. पाँच सौ छह सौ क्या?
  18. बिड़ला-मन्दिर देखने चलोगे?
  19. छोटा-सा पानदान, नन्हा-सा ताला
  20. शरद् पूर्णिमा की खिलखिलाती रात में !
  21. गरम ख़त : ठण्डा जवाब !
  22. जब उन्होंने तालियाँ बजा दी !
  23. उस बेवकूफ़ ने जब मुझे दाद दी !
  24. रहो खाट पर सोय !
  25. जब मैंने नया पोस्टर पढ़ा !
  26. अजी, क्या रखा है इन बातों में !
  27. बेईमान का ईमान, हिंसक की अहिंसा और चोर का दान !
  28. सीता और मीरा !
  29. मेरे मित्र की खोटी अठन्नी !
  30. एक था पेड़ और एक था ठूंठ !
  31. लीजिए, आदमी बनिए !
  32. अजी, होना-हवाना क्या है?
  33. अधूरा कभी नहीं, पूरा और पूरी तरह !
  34. दुनिया दुखों का घर है !
  35. बल-बहादुरी : एक चिन्तन
  36. पुण्य पर्वत की उस पिकनिक में

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