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बाजे पायलियाँ के घुँघरू

कन्हैयालाल मिश्र

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2000
पृष्ठ :228
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 422
आईएसबीएन :81-263-0204-6

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सहज, सरस संस्मरणात्मक शैली में लिखी गयी प्रभाकर जी की रचना बाजे पायलियाँ के घुँघरू।

दो


कुछ दिन बाद मैं स्वास्थ्य-सुधार के लिए पहाड़ चला गया। वहीं एक दिन एक बेंच पर बैठा, मैं सामने का पहाड़ देख रहा था कि पास की बेंच पर एक सज्जन आकर बैठ गये और कोई पुस्तक पढ़ने लगे-एकदम गम्भीर और डूबे हुए।

तभी उधर आ निकले एक और सज्जन-कोट-बूट-धारी और उन पढ़न्तू मित्र के पास पहुँचते-न-पहुँचते बोले, “मैं तो तुम्हारे कमरे पर गया था। नौकर से मालूम हुआ कि तुम इधर घूमने गये हो। मैंने सोचा-चलो, उधर ही चलूँ, कहीं-न-कहीं मुलाक़ात हो ही जाएगी।"

दूर बैठे-ही-बैठे मैंने महसूस किया कि उन्हें इनका यहाँ आना अच्छा नहीं लगा। तभी उड़ती-उखड़ती-सी आवाज़ में वे बोले, "हाँ, मैं इधर चला आया था।"

मन में सोचा-इस 'हाँ' का अर्थ है कि बड़ी बेवकूफ़ी की, जो नौकर को अपना पता दे आया कि भूत की तरह आप मेरे पीछे यहीं आ धमके। मुझे लगा कि ये आने वाले सज्जन, इनसे कोई ऐसी बात चाहते हैं, जिन्हें यह पसन्द नहीं करते।

बेंच पर बैठते-बैठते उन्होंने कहा, "तो फिर क्या सोचा तुमने अपनी पॉलिसी के बारे में? और सोचना क्या है, लो फ़ॉर्म भर दो।"

अरे, यह तो बीमा कम्पनी का एजेण्ट है। बीमा-एजेण्ट, अपने समय का ऐसा आदमी जिसे कोई पसन्द नहीं करता, पर जो बिना बुलाये भी किसी के घर जाने में नहीं झिझकता !

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    अनुक्रम

  1. उग-उभरती पीढ़ियों के हाथों में
  2. यह क्या पढ़ रहे हैं आप?
  3. यह किसका सिनेमा है?
  4. मैं आँख फोड़कर चलूँ या आप बोतल न रखें?
  5. छोटी कैची की एक ही लपलपी में !
  6. यह सड़क बोलती है !
  7. धूप-बत्ती : बुझी, जली !
  8. सहो मत, तोड़ फेंको !
  9. मैं भी लड़ा, तुम भी लड़े, पर जीता कौन?
  10. जी, वे घर में नहीं हैं !
  11. झेंपो मत, रस लो !
  12. पाप के चार हथियार !
  13. जब मैं पंचायत में पहली बार सफल हुआ !
  14. मैं पशुओं में हूँ, पशु-जैसा ही हूँ पर पशु नहीं हूँ !
  15. जब हम सिर्फ एक इकन्नी बचाते हैं
  16. चिड़िया, भैंसा और बछिया
  17. पाँच सौ छह सौ क्या?
  18. बिड़ला-मन्दिर देखने चलोगे?
  19. छोटा-सा पानदान, नन्हा-सा ताला
  20. शरद् पूर्णिमा की खिलखिलाती रात में !
  21. गरम ख़त : ठण्डा जवाब !
  22. जब उन्होंने तालियाँ बजा दी !
  23. उस बेवकूफ़ ने जब मुझे दाद दी !
  24. रहो खाट पर सोय !
  25. जब मैंने नया पोस्टर पढ़ा !
  26. अजी, क्या रखा है इन बातों में !
  27. बेईमान का ईमान, हिंसक की अहिंसा और चोर का दान !
  28. सीता और मीरा !
  29. मेरे मित्र की खोटी अठन्नी !
  30. एक था पेड़ और एक था ठूंठ !
  31. लीजिए, आदमी बनिए !
  32. अजी, होना-हवाना क्या है?
  33. अधूरा कभी नहीं, पूरा और पूरी तरह !
  34. दुनिया दुखों का घर है !
  35. बल-बहादुरी : एक चिन्तन
  36. पुण्य पर्वत की उस पिकनिक में

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